पांडव: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "रूण" to "रुण") |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
'''पांडव | '''पांडव''' अथवा '''पाण्डव''' [[महाभारत]] के वे पाँच प्रसिद्ध वीर योद्धा थे, जिन्हें महाराज [[पाण्डु]] और [[कुंती]] के पुत्रों के रूप में जाना जाता है। महाभारत का अधिकांश घटनाक्रम पाण्डवों और [[कौरव|कौरवों]] के से सम्बन्धित है। पाण्डु द्वारा अज्ञानतावश [[किन्दम|ऋषि किन्दम]] तथा उनकी पत्नी की मृत्यु वन में उस समय हो गई, जब वे मृग रूप में प्रणय क्रिया कर रहे थे। अपनी मृत्यु से पूर्व किन्दम ऋषि ने पाण्डु को यह शाप दिया कि- "यदि काम के वशीभूत होकर उन्होंने अपनी पत्नी के साथ सहवास किया तो वे मृत्यु को प्राप्त होंगे"। पाण्डु की पत्नी कुंती को [[दुर्वासा|महर्षि दुर्वासा]] ने एक ऐसा [[मंत्र]] दिया था, जिसके द्वारा वह किसी भी [[देवता]] का आह्वान कर सकती थी। ऐसे समय में कुंती ने [[धर्मराज (यमराज)|धर्मराज]], [[वायु देव|वायु]] और [[इन्द्र|इन्द्र देव]] से क्रमश: [[युधिष्ठिर]], [[भीम]] तथा [[अर्जुन]] जैसे पुत्रों को पाया। कुंती ने यह मंत्र [[माद्री]] को भी प्रदान किया, जिससे माद्री ने [[अश्विनीकुमार|अश्विनीकुमारों]] को आमन्त्रित किया और [[नकुल]] तथा [[सहदेव]] जैसे पुत्रों की माता बनी। | ||
{{tocright}} | {{tocright}} | ||
एक बार सभी देवगण [[गंगा नदी|गंगा]] में स्नान करने के लिए | ==पौराणिक कथा== | ||
एक बार सभी देवगण [[गंगा नदी|गंगा]] में [[स्नान]] करने के लिए गये। वहाँ उन्होंने गंगा में बहता एक [[कमल]] का फूल देखा। इन्द्र उसका कारण खोजने गंगा के मूलस्थान की ओर बढ़े। [[गंगोत्री]] के पास एक सुंदरी रो रही थी। उसका प्रत्येक आंसू गंगा जल में गिरकर स्वर्ण कमल बन जाता था। इन्द्र ने उसके दु:ख का कारण जानना चाहा तो वह इन्द्र को लेकर [[हिमालय पर्वत]] के शिखर पर पहुँची। वहाँ एक देव तरुण एक सुंदरी के साथ क्रीड़ारत था। इन्द्र ने उसकी अपमानजनक भर्त्सना की तथा दुराभिमान के साथ बताया कि वह सारा स्थान उसके अधीन है। उस देव पुरुष के दृष्टिपात मात्र से ही इन्द्र चेतनाहीन होकर जड़वत हो गये। देव पुरुष ने इन्द्र को बताया कि वह [[रुद्र]] हैं तथा उन्होंने इन्द्र को एक [[पर्वत]] हटाकर गुफ़ा का मुंह खोलने का आदेश दिया। ऐसा करने पर इन्द्र ने देखा कि गुफ़ा के अंदर चार अन्य तेजस्वी इन्द्र विद्यमान थे। रुद्र के आदेश पर इन्द्र ने भी वहाँ प्रवेश किया। रुद्र ने कहा- "तुमने दुराभिमान के कारण मेरा अपमान किया है, अत: तुम पांचों [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर मानव-रूप में जन्म लोगे। तुम पांचों का [[विवाह]] इस सुंदरी के साथ होगा, जो कि [[लक्ष्मी]] है। तुम सब सत्कर्मों का संपादन करके पुन: इन्द्रलोक की प्राप्ति कर पाओगे।" अत: पांचों पांडव तथा [[द्रौपदी]] का जन्म हुआ। पंचम इन्द्र ही पांडवों में [[अर्जुन]] हुए थे।<ref>महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 196, श्लोक 1 से 36 तक</ref> | |||
== | ==किन्दम ऋषि का शाप== | ||
एक बार | एक बार [[हस्तिनापुर]] के महाराज [[पाण्डु]] अपनी दोनों पत्नियों- [[कुन्ती]] तथा [[माद्री]] के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ। पाण्डु ने तत्काल अपने [[बाण अस्त्र|बाण]] से उस मृग को घायल कर दिया। ये मृग और कोई नहीं, अपितु [[किन्दम|ऋषि किन्दम]] और उनकी पत्नी थीं। मरते हुये मृग ने पाण्डु को शाप दिया- "राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है, अतः जब कभी भी तू अपनी भार्या के साथ मैथुनरत होगा, तेरी भी मृत्यु हो जायेगी।" इस शाप से पाण्डु अत्यन्त दुःखी हुये और अपनी रानियों से बोले- "हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग करके इस वन में ही रहूँगा। तुम लोग [[हस्तिनापुर]] लौट जाओ़"। उनके वचनों को सुन कर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा- "नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिये।" पाण्डु ने उनके अनुरोध को स्वीकार करके उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। | ||
====पाण्डु की व्यथा==== | |||
ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले | इसी दौरान राजा पाण्डु ने [[अमावस्या]] के दिन बड़े-बड़े [[ऋषि]]-मुनियों को [[ब्रह्मा]] के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को भी साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा- "राजन! कोई भी निःसन्तान पुरुष [[ब्रह्मलोक]] जाने का अधिकारी नहीं हो सकता। अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।" ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले- "हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो रहा है, क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?' | ||
==पाण्डवों का जन्म== | |||
महाराज पाण्डु की व्यथा जानकर उनकी पत्नी कुन्ती बोली- "हे आर्यपुत्र! [[दुर्वासा ऋषि]] ने मुझे ऐसा [[मन्त्र]] प्रदान किया है, जिससे मैं किसी भी [[देवता]] का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस [[देवता]] को बुलाऊँ। इस पर पाण्डु ने [[धर्मराज (यमराज)|धर्मराज]] को आमन्त्रित करने का आदेश दिया। कुंती के आह्वान पर धर्मराज ने आकर उसे एक पुत्र प्रदान किया, जिसका नाम [[युधिष्ठर]] रखा गया। | |||
कालान्तर में पाण्डु ने कुन्ती को पुनः पुत्र प्राप्ति की इच्छा से दो बार [[वायु देव]] तथा [[इन्द्र|इन्द्र देव]] को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से [[भीम (पांडव)|भीम]] तथा [[इन्द्र]] से [[अर्जुन]] की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने [[माद्री]] को भी उस मन्त्र की दीक्षा दी। इस मंत्र की सहायता से माद्री ने [[अश्विनीकुमार|अश्विनीकुमारों]] को आमन्त्रित किया और [[नकुल]] तथा [[सहदेव]] का जन्म हुआ। | |||
====पाण्डु की मृत्यु==== | |||
एक दिन राजा पाण्डु अपनी दूसरी रानी माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत हुये ही थे कि ऋषि किन्दम के शापवश उनकी मृत्यु हो गई। स्वयं को माण्डु की मृत्यु का कारण मानकर माद्री भी उनके साथ सती हो गई, किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिये [[कुन्ती]] [[हस्तिनापुर]] लौट आई। | |||
==पांडवों का विशिष्ट चरित्र== | ==पांडवों का विशिष्ट चरित्र== | ||
पांचों पांडवों का विशिष्ट चरित्र | पांचों पांडवों का विशिष्ट चरित्र था- | ||
*[[युधिष्ठर]] धर्मात्मा एवं सत्यवादी थे। | *[[युधिष्ठर]] धर्मात्मा एवं सत्यवादी थे। | ||
*[[भीम (पांडव)|भीम]] अपनी शक्ति तथा भूख के लिए जाने जाते थे। | *[[भीम (पांडव)|भीम]] अपनी शक्ति तथा भूख के लिए जाने जाते थे। | ||
*[[अर्जुन]] महान धर्नुधर के रूप में | *[[अर्जुन]] महान धर्नुधर के रूप में विश्व विख्यात थे। | ||
*[[नकुल]] निपुण घुड़सवार थे। | *[[नकुल]] निपुण घुड़सवार और पशुओं के विशेषज्ञ थे। | ||
