निकुम्भ पूजा: Difference between revisions
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Revision as of 07:04, 7 December 2010
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
(1)चैत्र शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को उपवास रखा जाता है।
- पूर्णिमा को हरि पूजा की जाती है।
- निकुम्भ पिशाचों से युद्ध करने जाते हैं।
- मिट्टी या घास का पुतला बनाया जाता है और प्रत्येक घर में पुष्पों, नैवेद्य आदि तथा ढोल एवं बाँसुरी से मध्याह्न में पिशाचों की पूजा की जाती है।
- पुनः चन्द्रोदय के समय पूजा की जाती है।
- पुनः उन्हें विदा दे दी जाती है।
- कर्ता को संगीत तथा लोगों के साथ एक बड़ा उत्सव मनाना चाहिए।
- घास एवं लकड़ी के टुकड़ों से बने सर्प से लोगों को खेलना चाहिए तथा तीन या चार दिनों के उपरान्त उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर वर्ष भर रखना चाहिए।[1]
- लोगों (नारियों, बच्चों एवं बूढ़ों को छोड़कर) को दिन में भोजन नहीं करना चाहिए, गृह द्वार पर अग्नि को रखना चाहिए तथा उसकी एवं पूर्णिमा, रुद्र, उमा, स्कन्द, नन्दीश्वर तथा रेवन्त की पूजा करनी चाहिए।
- तिल, चावल एवं माष से निकुम्भ की पूजा करनी चाहिए।
- रात्रि में ब्रह्म-भोज, लोगों को मांसरहित भोजन कराना चाहिए।
- उस रात्रि में संगीत, गान एवं नृत्य होता है।
- दूसरे दिन कुछ विश्राम तथा उसके उपरान्त प्रातःकाल शरीर को कीचड़ से धूमिल कर पिशाचों सा व्यवहार करना चाहिए तथा लज्जाहीन हो अपने मित्रों पर भी कीचड़ छोड़ना चाहिए तथा अश्लील शब्दों का व्यवहार करना चाहिए।
- अपरान्ह्न में स्नान करना चाहिए।
- जो इस उत्सव में भाग नहीं लेता है वह पिशाचों से प्रभावित होता है।[2]
(3)चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को होता है।
- शम्भु तथा पिशाचों के संग में निकुम्भ की पूजा की जाती है।
- उस रात्रि लोग अपने बच्चों को पिशाचों से बचाते हैं और वेश्या का नृत्य देखते हैं।[3]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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