संक्रान्ति: Difference between revisions
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सूर्य-संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना-उपासना का पावन व्रत होता है, जो तन-मन और आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को गंगाजल-अक्षत-तिल से श्राद्ध-तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध-तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, 'मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगाजल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।' | |||
पुरे देश में मकर संक्रान्ति का यह पावन पर्व बडे ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। ईसी दिन पंजाब में लोहडी, गुजरात में उतराण, केरल में पोंगल के त्योहार मनाए जाते हैं । यह दिन बच्चों के लिये एक खेल व मस्ती का दिन होता है, वहीं घर परिवार के बडे सदस्य इस दिन दान पुण्य आदि करते हैं । हिन्दु धर्म में यह दिन बडा ही पवित्र दिन माना जाता है, कहा गया है कि मकर संक्रान्ति के दिन किया गया दान पुण्य बहुत ही शुभ होता है। घर परिवार के बडे बुजुर्ग सदस्य ईस दिन अन्न दान, वस्त्र दान, धन का दान आदि करते हैं । पशुओं को जी भर के चारा, घास डाला जाता है। सभी घरों में खास तौर से तिल के व्यजंन, खीच(मक्के व दुध से बनी खीर) आदि बनाए जाते हें। | |||
== | ==भारत के विभिन्न प्रदेशों में मकर संक्रांति== | ||
====हरियाणा और पंजाब==== | |||
हरियाणा और पंजाब में मकर संक्रांति पर्व को लोहड़ी के रूप में मनाया जलाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि की पूजा करते हैं और तिल, गुड़, चावल और भुने कर मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियाँ एक-दूसरे में बांटकर खुशियां मनाते हैं। महिलाएँ घर घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। इसके साथ पारंपरिक मक्के की रोटी और सरसों की साग का भी लुत्फ उठाया जाता है। | |||
=== | ====उत्तर प्रदेश==== | ||
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है । इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है। १४ जनवरी से इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत में इस एक महीने में किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत नहीं जाती थी पर अब तो समय के साथ लोग भी काफी बदल गए हैं। १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है । माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक नहान तक चलता है और आखरी नहान भी शिवरात्री के दिन ही होता है। संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है और इसी दिन बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। संक्रान्ति के दिन गंगास्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा में स्नान करके , तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। मकर संक्रान्ति पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है। सारे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है। | |||
====महाराष्ट्र==== | |||
महाराष्ट्र में इस दिन नवविवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं। पुरूष एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और बोलते हैं :- `लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। | |||
====बंगाल==== | |||
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करने के लिए आते हैं। वर्ष में केवल मकर संक्रांति के दिन ही यहाँ लोगों की अपार भीड़ देखने को मिलती है। इसीलिए कहा जाता है-` | |||
* सारे तीर्थ बार बार लेकिन गंगा सागर एक बार। | |||
==== | ====तमिलनाडु==== | ||
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। | |||
*प्रथम दिन भोगी-पोंगल, | |||
*द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, | |||
*तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, | |||
*चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल। | |||
तमिलनाडु में पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा करके जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है फिर खीर को प्रसाद के रूप में सभी लोग ग्रहण करते हैं। तमिलनाडु में इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है। | |||
==== | ====असम==== | ||
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाया जाता हैं। | |||
====राजस्थान==== | |||
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। | |||
< | ==मकर संक्रान्ति की महत्वता== | ||
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए मकर संक्रांति के दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व होता है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान करने से मोक्ष की प्राप्ती हती है। यथा- | |||
<poem>माघे मासि महादेव यो दाद घृतकंबलम। | |||
स भुक्त्वा सकलान भोगान अंते मोक्षं च विंदति॥</poem> | |||
मकर संक्रांति के पर्व पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभ कार्य माना गया है। मकर संक्रांति के पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई सूर्य है। मकर संक्रांति के सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक दायक होता है। सूर्य का राशियों प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अंतराल पर होती रहती है। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है और भारत से दूर भी होता है। इसी कारण यहाँ रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होती है। ऐसा जानकर संपूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन किया जाता है सूर्यदेव के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग की समस्त तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किंतु मकर संक्रांति पर्व को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण मकर संक्रांति पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है। | |||
====मकर संक्रान्ति की ऐतिहासिक महत्वता==== | |||
कहा जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने भी अपनी शरीर त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में मिली जाती थीं।अत: मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है। | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Revision as of 11:15, 17 August 2011
