मासरक्षपौर्णमसी व्रत: Difference between revisions

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*सधवा नारियों का गुड़, बढ़िया भोजन; घी, दूघ आदि से सम्मान करना चाहिए।  
*सधवा नारियों का गुड़, बढ़िया भोजन; घी, दूघ आदि से सम्मान करना चाहिए।  
*स्वयं हविष्य भोजन करना चाहिए।  
*स्वयं हविष्य भोजन करना चाहिए।  
*अन्त में सोने के साथ रंगीन वस्त्र का दानकरना चाहिए <ref>विष्णुधर्मोत्तरपुराण (192|1-15)</ref>; <ref>नीलमतपुराण (पृ0 47)</ref>
*अन्त में सोने के साथ रंगीन वस्त्र का दानकरना चाहिए।<ref>विष्णुधर्मोत्तरपुराण (192|1-15)</ref>; <ref>नीलमतपुराण (पृ0 47)</ref>
 
 



Revision as of 08:00, 19 September 2010

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह व्रत कार्तिक शुक्ल 15 पर आरम्भ होता है।
  • शास्त्रोक्त विधि से भोजन; नमक से बने वृत्त, तथा चन्दन लेप से निर्मित चन्द्र की दस नक्षत्रों के साथ पूजा करनी चाहिए, यथा–कार्तिक में कृत्रिका एवं रोहिणी के साथ, मार्गशीर्ष में मृगशिरा एवं आर्द्रा के साथ.....और यह क्रम आश्विन तक चला जाता है।
  • सधवा नारियों का गुड़, बढ़िया भोजन; घी, दूघ आदि से सम्मान करना चाहिए।
  • स्वयं हविष्य भोजन करना चाहिए।
  • अन्त में सोने के साथ रंगीन वस्त्र का दानकरना चाहिए।[1]; [2]

 



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णुधर्मोत्तरपुराण (192|1-15)
  2. नीलमतपुराण (पृ0 47)

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