पापांकुशा एकादशी: Difference between revisions
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पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान [[विष्णु]] की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को उत्तम दान व दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन केवल फलाहार ही लिया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व हलका रहता है। इस एकादशी के व्रत रहने से भगवान समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं। अर्थात यह एकादशी पापों का नाश करने वाली कही गई है। जनहितकारी निर्माण कार्य प्रारम्भ करने के लिए यह एक उत्तम मुहूर्त है। इस दिन व्रत करने वाले को भूमि, गौ, [[जल]], अन्न, छत्र, उपानह आदि का दान करना चाहिए। | पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान [[विष्णु]] की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को उत्तम दान व दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन केवल फलाहार ही लिया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व हलका रहता है। इस एकादशी के व्रत रहने से भगवान समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं। अर्थात यह एकादशी पापों का नाश करने वाली कही गई है। जनहितकारी निर्माण कार्य प्रारम्भ करने के लिए यह एक उत्तम मुहूर्त है। इस दिन व्रत करने वाले को भूमि, गौ, [[जल]], अन्न, छत्र, उपानह आदि का दान करना चाहिए। | ||
==कथा== | ==कथा== | ||
प्राचीनकाल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी | प्राचीनकाल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी ज़िंदगी, हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान तथा मिथ्याभाषण आदि में व्यतीत कर दी। जब जीवन का अंतिम समय आया तब [[यमराज]] ने अपने दूतों को क्रोधन को लाए की आज्ञा दी। यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है। | ||
मृत्युभय से भयभीत (आक्रांत) वह बहेलिया महर्षि [[अंगिरा]] की शरण में उनके आश्रम पहँचा। महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उस पर कृपा करके उसे अगले दिन ही आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने को कहा। | मृत्युभय से भयभीत (आक्रांत) वह बहेलिया महर्षि [[अंगिरा]] की शरण में उनके आश्रम पहँचा। महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उस पर कृपा करके उसे अगले दिन ही आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने को कहा। |
Revision as of 16:32, 8 July 2011
पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम पापांकुशा एकादशी हुआ है। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भोजन का विधान है। इस प्रकार भगवान की अराधना करने से मन शुद्ध होता है तथा व्यक्ति में सद्-गुणों का समावेश होता है।
विधि
पापांकुशा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा और भक्ति भाव से पूजा तथा ब्राह्मणों को उत्तम दान व दक्षिणा देनी चाहिए। इस दिन केवल फलाहार ही लिया जाता है। इससे शरीर स्वस्थ व हलका रहता है। इस एकादशी के व्रत रहने से भगवान समस्त पापों को नष्ट कर देते हैं। अर्थात यह एकादशी पापों का नाश करने वाली कही गई है। जनहितकारी निर्माण कार्य प्रारम्भ करने के लिए यह एक उत्तम मुहूर्त है। इस दिन व्रत करने वाले को भूमि, गौ, जल, अन्न, छत्र, उपानह आदि का दान करना चाहिए।
कथा
प्राचीनकाल में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक महाक्रूर बहेलिया रहता था। उसने अपनी सारी ज़िंदगी, हिंसा, लूट-पाट, मद्यपान तथा मिथ्याभाषण आदि में व्यतीत कर दी। जब जीवन का अंतिम समय आया तब यमराज ने अपने दूतों को क्रोधन को लाए की आज्ञा दी। यमदूतों ने उसे बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है।
मृत्युभय से भयभीत (आक्रांत) वह बहेलिया महर्षि अंगिरा की शरण में उनके आश्रम पहँचा। महर्षि ने उसके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उस पर कृपा करके उसे अगले दिन ही आने वाली आश्विन शुक्ल एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करने को कहा।
इस प्रकार वह महापातकी व्याध पापांकुशा एकादशी का व्रत-पूजन कर भगवान की कृपा से विष्णु लोक को गया। उधर यमदूत इस चमत्कार को देख हाथ मलते रह गए और बिना क्रोधन के यमलोक वापस लौट गए।
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