योगिनी एकादशी: Difference between revisions

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Latest revision as of 05:44, 20 June 2017

योगिनी एकादशी
अनुयायी हिंदू
उद्देश्य यह एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुदंर रूप, गुण और यश देने वाली है।
प्रारम्भ पौराणिक काल
तिथि आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी
उत्सव इस दिन व्रती रहकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराके भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए।
अन्य जानकारी इस एकादशी का व्रत करने से संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं और पीपल वृक्ष के काटने जैसे पाप तक से मुक्ति मिल जाती है।

योगिनी एकादशी को भगवान नारायण की पूजा-आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी योगिनी हैं। श्री नारायण भगवान विष्णु का ही नाम है।

विधि

इस दिन व्रती रहकर भगवान नारायण की मूर्ति को स्नान कराके भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए। अन्य एकादशियों के समान ही भगवान विष्णु अथवा उनके लक्ष्मी नारायण रूप की पूजा-आराधना और दान आदि की क्रियाएँ करें। ग़रीब ब्राह्मणों को दान देना परम श्रेयस्कर है। इस एकादशी का व्रत करने से संपूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं और पीपल वृक्ष के काटने जैसे पाप तक से मुक्ति मिल जाती है। किसी के दिए हुए शाप का निवारण हो जाता है। इस व्रत को करने से व्रती इस लोक में सुख भोगकर अंत में मोक्ष प्राप्त कर स्वर्गलोक की प्राप्ति करता है। यह एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुदंर रूप, गुण और यश देने वाली है।

कथा

प्राचीन काल में अलकापुरी में राजा कुबेर के यहाँ हेम नामक एक माली रहता था। उसका कार्य नित्यप्रति भगवान शंकर के पूजनार्थ मानसरोवर से फूल लाना था। एक दिन उसे अपनी पत्नी के साथ स्वछ्न्द विहार करने के कारण फूल लाने में बहुत परेशानी हो गई। वह दरबार में विलम्ब से पहुँचा। इससे क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का शाप दे दिया। शाप से कोढ़ी होकर हेम माली इधर-उधर भटकता हुआ एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। ऋषि ने अपने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया। तब उन्होंने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से हेम माली का कोढ़ समाप्त हो गया और वह दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गया।


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