कामिदा एकादशी: Difference between revisions

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Revision as of 05:29, 6 September 2010

व्रत और विधि

इसे ‘पवित्रा’ अथवा ‘कामिदा’ एकादशी के नाम से पुकारा जाता है। पुराणों के अनुसार श्रावण कृष्ण पक्ष की एकादशी कामिका है। इस दिन भगवान श्रीधर की पूजा की जाती है। इस दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु को पंचामृत स्नान कराके भोग लगाना चाहिए। फिर आचमन के पश्चात धूप, दीप, चंदन, नैवेद्य तथा तुलसी से भगवान का पूजन कर आरती उतारनी चाहिए। इस व्रत को करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है और ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है।

कथा

प्राचीन काल में किसी गाँव में एक ठाकुर रहता था। वह बहुत ही क्रोधी स्वभाव का था। एक दिन किसी बात पर उस क्रोधी ठाकुर की एक ब्राह्मण से हाथापाई हो गई। परिणामस्वरूप वह ब्राह्मण ठाकुर के हाथों मारा गया। अपने हाथों मारे गए ब्राह्मण की उस ठाकुर ने तेरही (क्रिया) करनी चाही। किंतु सभी ब्राह्मणों ने उस क्रिया में शामिल होने तथा भोजन करने से इंकार कर दिया। तब ठाकुर ने सभी ब्राह्मणों से निवेदन किया- 'भगवन! मेरा यह पाप किस प्रकार दूर होगा?' इस पर ब्राह्मणों ने कहा- ‘तुम श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी (कामदा एकादशी) का व्रत करो और भगवान श्रीधर का पूजन करो तथा ब्राह्मणों को भोजन कराओ। तभी तुम्हारे पाप का प्रायश्चित होगा।

ठाकुर ने उनके कहे अनुसार भगवान श्रीधर का भक्ति भाव और शुद्ध हृदय से व्रत और पूजन किया। रात्रि में जब वह भगवान की मूर्ति के पास शयन कर रहा था, तभी भगवान ने उसे दर्शन देकर कहा- 'हे ठाकुर! तेरा ब्रह्महत्या का पाप दूर हो गया है। अब तुम उस ब्राह्मण की तेरही (क्रिया) कर सकते हो। तेरे घर से अब सूतक समाप्त हो गया है।' उस ठाकुर ने भगवान के आदेशानुसार ही किया और ब्रह्महत्या के पाप से दोषमुक्त हो गया और सुखी जीवन बिताकर अंत में विष्णु लोक को गया।

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