मन्मथनाथ गुप्त: Difference between revisions

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==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
क्रांतिकारी और लेखक मन्मथनाथ गुप्त का जन्म 7 फरवरी 1908 को [[वाराणसी]] में हुआ था। उनके पिता वीरेश्वर विराटनगर ([[नेपाल]]) में एक स्कूल के हेडमास्टर थे। इसलिये मन्मथनाथ गुप्त ने भी दो वर्ष वहीं शिक्षा पाई। बाद में वे वाराणसी आ गए। उस समय के राजनीतिक वातावरण का प्रभाव उन पर भी पड़ा और [[1921]] में [[ब्रिटेन]] के युवराज के बहिष्कार का नोटिस बांटते हुए गिरफ्तार कर लिए गए और तीन महीने की सजा हो गई। जेल से छूटने पर उन्होंने [[काशी विद्यापीठ]] में प्रवेश लिया और वहाँ से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। तभी उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और मन्मथ पूर्णरूप से क्रांतिकारी बन गए। [[1925]] के प्रसिद्ध काकोरी कांड में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। ट्रेन रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने वाले 10 व्यक्तियों में वे भी सम्मिलित थे। इसके बाद गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला और 14 वर्ष के कारावास की सजा हो गई।<ref name="BCK">पुस्तक- भारतीय चरित कोश | लेखक- लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | पृष्ठ संख्या- 599</ref>
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==निधन==
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प्रसिद्ध क्रांतिकारी और सिद्धहस्त  लेखक मन्मथनाथ गुप्त का निधन 26 अक्टूबर 2000 में हुआ।  
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Latest revision as of 05:08, 7 February 2018

मन्मथनाथ गुप्त
पूरा नाम मन्मथनाथ गुप्त
जन्म 7 फरवरी, 1908
जन्म भूमि वाराणसी
मृत्यु 26 अक्टूबर, 2000
अभिभावक पिता- वीरेश्वर गुप्त
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि क्रांतिकारी और लेखक
धर्म हिंदू
जेल यात्रा 1921 में ब्रिटेन के युवराज के बहिष्कार का नोटिस बांटते हुए गिरफ्तार कर लिए गए और तीन महीने की सजा हो गई।
विशेष योगदान 1925 के प्रसिद्ध काकोरी कांड में मन्मथनाथ गुप्त ने सक्रिय रूप से भाग लिया। ट्रेन रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने वाले 10 व्यक्तियों में वे भी सम्मिलित थे।
मुख्य रचनाएँ 'भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास', 'क्रान्ति युग के अनुभव', 'चंद्रशेखर आज़ाद', 'विजय यात्रा' आदि।
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी तथा बांग्ला
अन्य जानकारी मन्मथनाथ गुप्त मात्र 13 वर्ष की आयु में ही स्वतंत्रता संग्राम में कूद गये और जेल गये। बाद में वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने।

मन्मथनाथ गुप्त (अंग्रेज़ी: Manmath Nath Gupta जन्म: 7 फरवरी, 1908; मृत्यु: 26 अक्टूबर, 2000) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी तथा सिद्धहस्त लेखक थे। इन्होंने हिन्दी, अंग्रेज़ी तथा बांग्ला में आत्मकथात्मक, ऐतिहासिक एवं गल्प साहित्य की रचना की है। ये मात्र 13 वर्ष की आयु में ही स्वतन्त्रता संग्राम में कूद गये और जेल गये। बाद में वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने और 17 वर्ष की आयु में उन्होंने सन् 1925 में हुए काकोरी काण्ड में सक्रिय रूप से भाग लिया।

जीवन परिचय

क्रांतिकारी और लेखक मन्मथनाथ गुप्त का जन्म 7 फरवरी 1908 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता वीरेश्वर विराटनगर (नेपाल) में एक स्कूल के हेडमास्टर थे। इसलिये मन्मथनाथ गुप्त ने भी दो वर्ष वहीं शिक्षा पाई। बाद में वे वाराणसी आ गए। उस समय के राजनीतिक वातावरण का प्रभाव उन पर भी पड़ा और 1921 में ब्रिटेन के युवराज के बहिष्कार का नोटिस बांटते हुए गिरफ्तार कर लिए गए और तीन महीने की सजा हो गई। जेल से छूटने पर उन्होंने काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और वहाँ से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। तभी उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और मन्मथ पूर्णरूप से क्रांतिकारी बन गए। 1925 के प्रसिद्ध काकोरी कांड में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। ट्रेन रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने वाले 10 व्यक्तियों में वे भी सम्मिलित थे। इसके बाद गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला और 14 वर्ष के कारावास की सजा हो गई।[1]

लेखन कार्य

लेखन के प्रति उनकी प्रवृत्ति पहले से ही थी। जेल जीवन के अध्ययन और मनन ने उसे पुष्ट किया। छूटने पर उन्होंने विविध विधाओं में विपुल साहित्य की रचना की। उनके प्रकाशित ग्रंथों की संख्या 80 से अधिक है।

प्रमुख रचनाएँ
  • 'भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास'
  • 'क्रान्ति युग के अनुभव'
  • 'चंद्रशेखर आज़ाद'
  • 'विजय यात्रा'
  • 'यतींद्रनाथ दास'
  • 'कांग्रेस के सौ वर्ष
  • 'कथाकार प्रेमचंद'
  • 'प्रगतिवाद की रूपरेखा'
  • साहित्यकला समीक्षा आदि समीक्षा विषयक ग्रंथ हैं। उन्होंने कहानियाँ भी लिखीं।[1]

निधन

प्रसिद्ध क्रांतिकारी और सिद्धहस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त का निधन 26 अक्टूबर, 2000 में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 पुस्तक- भारतीय चरित कोश | लेखक- लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | पृष्ठ संख्या- 599

संबंधित लेख

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