विष्णुलक्षवर्ति व्रत: Difference between revisions

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Revision as of 07:24, 7 December 2010

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • रुई की धूल एवं घास के टुकड़ों को किसी शुभ तिथि एवं लग्न में झाड़ कर एवं स्वच्छ कर 4 अंगुल लम्बा धागा बनाना, इस प्रकार के चार धागों से एक बत्ती बनती है, इस प्रकार की एक सौ सहस्र बत्तियों को घी में डुबोकर एक चाँदी या पीतल के पात्र में जला कर विष्णु प्रतिमा के समक्ष रखना चाहिए।
  • इस व्रत का उचित काल कार्तिक, माघ या वैसाख, अन्तिम सर्वोत्तम है।
  • प्रतिदिन एक या दो सहस्र बत्तियाँ विष्णु के समक्ष घुमायी जाती हैं।
  • उपर्युक्त मासों में किसी पूर्णिमा पर व्रत समाप्ति, तब उद्यापन करना चाहिए।
  • आजकल यह दक्षिण में नारियों के द्वारा ही सम्पन्न होता है।[1]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वर्षकृत्यदीपक (383-398)।

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