ध्वज व्रत: Difference between revisions

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*इस प्रकार 4-4 मासों के तीन क्रम आते हैं।  
*इस प्रकार 4-4 मासों के तीन क्रम आते हैं।  
*समय की लम्बाई के अनुसार विभिन्न लोकों में पहुँच होती है।
*समय की लम्बाई के अनुसार विभिन्न लोकों में पहुँच होती है।
*यदि बारह वर्षों तक ऐसा किया जाये तो कर्ता को विष्णु से सायुज्य प्राप्त हो जाती है।<ref>विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|146|1-14) एवं हेमाद्रि (व्रत0 2, पृ0 829-831) में इसे चतुर्मूर्तिव्रत कहा गया है। </ref>
*यदि बारह वर्षों तक ऐसा किया जाये तो कर्ता को विष्णु से सायुज्य प्राप्त हो जाती है।<ref>विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|146|1-14) एवं हेमाद्रि (व्रत0 2, पृ0 829-831) में इसे चतुर्मूर्तिव्रत कहा गया है।</ref>


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Revision as of 04:46, 11 September 2010

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • गरुड़, तालवृक्ष[1], मकर (घड़ियाल) एवं हरिण क्रम से वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न एवं अनिरुद्ध के झण्डों पर होते हैं।
  • उनके वस्त्रों एवं झण्डों का रंग क्रम से पीला, नीला, श्वेत एवं लाल होता है।
  • चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ एवं आषाढ़ में प्रतिदिन क्रम से गरुण आदि की पूजा उनके अनुकूल रंगीन वस्त्रों एवं पुष्पों की जाती है।
  • चार मासों के अन्त में ब्राह्मणों को तदनुकूल रंगीन वस्त्र दिये जाते हैं।
  • इस प्रकार 4-4 मासों के तीन क्रम आते हैं।
  • समय की लम्बाई के अनुसार विभिन्न लोकों में पहुँच होती है।
  • यदि बारह वर्षों तक ऐसा किया जाये तो कर्ता को विष्णु से सायुज्य प्राप्त हो जाती है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिससे ताड़ी निकाली जाती है, अमरकोश में तालांक नामक मदिरा का उल्लेख है, बलराम उसके प्रेमी माने जाते हैं
  2. विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|146|1-14) एवं हेमाद्रि (व्रत0 2, पृ0 829-831) में इसे चतुर्मूर्तिव्रत कहा गया है।

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