प्रीतिलता वड्डेदार: Difference between revisions
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*ऐसे में यदि प्रीतिलता चाहती तो आसानी से भाग सकती थीं। पर पहले उसने अपने साथियों को बाहर ठेल कर भेजा स्वयं जब उसके बच निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा तो गिरफ्तार होने से बचने के लिए पोटैशियम साइनाइड की गोली खाकर मौत की नींद सो गई। | *ऐसे में यदि प्रीतिलता चाहती तो आसानी से भाग सकती थीं। पर पहले उसने अपने साथियों को बाहर ठेल कर भेजा स्वयं जब उसके बच निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा तो गिरफ्तार होने से बचने के लिए पोटैशियम साइनाइड की गोली खाकर मौत की नींद सो गई। | ||
*1932 ई. उनके मृत शरीर के पास एक पर्चा मिला, जिसमें स्वयं प्रीतिलता की लिखावट थी- '''आज, महिलाएँ और पुरुष-दोनों एक ही लक्ष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं, फिर दोनों में फ़र्क़ क्यों?''' और सचमुच उस | *1932 ई. उनके मृत शरीर के पास एक पर्चा मिला, जिसमें स्वयं प्रीतिलता की लिखावट थी- '''आज, महिलाएँ और पुरुष-दोनों एक ही लक्ष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं, फिर दोनों में फ़र्क़ क्यों?''' और सचमुच उस महान् वीरांगना की शहादत ने महिलाओं की वीरता पर सन्देह करने वालों के मुँह बन्द कर दिए। | ||
Latest revision as of 11:18, 1 August 2017
प्रीतिलता वड्डेदार भारत की प्रथम महिला क्रांतिकारी थीं, जिन्होंने आज़ादी के लिए अपने प्राण त्याग उत्सर्ग कर दिए।
- प्रीतिलता का जन्म 1911 ई. में हुआ था।
- स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद वे चटगाँव के एक बालिका विद्यालय में पढ़ाने लगीं यहाँ उनका परिचय प्रसिद्ध क्रांतिकारी नेता सूर्यसेन (मास्टर दा) से हुआ।
- मास्टर दा से ही उन्हें पिस्तौल आदि चलाने का विधिवत प्रशिक्षण मिला।
- जून 1932 ई. में चटगाँव के एक मकान में अंग्रेज़ सेना ने सूर्यसेन के साथ प्रीतिलता व अन्य क्रांतिकारीयों को घेर लिया।
- घमासान मुठभेड़ के बाद प्रीतिलता सूर्यसेन के साथ बच निकलने में सफल हो गई 24 सितम्बर, 1932 ई. को प्रीतिलता की काफ़ी ज़िद के बाद मास्टर दा ने उन्हें एक जोखिमपूर्ण कार्य की ज़िम्मेदारी सौंपी यह कार्य था पहाड़ताली स्थित यूरोपियन क्लब पर हमला करना।
- पुरुष वेश में प्रतिलता अपने युवा साथियों के साथ पीछे की गली से क्लब में घुस गई।
- क्लब के लगभग 50 सदस्य नाचने-गाने और शराब में मदमस्त हो रहे थे।
- प्रीतिलता व उनके साथियों ने बम फोड़ने शुरू कर दिए।
- एक यूरोपियन महिला मारी गई व कुछ लोग घायल हो गए। क्लब में चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई।
- ऐसे में यदि प्रीतिलता चाहती तो आसानी से भाग सकती थीं। पर पहले उसने अपने साथियों को बाहर ठेल कर भेजा स्वयं जब उसके बच निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा तो गिरफ्तार होने से बचने के लिए पोटैशियम साइनाइड की गोली खाकर मौत की नींद सो गई।
- 1932 ई. उनके मृत शरीर के पास एक पर्चा मिला, जिसमें स्वयं प्रीतिलता की लिखावट थी- आज, महिलाएँ और पुरुष-दोनों एक ही लक्ष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं, फिर दोनों में फ़र्क़ क्यों? और सचमुच उस महान् वीरांगना की शहादत ने महिलाओं की वीरता पर सन्देह करने वालों के मुँह बन्द कर दिए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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