स्कन्द षष्ठी: Difference between revisions
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*तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों से होता है। | *तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों से होता है। | ||
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Revision as of 12:10, 27 July 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इस नाम से कहा जाता है।
- एक दिन पूर्व से उपवास करके षष्ठी को कुमार अर्थात् कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए।[1]
- निर्णयामृत में इतना और आया है कि भाद्रपद की षष्ठी को दक्षिणापथ में कार्तिकेय का दर्शन लेने से ब्रह्म हत्या जैसे गम्भीर पापों से मुक्ति मिल जाती है।[2]
- तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्त्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों से होता है।
- हेमाद्रि[3], कृत्यरत्नाकर[4] ने ब्रह्म पुराण से उद्धरण देकर बताया है कि स्कन्द की उत्पत्ति अमावास्या को अग्नि से हुई थी, वे चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को प्रत्यक्ष हुए थे, देवों के द्वारा सेनानायक बनाये गये थे तथा तारकासुर का वध किया था, अत: उनकी पूजा, दीपों, वस्त्रों, अलंकरणों, मुर्गों (खिलौनों के रूप में) आदि से की जानी चाहिए अथवा उनकी पूजा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सभी शुक्ल षष्ठियों पर करनी चाहिए।
- तिथितत्त्व [5] ने चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कन्दषष्ठी कहा है।[6]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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