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*किन्तु अन्त में निष्कर्ष है– 'नारियाँ पापों एवं विकारों की जड़ हैं तथा धर्म, अर्थ एवं काम की प्राप्ति के साधन भी हैं, उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए, प्रत्युत रत्नों के समान उनकी रक्षा की जानी चाहिए।<ref>(श्लोक, 25-26)।</ref>
*किन्तु अन्त में निष्कर्ष है– 'नारियाँ पापों एवं विकारों की जड़ हैं तथा धर्म, अर्थ एवं काम की प्राप्ति के साधन भी हैं, उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए, प्रत्युत रत्नों के समान उनकी रक्षा की जानी चाहिए।<ref>(श्लोक, 25-26)।</ref>


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Revision as of 07:19, 7 December 2010

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह मासोपवास, ब्राह्मरोच, कालरोच ऐसे कतिपय व्रतों का नाम है। यह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पर आरम्भ करना चाहिए।
  • एक वर्ष तक करना चाहिए। विष्णुधर्मोत्तरपुराण [1] ने इसका विवरण दिया है।
  • अध्याय 224 में नारियों के चंचल स्वभाव का उल्लेख है।
  • किन्तु अन्त में निष्कर्ष है– 'नारियाँ पापों एवं विकारों की जड़ हैं तथा धर्म, अर्थ एवं काम की प्राप्ति के साधन भी हैं, उन पर विश्वास नहीं करना चाहिए, प्रत्युत रत्नों के समान उनकी रक्षा की जानी चाहिए।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विष्णुधर्मोत्तरपुराण (3|222-223)
  2. (श्लोक, 25-26)।

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