बोगाजकोई: Difference between revisions

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'''बोगाजकोई''' एशिया माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण [[पुरातत्त्व]] सम्बन्धी [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। वहाँ के [[शिलालेख|शिलालेखों]] में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, [[दशरथ]] और आर्त्ततम आदि [[आर्य]] नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]] और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार बोगाजकोई से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है।
'''बोगाजकोई''' एशिया माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण [[पुरातत्त्व]] सम्बन्धी [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं। वहाँ के [[शिलालेख|शिलालेखों]] में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, [[दशरथ]] और आर्त्ततम आदि [[आर्य]] नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा [[इन्द्र]], [[वरुण देवता|वरुण]] और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार बोगाजकोई से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है।



Latest revision as of 08:36, 20 February 2013

thumb|250px|सिंहद्वार, बोगाजकोई बोगाजकोई एशिया माइनर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जहाँ से महत्त्वपूर्ण पुरातत्त्व सम्बन्धी अवशेष प्राप्त हुए हैं। वहाँ के शिलालेखों में जो चौदहवीं शताब्दी ई. पू. के बताये जाते हैं, इन्द्र, दशरथ और आर्त्ततम आदि आर्य नामधारी राजाओं का उल्लेख है तथा इन्द्र, वरुण और नासत्य आदि आर्य देवताओं से सन्धियों का साक्षी होने की प्रार्थना की गयी है। इस प्रकार बोगाजकोई से आर्यों के निष्क्रमण मार्गों का संकेत मिलता है।

  • सन 1907 ई. में प्राचीन हिट्टाइट राज्य की राजधानी बोगाजकोई में पाई गयी मिट्टी की पट्टिकाओं में वैदिक देवता मित्र वरुण इंद्र नासत्यस का उल्लेख है।
  • ईरान और भारतवर्ष को छोड़कर प्राचीन काल में 'आर्य' शब्द अनातोलिया की हित्ती भाषा में पाया जाता है।[1]
  • अनातोलिया के निकट बोगाजकोइ से, जो हित्ती राजाओं की राजधानी थी, कीलाक्षर इष्टिकाओं में सुरक्षित कुछ अभिलेख मिले हैं। हिन्द-यूरोपीय भाषा में यह प्राचीनतम लिखित सामग्री है। इनका समय 1400 ई. पू. माना गया है।
  • यह माना जाता है कि आर्य संस्कृति की सर्वाधिक प्रमुख विशेषता हिन्द-यूरोपीय भाषा है।
  • बोगाजकोइ से प्राप्त अभिलेखों में तथाकथित ऋग्वैदिक देवताओं को हित्ती-मितन्नी राजाओं के संधि-साक्षी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कभी यह नहीं बताया गया है कि ऋग्वेद में बोगाजकोई से आये देवताओं की उपस्थिति है, जबकि संभावना इसी की है।
  • बोगाजकोई में 'अग्नि' साक्षी नहीं है। अग्नि तो अवेस्तावादियों के देवता थे, जिनका प्रभाव चंद्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में था।
  • बाद के मौर्य सम्राटों ने ईरानी प्रभाव को उतार फेंकने की कोशिश की, जिसका नतीजा बृहद्रथ हत्याकांड के रूप में सामने आया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वैदिक भारत और संस्कृत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 20 फ़रवरी, 2013।

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