महालक्ष्मी पूजा: Difference between revisions
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*[[महाराष्ट्र]] में यह पूजा विवाहित स्त्रियों द्वारा आषाढ़ शुक्ल की नवमी को मध्याह्न में की जाती है और रात्रि में सभी विवाहित नारियाँ एक साथ पूजा करती हैं, | *[[महाराष्ट्र]] में यह पूजा विवाहित स्त्रियों द्वारा आषाढ़ शुक्ल की नवमी को मध्याह्न में की जाती है और रात्रि में सभी विवाहित नारियाँ एक साथ पूजा करती हैं, ख़ाली घड़ों को हाथ में रखती हैं, उनमें श्वास लेती हैं और अपने शरीर को भाँति-भाँति ढंगों से मोड़ती हैं। | ||
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*इसके मत से यह व्रत नारियों एवं पुरुषों दोनों का है। | *इसके मत से यह व्रत नारियों एवं पुरुषों दोनों का है। |
Revision as of 13:15, 31 January 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- इस व्रत के विषय में विभिन्न मत हैं।
- कृत्यसारसमुच्चय[1] एवं अहल्याकामधेनु[2] के मत से-भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आरम्भ तथा आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को समाप्त (पूर्णिमान्त गणना) होता है।
- यह 16 दिनों तक चलती है।
- प्रतिदिन महालक्ष्मी पूजा तथा महालक्ष्मी के विषय की गाथाओं का श्रवण होता है।
- निर्णयसिन्धु[3] में भी यह अवधि दी हुई है, किन्तु पहली बार किये जाने पर पार दोषों से बचना होता है, यथा—अवमदिन न हो, तिथि त्रयःस्पृक् न हो, नवमी से युक्त न हो, सूर्य हस्त नक्षत्र के भाग में न हो।
- महाराष्ट्र में यह पूजा विवाहित स्त्रियों द्वारा आषाढ़ शुक्ल की नवमी को मध्याह्न में की जाती है और रात्रि में सभी विवाहित नारियाँ एक साथ पूजा करती हैं, ख़ाली घड़ों को हाथ में रखती हैं, उनमें श्वास लेती हैं और अपने शरीर को भाँति-भाँति ढंगों से मोड़ती हैं।
- पुरुषार्थचिन्तामणि[4] में इसके विषय में एक लम्बा विवेचन है।
- इसके मत से यह व्रत नारियों एवं पुरुषों दोनों का है।
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अन्य संबंधित लिंक
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