लिंग व्रत: Difference between revisions

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*इसी प्रकार से वर्ष भर, विभिन्न मासों में विभिन्न चूर्ण, धूप, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए।
*इसी प्रकार से वर्ष भर, विभिन्न मासों में विभिन्न चूर्ण, धूप, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए।
*महापातकी भी रुद्रलोक पहुँच जाता है।<ref>हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 50-56, कालोत्तर से उद्धरण)</ref>
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*लिंग का निर्माण पवित्र भस्म, सूखे गोबर, बालू या स्फटिक से हो सकता है, सर्वोत्तम उस मिट्टी से जो उन पहाड़ियों से प्राप्त होती है, जहाँ से [[नर्मदा नदी]] बहती है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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Latest revision as of 12:42, 27 July 2011

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • लिंगव्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चर्तुदशी से आरम्भ होता है।
  • नक्त विधि से पूजन, चावल के आटे से रत्नि (केहुनी से बँधी मुष्टि तक की दूरी) का लम्बा लिंग बनाना चाहिए।
  • लिंग पर एक प्रस्थ तिल डालना चाहिए।
  • मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की चर्तुदशी को लिंग पर कुंकुम का छिड़काव करना चाहिए।
  • इसी प्रकार से वर्ष भर, विभिन्न मासों में विभिन्न चूर्ण, धूप, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए।
  • महापातकी भी रुद्रलोक पहुँच जाता है।[1]
  • लिंग का निर्माण पवित्र भस्म, सूखे गोबर, बालू या स्फटिक से हो सकता है, सर्वोत्तम उस मिट्टी से जो उन पहाड़ियों से प्राप्त होती है, जहाँ से नर्मदा नदी बहती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रत खण्ड 2, 50-56, कालोत्तर से उद्धरण

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