नवनक्षत्र शान्ति: Difference between revisions

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*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
*[[भारत]] में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित [[हिन्दू धर्म]] का एक व्रत संस्कार है।
*एक शान्ति कृत्य एवं नौ नक्षत्रों की पूजा की जाती है।
*एक शान्ति कृत्य एवं नौ नक्षत्रों की पूजा की जाती है।
*मनुष्य के जन्म के नक्षत्र को जनन-नक्षत्र कहा जाता है, चौथे, दसवें, सोलहवें, बीसवें, तेईसवें को क्रम से मानस, कर्म, सांघातिक, समुदय एवं वैनाशिक कहा जाता है।  
*मनुष्य के जन्म के नक्षत्र को जनन-नक्षत्र कहा जाता है, चौथे, दसवें, सोलहवें, बीसवें, तेईसवें को क्रम से मानस, कर्म, सांघातिक, समुदय एवं वैनाशिक कहा जाता है।  

Revision as of 17:54, 25 February 2011

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • एक शान्ति कृत्य एवं नौ नक्षत्रों की पूजा की जाती है।
  • मनुष्य के जन्म के नक्षत्र को जनन-नक्षत्र कहा जाता है, चौथे, दसवें, सोलहवें, बीसवें, तेईसवें को क्रम से मानस, कर्म, सांघातिक, समुदय एवं वैनाशिक कहा जाता है।
  • साधारण जन छः नक्षत्रों तक सीमित रहते हैं, किन्तु राजा तीन अन्य नक्षत्रों को सम्मिलित कर लेता है, यथा—राज्याभिषेक नक्षत्र, देश नक्षत्र (वह नक्षत्र जो उसके देश पर स्वामित्व करता है) तथा उसके वर्ण का नक्षत्र।
  • यदि इन नक्षत्रों पर ग्रहों के बुरे प्रभाव पड़ जाते हैं तो इनके (इन छः या नौ नक्षत्रों के) द्वारा अभिव्यक्त विषयों में गड़बड़ी हो जाती है, यथा—यदि जनन नक्षत्र प्रभावित हो तो वह जीवन एवं सम्पत्ति खो सकता है, यदि अभिषेक नक्षत्र प्रभावित हो तो राज्य हानि हो सकती है।
  • उचित कृत्यों एवं पूजा से बुरे प्रभाव रोक जा सकते हैं, यथा—जनन नक्षत्र के लिए ऐसे जल से स्नान करना चाहिए जिसमें कुश डुबाया गया हो, जिसमें श्वेत बैल का गोबर एवं मूत्र तथा श्वेत गाय का दूध मिलाया गया हो।[1]
  • यह द्रष्टव्य है कि इस विषय में कि जनन के उपरान्त किन नक्षत्रों से उपर्युक्त नाम सम्बन्धित है।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 688-691)।
  2. वैखानसगृह्य सूत्र (4|14), विष्णुधर्मोत्तरपुराण (2|166), नारद पुराण (1|53|358-59), वराहमिहिर रचित योगमाया (9|1-2)

अन्य संबंधित लिंक

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