रम्भात्रिरात्र व्रत: Difference between revisions
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Revision as of 07:06, 7 December 2010
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की तृतीया पर आरम्भ करना चाहिए।
- इस व्रत को तीन दिनों तक करना चाहिए।
- सर्वप्रथम स्नान के उपरान्त नारी को केले की जड़ में पर्याप्त जल डालना चाहिए, उसे धागों से बांधना चाहिए, उस केले की रजत प्रतिमा तथा उसके फल सोने के होने चाहिए, फिर उसकी पूजा करनी चाहिए।
- तृतीया को नक्त, चतुर्दशी को अयाचित तथा पूर्णिमा को उपवास करना चाहिए।
- केले के वृक्ष को वर्ष भर जल देना चाहिए।
- 'रम्भा' का अर्थ कदली (केला) भी है, अत: यह नाम है।
- उमा एवं शिव, रुक्मिणी एवं कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
- तीन दिनों तक क्रम से त्रियोदशी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा को आहूतियों से होम देना चाहिए।
- इस व्रत के करने से पुत्रों की, सौन्दर्य की एवं सघवात्व की प्राप्ति होती है।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 283-288, स्कन्द पुराण से उद्धरण), वर्षक्रियाकौमुदी (11),
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