सूर्य-संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना-उपासना का पावन व्रत होता है, जो तन-मन और आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों को गंगाजल-अक्षत-तिल से श्राद्ध-तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध-तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, 'मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगाजल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।' पुरे देश में मकर संक्रान्ति का यह पावन पर्व बडे ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। ईसी दिन पंजाब में लोहडी, गुजरात में उतराण, केरल में पोंगल के त्योहार मनाए जाते हैं । यह दिन बच्चों के लिये एक खेल व मस्ती का दिन होता है, वहीं घर परिवार के बडे सदस्य इस दिन दान पुण्य आदि करते हैं । हिन्दु धर्म में यह दिन बडा ही पवित्र दिन माना जाता है, कहा गया है कि मकर संक्रान्ति के दिन किया गया दान पुण्य बहुत ही शुभ होता है। घर परिवार के बडे बुजुर्ग सदस्य ईस दिन अन्न दान, वस्त्र दान, धन का दान आदि करते हैं । पशुओं को जी भर के चारा, घास डाला जाता है। सभी घरों में खास तौर से तिल के व्यजंन, खीच(मक्के व दुध से बनी खीर) आदि बनाए जाते हें।
भारत के विभिन्न प्रदेशों में मकर संक्रांति
हरियाणा और पंजाब
हरियाणा और पंजाब में मकर संक्रांति पर्व को लोहड़ी के रूप में मनाया जलाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि की पूजा करते हैं और तिल, गुड़, चावल और भुने कर मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियाँ एक-दूसरे में बांटकर खुशियां मनाते हैं। महिलाएँ घर घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। इसके साथ पारंपरिक मक्के की रोटी और सरसों की साग का भी लुत्फ उठाया जाता है।
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है । इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है। १४ जनवरी से इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। उत्तर भारत में इस एक महीने में किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत नहीं जाती थी पर अब तो समय के साथ लोग भी काफी बदल गए हैं। १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है । माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक नहान तक चलता है और आखरी नहान भी शिवरात्री के दिन ही होता है। संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है और इसी दिन बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। संक्रान्ति के दिन गंगास्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा में स्नान करके , तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। मकर संक्रान्ति पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े मेले लगते है। सारे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में इस दिन नवविवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं। पुरूष एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और बोलते हैं :- `लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो।
बंगाल
बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहाँ गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। यह भी माना जाता है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करने के लिए आते हैं। वर्ष में केवल मकर संक्रांति के दिन ही यहाँ लोगों की अपार भीड़ देखने को मिलती है। इसीलिए कहा जाता है-`
- सारे तीर्थ बार बार लेकिन गंगा सागर एक बार।
तमिलनाडु
तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं।
- प्रथम दिन भोगी-पोंगल,
- द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल,
- तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल,
- चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल।
तमिलनाडु में पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा करके जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है फिर खीर को प्रसाद के रूप में सभी लोग ग्रहण करते हैं। तमिलनाडु में इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।
असम
असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाया जाता हैं।
राजस्थान
राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं।
मकर संक्रान्ति की महत्वता
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए मकर संक्रांति के दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व होता है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान करने से मोक्ष की प्राप्ती हती है। यथा-
माघे मासि महादेव यो दाद घृतकंबलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अंते मोक्षं च विंदति॥
मकर संक्रांति के पर्व पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभ कार्य माना गया है। मकर संक्रांति के पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई सूर्य है। मकर संक्रांति के सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक दायक होता है। सूर्य का राशियों प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अंतराल पर होती रहती है। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है और भारत से दूर भी होता है। इसी कारण यहाँ रातें बड़ी और दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होती है। ऐसा जानकर संपूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन किया जाता है सूर्यदेव के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग की समस्त तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किंतु मकर संक्रांति पर्व को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण मकर संक्रांति पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है।
मकर संक्रान्ति की ऐतिहासिक महत्वता
कहा जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं क्योंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने भी अपनी शरीर त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में मिली जाती थीं।अत: मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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