भोज: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 34: Line 34:
|शोध=
|शोध=
}}
}}
 
==संबंधित लेख==
{{मध्य काल}}
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:प्रतिहार साम्राज्य]]
[[Category:प्रतिहार साम्राज्य]]
[[Category:मध्य काल]]
[[Category:मध्य काल]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 08:05, 13 April 2011

  • रामभद्र का उत्तराधिकारी मिहिरभोज (भोज प्रथम) (836 से 889 ई.) गुर्जर प्रतिहार वंश का सर्वाधिक प्रतापी एवं महान शासक हुआ।
  • उसने 836 ई. के लगभग कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया, जो आगामी सौ वर्षो तक प्रतिहारों की राजधानी बनी रही।
  • भोज ने जब पूर्व दिशा की ओर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहा, तो उसे बंगाल के पाल शासक धर्मपाल से पराजित होना पड़ा।
  • 842 से 860 ई. के बीच उसे राष्ट्रकूट शासक ध्रुव ने भी पराजित किया।
  • पाल वंश के शासक देवपाल की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी नारायण को भोज ने परास्त कर पाल राज्य के एक बड़े भू-भाग पर अधिकार कर लिया।
  • मिहिरभोज का साम्राज्य काठियावाड़, पंजाब, मालवा तथा मध्य देश तक फैला था।
  • उसके शासन काल का विवरण अरब यात्री सुलेमान के यात्रा विवरण से मिलता है।
  • अरब यात्री सुलेमान (1836-885) उसे 'बरुआ' कहता है।
  • मिहिरभोज के बारे में सुलेमान लिखता है कि, “इस राजा के पास बहुत बड़ी सेना है और अन्य किसी दूसरे राजा के पास उसकी जैसी सेना नहीं है। उसका राज्य जिह्म के आकार का है। उसके पास बहुत अधिक संख्या में घोड़े और ऊंट है। भारत में भोज के राज्य के अतिरिक्त कोई दूसरा राज्य नहीं है, जो डाकुओं से इतना सुरक्षित हो।
  • मिहिरभोज ने 'आदिवराज' एवं 'प्रभास' की उपाधियाँ धारण की थीं।
  • मिहिरभोज ने कई नामों से, जैसे - 'मिहिरभोज' (ग्वालियर अभिलेख में), 'प्रभास' (दौलतपुर अभिलेख में), 'आदिवराह' (ग्वालियर चतुर्भुज अभिलेखों), चांदी के 'द्रम्म' सिक्के चलवाए थे।
  • सिक्को पर निर्मित सूर्यचन्द्र उसके चक्रवर्तिन का प्रमाण है। अरब यात्री सुलेमान के अनुसार- वह अरबों का स्वाभाविक शत्रु था। उसने पश्चिम में अरबों का प्रसार रोक दिया था।
  • गुजरात के सोलंकी एवं त्रिपुरा के कलचुरी के संघ ने मिलकर भोज की राजधानी धार पर दो ओर से आक्रमण कर राजधानी को नष्ट कर दिया था।
  • भोज के बाद शासक जयसिंह ने शत्रुओं के समक्ष आत्मसमर्पण कर मालवा से अपने अधिकार को खो दिया।
  • भोज के साम्राज्य के अन्तर्गत मालवा, कोंकण, खान देश, भिलसा, डुगंरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़ एवं गोदावरी घाटी का कुछ भाग शामिल था।
  • उसने उज्जैन की जगह अपने नई राजधानी धार को बनाया। भोज एक पराक्रमी शासक होने के साथ ही विद्वान एवं विद्या तथा कला का उदार संरक्षक था। अपनी विद्वता के कारण ही उसने 'कविराज' की उपाधि धारण की थी।
  • उसने कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रंथ जैसे- 'समरांगण सूत्रधार', 'सरस्वती कंठाभरण', 'सिद्वान्त संग्रह', 'राजकार्तड', 'योग्यसूत्रवृत्ति', 'विद्या विनोद', 'युक्ति कल्पतरु', 'चारु चर्चा', 'आदित्य प्रताप सिद्धान्त', 'आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश', 'प्राकृत व्याकरण', 'कूर्मशतक', 'श्रृंगार मंजरी', 'भोजचम्पू', 'कृत्यकल्पतरु', 'तत्वप्रकाश', 'शब्दानुशासन', 'राज्मृडाड' आदि की रचना की।
  • 'आइना-ए-अकबरी' के वर्णन के आधार पर माना जाता है कि, उसके राजदरबार में लगभग 500 विद्धान थे।
  • उसके दरबारी कवियों में 'भास्करभट्ट', 'दामोदर मिश्र', 'धनपाल' आदि प्रमुख थे।
  • उसके बार में अनुश्रति थी कि, वह हर एक कवि को प्रत्येक श्लोक पर एक लाख मुद्रायें प्रदान करता था।
  • उसकी मृत्यु पर पण्डितों को हार्दिक दुखः हुआ, तभी एक प्रसिद्ध लोकोक्ति के अनुसार- उसकी मृत्यु से विद्या एवं विद्वान, दोनों निराश्रित हो गये।
  • भोज ने अपनी राजधानी धार को विद्या एवं कला के महत्त्वपूर्ण केन्द्र के रूप में स्थापित किया।
  • यहां पर भोज ने अनेक महल एवं मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें 'सरस्वती मंदिर' सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • उसके अन्य निर्माण कार्य 'केदारेश्वर', 'रामेश्वर', 'सोमनाथ सुडार' आदि मंदिर हैं।
  • इसके अतिरिक्त भोज ने भोजपुर नगर एवं भोजसेन नामक तालाब का भी निर्माण करवाया था।
  • उसने 'त्रिभुवन नारायण', 'सार्वभौम', 'मालवा चक्रवर्ती' जैसे विरुद्ध धारण किए थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख