मौन व्रत: Difference between revisions

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Revision as of 06:49, 7 December 2010

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • पूर्णिमान्त गणना से श्रावण के अन्त के उपरान्त भाद्रपद प्रतिपदा से 16 दिनों तक कर्ता को दूर्वा की शाखाओं की 16 गाँठ बनाकर दाहिने हाथ में (स्त्रियों को बायें हाथ में) रखना चाहिए।
  • सोलहवें दिन पानी लाने, गेहूँ को पीसने तथा उससे नैवेद्य बनाने तथा भोजन करते समय मौन रखना चाहिए।
  • शिव प्रतिमा या लिंग को जल, दूध, घी, मधु एवं शक्कर से स्नान कराकर पूजा करना तथा 'शिव प्रसन्न हों' ऐसा कहना चाहिए।
  • इससे सन्तति प्राप्ति एवं कामनाओं की पूर्ति होती है।[1]; [2]
  • आठ, छ: या तीन मासों तक एक मास, अर्ध मास या बारह, छ: या तीन दिनों तक या एक दिन तक मौन रहना चाहिए।
  • मौनव्रत से सर्वार्थ सिद्धि होती है।[3]
  • कर्ता को भोजन करते समय 'हूँ' भी नहीं कहना चाहिए।
  • मन, वचन एवं कर्म से हिंसा त्याग; व्रत समाप्ति पर चन्दन का लिंग निर्माण तथा गंध तथा अन्य उपचारों से उसकी पूजा, मन्दिर को विभिन्न दिशाओं में सोने एवं पीतल के घण्टों का अर्पण; शैव एवं ब्राह्मणों को भोज; सिर पर पीतल के पात्र में लिंग रखकर जनमार्ग से मौन रूप से मन्दिर को जाना तथा मन्दिर प्रतिमा के दाहिने पक्ष में लिंग स्थापना और उसकी बार-बार पूजा करना।
  • कहा जाता है ऐसा करने से कर्ता शिव लोक में जाता है।[4] [5]

 


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 482-492)
  2. निर्णयामृत (26-27)
  3. ('मौन सर्वार्थसाघकम्, पृ0 880)
  4. हेमाद्रि (व्रत0 2, 879-883,
  5. शिवधर्म0 से उद्धरण

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