आमर्दकी व्रत: Difference between revisions
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*इस व्रत में आमर्दकी वृक्ष के नीचे [[विष्णु]] की पूजा में जागर (जागरण) करना चाहिए। आमर्दकी वृक्ष के जन्म की कथा सुननी चाहिए। <ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, पृष्ठ 1214-1222)।</ref> | *इस व्रत में आमर्दकी वृक्ष के नीचे [[विष्णु]] की पूजा में जागर (जागरण) करना चाहिए। | ||
*आमर्दकी वृक्ष के जन्म की कथा सुननी चाहिए।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, पृष्ठ 1214-1222)।</ref> | |||
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Latest revision as of 08:21, 21 March 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत किसी भी मास विशेषतः फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वादशी पर करना चाहिए।
- आमर्दकी घात्री (आमलक) से इसको एक वर्ष तक करना चाहिए।
- विभिन्न नक्षत्रों में द्वादशी विभिन्न नामों से घोषित है– विजया (श्रवण के साथ), जयन्ती (रोहिणी के साथ), पापनाशिनी (पुष्य के साथ), इस अन्तिम द्वादशी पर उपवास करना एक सहस्र एकादशियों के बराबर होता है।
- इस व्रत में आमर्दकी वृक्ष के नीचे विष्णु की पूजा में जागर (जागरण) करना चाहिए।
- आमर्दकी वृक्ष के जन्म की कथा सुननी चाहिए।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, पृष्ठ 1214-1222)।
संबंधित लेख
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