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मीलादुन्नबी को मनाने की शुरुआत [[मिस्र]] में 11वीं सदी में हुई। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इसे मनाना शुरू किया। पैग़म्बर के रुखसत होने के चार सदियों बाद शियाओं ने इसे त्योहार की शक्ल दी। [[अरब देश|अरब]] के सूफ़ी बूसीरी, जो 13वीं सदी में हुए, उन्हीं की नज्मों को पढ़ा जाता है। इस दिन की फजीलत इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसी दिन पैग़म्बर साहब रुखसत हुए थे।  
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[[भारत]] के कुछ हिस्सों में इस मौक़े को लोग बारावफात के तौर पर मनाते हैं। अपनी रुखसत से पहले पैग़म्बर, बारा यानी बारह दिन बीमार रहे थे। वफात का मतलब है, इंतकाल। इसलिए पैग़म्बर साहब के रुखसत होने के दिन को बारवफात कहते हैं। उन दिनों उलेमा व मजहबी दानिश्वर तकरीर व तहरीर के द्वार मुहम्मद साहब के जीवन और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह देते है। इस दिन उनके पैगाम पर चलने का संकल्प लिया जाता है।  
[[भारत]] के कुछ हिस्सों में इस मौक़े को लोग बारावफात के तौर पर मनाते हैं। अपनी रुखसत से पहले पैग़म्बर, बारा यानी बारह दिन बीमार रहे थे। वफात का मतलब है, इंतकाल। इसलिए पैग़म्बर साहब के रुखसत होने के दिन को बारवफात कहते हैं। उन दिनों उलेमा व मज़हबी दानिश्वर तकरीर व तहरीर के द्वार मुहम्मद साहब के जीवन और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह देते है। इस दिन उनके पैगाम पर चलने का संकल्प लिया जाता है।  
==उद्देश्य==
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thumb|ईद ए मीलाद के अवसर पर जुलूस निकालते इस्लामिक लोग|250px ईद-ए-मीलाद / बारावफात / मीलादुन्नबी
ईद ए मीलाद या पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद साहब का जन्म दिवस बारावफात अथवा मीलादुन्नबी इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार है। इस अवसर पर पैग़म्बर के जन्म को याद किया जाता है और उनका शुक्रिया अदा किया जाता है कि वे तमाम आलम के लिए रहमत बनकर आए थे। ईद-ए- मीलाद यानी ईदों से बड़ी ईद के दिन, तमाम उलेमा और शायर कसीदा-अल-बुरदा शरीफ़ पढ़ते हैं। इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक पैग़म्बर मुहम्मद साहब का जन्म रबीउल अव्वल महीने की 12वीं तारीख को हुआ था। हालांकि पैग़म्बर मुहम्मद का जन्मदिन इस्लाम के इतिहास में सबसे अहम दिन है। फिर भी न तो पैग़म्बर साहब ने और न ही उनकी अगली पीढ़ी ने इस दिन को मनाया। दरअसल, वे सादगी पंसद थे। उन्होंने कभी इस बात पर जोर नहीं दिया कि किसी की पैदाइश पर जश्न जैसा माहौल या फिर किसी के इंतकाल का मातम मनाया जाए।

इतिहास

मीलादुन्नबी को मनाने की शुरुआत मिस्र में 11वीं सदी में हुई। फातिमिद वंश के सुल्तानों ने इसे मनाना शुरू किया। पैग़म्बर के रुखसत होने के चार सदियों बाद शियाओं ने इसे त्योहार की शक्ल दी। अरब के सूफ़ी बूसीरी, जो 13वीं सदी में हुए, उन्हीं की नज्मों को पढ़ा जाता है। इस दिन की फजीलत इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि इसी दिन पैग़म्बर साहब रुखसत हुए थे।

बारावफात

भारत के कुछ हिस्सों में इस मौक़े को लोग बारावफात के तौर पर मनाते हैं। अपनी रुखसत से पहले पैग़म्बर, बारा यानी बारह दिन बीमार रहे थे। वफात का मतलब है, इंतकाल। इसलिए पैग़म्बर साहब के रुखसत होने के दिन को बारवफात कहते हैं। उन दिनों उलेमा व मज़हबी दानिश्वर तकरीर व तहरीर के द्वार मुहम्मद साहब के जीवन और उनके आदर्शों पर चलने की सलाह देते है। इस दिन उनके पैगाम पर चलने का संकल्प लिया जाता है।

उद्देश्य

[[चित्र:Mecca-Masjid-Hyderabad.jpg|मक्का मस्जिद, हैदराबाद|thumb|200px]] एकेश्वरवाद की शिक्षा दी जाती है कि अल्लाह एक है। और पाक और बेऐब है, उस जैसा कोई नहीं। ईद-ए मीलादुन्नबी को हालांकि बड़े पैमाने पर नहीं मनाया जाता है फिर भी मोहम्मद साहब के पैगाम को जानने और उस पर अमल करने के लिए इसे खास दिन माना जाता है। लोग इस दिन इबादत करते हैं। हिन्दुस्तान में भी मीलादुन्नबी उत्साह से मनाया जाता है। जम्मू-कश्मीर के हज़रत बल में बड़ा जलसा होता है। सुबह की नमाज (फज्र) के बाद उनकी मुबारक चीजों का मुजाहरा किया जाता है। पूरी रात दुआ माँगी जाती है। जिससे हजारों लोग शरीक होते हैं। ऐसा ही कुछ नज़ारा दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह, अजमेर-ए-शरीफ के हज़रत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर होता है। इसके अलावा लखनऊ में बारावफात के दिन सुन्नी मुसलमान मध-ए-सहाबा जुलूस निकालते हैं। हैदराबाद की मक्का मस्जिद और दूसरी मस्जिदों में इस दिन लोग दुआएं माँगते हैं।


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