शीतला अष्टमी व्रत: Difference between revisions
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Revision as of 20:05, 14 September 2010
- यह व्रत करने से कुल में दाह ज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोड़े, नेत्रों के सारे रोग, शीतला की फुन्सियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित रोग दूर हो जाते हैं।
- व्रती को प्रात:काल शीतलजल से स्नान करके संकल्प करें।
- देवी को भोग लगाने वाले सभी पदार्थ एक दिन पहले ही बनाये जाते हैं अर्थात शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है।
- यह व्रत बसौड़ा नाम से भी जाना जाता है।
- मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि एक दिन पहले से ही बनाए जाते हैं अर्थात व्रत के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता।
- व्रती रसोईघर की दीवार पर 5 अंगुली घी में डुबोकर छापा लगाया जाता है। इस पर रोली, चावल, आदि चढ़ाकर माँ के गीत गाए जाते हैं।
- इस दिन शीतला स्त्रोत तथा शीतला माता की कथा भी सुननी चाहिए।
- रात्रि में दीपक जलाकर एक थाली में भात, रोटी, दही, चीनी, जल, रोली, चावल, मूँग, हल्दी, मोठ, बाजरा आदि डालकर मन्दिर में चढ़ाना चाहिए।
- इसके साथ ही चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करते हैं।
- इसके बाद मोठ, बाजरा का बयाना निकाल कर उस पर रुपया रखकर अपनी सास जी के चरणस्पर्श कर उन्हें दें उसके पश्चात किसी वृध्दा को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए।
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