*[[सहदेव]] | *[[सहदेव]] निपुण तलवार भांजक थे। | ||
==महाभारत== | |||
पांडवों का राज्य धोखे से उनके चचेरे भाईयों [[कौरव|कौरवों]] द्वारा छीन लिया गया, जिस कारण कौरवों के साथ पाण्डवों का एक महान युद्ध हुआ, जो [[महाभारत]] के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में भगवान [[कृष्ण]] ने उनकी सहायता की, जो भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] थे। इस युद्ध से कौरवों की मृत्यु और पराजय हुई। | |||
{{menu}} | {{menu}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{महाभारत}} | {{महाभारत}}{{महाभारत2}} | ||
{{महाभारत2}} | [[Category:महाभारत]][[Category:पौराणिक कोश]] | ||
[[Category:महाभारत]] | |||
[[Category:पौराणिक कोश]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 08:43, 19 July 2013
पांडव अथवा पाण्डव महाभारत के वे पाँच प्रसिद्ध वीर योद्धा थे, जिन्हें महाराज पाण्डु और कुंती के पुत्रों के रूप में जाना जाता है। महाभारत का अधिकांश घटनाक्रम पाण्डवों और कौरवों के से सम्बन्धित है। पाण्डु द्वारा अज्ञानतावश ऋषि किन्दम तथा उनकी पत्नी की मृत्यु वन में उस समय हो गई, जब वे मृग रूप में प्रणय क्रिया कर रहे थे। अपनी मृत्यु से पूर्व किन्दम ऋषि ने पाण्डु को यह शाप दिया कि- "यदि काम के वशीभूत होकर उन्होंने अपनी पत्नी के साथ सहवास किया तो वे मृत्यु को प्राप्त होंगे"। पाण्डु की पत्नी कुंती को महर्षि दुर्वासा ने एक ऐसा मंत्र दिया था, जिसके द्वारा वह किसी भी देवता का आह्वान कर सकती थी। ऐसे समय में कुंती ने धर्मराज, वायु और इन्द्र देव से क्रमश: युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन जैसे पुत्रों को पाया। कुंती ने यह मंत्र माद्री को भी प्रदान किया, जिससे माद्री ने अश्विनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव जैसे पुत्रों की माता बनी।
पौराणिक कथा
एक बार सभी देवगण गंगा में स्नान करने के लिए गये। वहाँ उन्होंने गंगा में बहता एक कमल का फूल देखा। इन्द्र उसका कारण खोजने गंगा के मूलस्थान की ओर बढ़े। गंगोत्री के पास एक सुंदरी रो रही थी। उसका प्रत्येक आंसू गंगा जल में गिरकर स्वर्ण कमल बन जाता था। इन्द्र ने उसके दु:ख का कारण जानना चाहा तो वह इन्द्र को लेकर हिमालय पर्वत के शिखर पर पहुँची। वहाँ एक देव तरुण एक सुंदरी के साथ क्रीड़ारत था। इन्द्र ने उसकी अपमानजनक भर्त्सना की तथा दुराभिमान के साथ बताया कि वह सारा स्थान उसके अधीन है। उस देव पुरुष के दृष्टिपात मात्र से ही इन्द्र चेतनाहीन होकर जड़वत हो गये। देव पुरुष ने इन्द्र को बताया कि वह रुद्र हैं तथा उन्होंने इन्द्र को एक पर्वत हटाकर गुफ़ा का मुंह खोलने का आदेश दिया। ऐसा करने पर इन्द्र ने देखा कि गुफ़ा के अंदर चार अन्य तेजस्वी इन्द्र विद्यमान थे। रुद्र के आदेश पर इन्द्र ने भी वहाँ प्रवेश किया। रुद्र ने कहा- "तुमने दुराभिमान के कारण मेरा अपमान किया है, अत: तुम पांचों पृथ्वी पर मानव-रूप में जन्म लोगे। तुम पांचों का विवाह इस सुंदरी के साथ होगा, जो कि लक्ष्मी है। तुम सब सत्कर्मों का संपादन करके पुन: इन्द्रलोक की प्राप्ति कर पाओगे।" अत: पांचों पांडव तथा द्रौपदी का जन्म हुआ। पंचम इन्द्र ही पांडवों में अर्जुन हुए थे।[1]
किन्दम ऋषि का शाप
