महामाघी: Difference between revisions
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*[[प्रयाग]], अन्य पवित्र नदियाँ एवं तालाबों में प्रातःकाल महास्नान से सभी पाप कट जाते हैं। | *[[प्रयाग]], अन्य पवित्र नदियाँ एवं तालाबों में प्रातःकाल महास्नान से सभी पाप कट जाते हैं। | ||
*तमिल देश में 'मख' एक वार्षिक मन्दिरोत्सव है और महामख 12 वर्षों में एक बार होता है, जबकि महामघ नामक तालाब में (कुम्भकोंणम् नामक स्थान में) स्नान के लिए एक बृहद् मेला लगता है। | *तमिल देश में 'मख' एक वार्षिक मन्दिरोत्सव है और महामख 12 वर्षों में एक बार होता है, जबकि महामघ नामक तालाब में (कुम्भकोंणम् नामक स्थान में) स्नान के लिए एक बृहद् मेला लगता है। | ||
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Latest revision as of 11:01, 17 January 2013
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- जब सूर्य श्रवण नक्षत्र में तथा चन्द्र मघा में हो तो उसे महामाघी कहा जाता है।
- राजमार्तण्ड[1] में आया है कि सूर्योदय के समय जल बोल उठता है–'मैं किस पापी को या ब्रह्म हत्यारे को, शुद्ध करूँ?'; वर्षक्रियाकौमुदी (490, भविष्यपुराण से उद्धरण); स्मृतिकौस्तुभ (439, पद्मपुराण); पुरुषार्थचिन्तामणि (313-314) में आया है कि जब शनि मेष में, चन्द्र एवं बृहस्पति सिंह में तथा सूर्य श्रवण नक्षत्र में होता है तो महामाघी कहलाती है।
- प्रयाग, अन्य पवित्र नदियाँ एवं तालाबों में प्रातःकाल महास्नान से सभी पाप कट जाते हैं।
- तमिल देश में 'मख' एक वार्षिक मन्दिरोत्सव है और महामख 12 वर्षों में एक बार होता है, जबकि महामघ नामक तालाब में (कुम्भकोंणम् नामक स्थान में) स्नान के लिए एक बृहद् मेला लगता है।
- यह मेला प्रयाग के कुम्भ मेला के समान है।
- यह उत्सव 'मंमगम्' के नाम से विख्यात है और मघा नक्षत्र में पड़ने वाली पूर्णिमा में तथा जब बृहस्पति मघा में या सिंह राशि में पड़ता है तो यह मनाया जाता है।
- दक्षिणी पंचांगों के अनुसार यह सन् 1955 ई॰ को मनाया गया था।
- ऐसा प्रकाशित हुआ था कि उस समय दो बजे रात्रि से प्रारम्भ होकर 8 से 10 घण्टे तक लगभग एक लाख लोगों ने कुम्भकोणम के महामखम् तालाब में स्नान किया था।
- तालाब से कीचड़युक्त जल बाहर निकाला गया था और कावेरी से नया जल भरा गया था।
- यह आश्चर्य है कि मध्यकालीन निबन्धों में महामखम् या कुम्भ मेला का कोई उल्लेख नहीं है।
- महान हर्ष प्रति पाँचवें वर्ष प्रयाग में संगम के पश्चिम भाग में एक बड़ा मेला लगाते थे और अपने कोष का धन बाँट देते थे।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ राजमार्तण्ड, (1366
अन्य संबंधित लिंक
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