एक बार हस्तिनापुर के महाराज पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों- कुन्ती तथा माद्री के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ। पाण्डु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। ये मृग और कोई नहीं, अपितु ऋषि किन्दम और उनकी पत्नी थीं। मरते हुये मृग ने पाण्डु को शाप दिया- "राजन! तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है, अतः जब कभी भी तू अपनी भार्या के साथ मैथुनरत होगा, तेरी भी मृत्यु हो जायेगी।" इस शाप से पाण्डु अत्यन्त दुःखी हुये और अपनी रानियों से बोले- "हे देवियों! अब मैं अपनी समस्त वासनाओं का त्याग करके इस वन में ही रहूँगा। तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ़"। उनके वचनों को सुन कर दोनों रानियों ने दुःखी होकर कहा- "नाथ! हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकतीं। आप हमें भी वन में अपने साथ रखने की कृपा कीजिये।" पाण्डु ने उनके अनुरोध को स्वीकार करके उन्हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी।
पाण्डु की व्यथा
इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा। उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को भी साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा- "राजन! कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता। अतः हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।" ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले- "हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ हो रहा है, क्योंकि सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो?'
पाण्डवों का जन्म
महाराज पाण्डु की व्यथा जानकर उनकी पत्नी कुन्ती बोली- "हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है, जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ। इस पर पाण्डु ने धर्मराज को आमन्त्रित करने का आदेश दिया। कुंती के आह्वान पर धर्मराज ने आकर उसे एक पुत्र प्रदान किया, जिसका नाम युधिष्ठर रखा गया।
कालान्तर में पाण्डु ने कुन्ती को पुनः पुत्र प्राप्ति की इच्छा से दो बार वायु देव तथा इन्द्र देव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। तत्पश्चात पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को भी उस मन्त्र की दीक्षा दी। इस मंत्र की सहायता से माद्री ने अश्विनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ।
पाण्डु की मृत्यु
एक दिन राजा पाण्डु अपनी दूसरी रानी माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत हुये ही थे कि ऋषि किन्दम के शापवश उनकी मृत्यु हो गई। स्वयं को माण्डु की मृत्यु का कारण मानकर माद्री भी उनके साथ सती हो गई, किन्तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्ती हस्तिनापुर लौट आई।
पांडवों का विशिष्ट चरित्र
पांचों पांडवों का विशिष्ट चरित्र था-
- युधिष्ठर धर्मात्मा एवं सत्यवादी थे।
- भीम अपनी शक्ति तथा भूख के लिए जाने जाते थे।
- अर्जुन महान धर्नुधर के रूप में विश्व विख्यात थे।
- नकुल निपुण घुड़सवार और पशुओं के विशेषज्ञ थे।
- सहदेव निपुण तलवार भांजक थे।
महाभारत
पांडवों का राज्य धोखे से उनके चचेरे भाईयों कौरवों द्वारा छीन लिया गया, जिस कारण कौरवों के साथ पाण्डवों का एक महान युद्ध हुआ, जो महाभारत के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में भगवान कृष्ण ने उनकी सहायता की, जो भगवान विष्णु के अवतार थे। इस युद्ध से कौरवों की मृत्यु और पराजय हुई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 196, श्लोक 1 से 36 तक