मुराद बख़्श: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Adding category Category:मध्य काल (को हटा दिया गया हैं।))
No edit summary
Line 33: Line 33:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{मुग़ल साम्राज्य}}
{{मुग़ल काल}}
{{मुग़ल काल}}
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]]

Revision as of 12:24, 17 March 2011

मुराद बख़्श, शाहजहाँ और मुमताज़ महल का सबसे छोटा पुत्र था। उसका जन्म 1624 ई. में हुआ। वह युवावस्था प्राप्त करने पर अत्यन्त ही वीर, साहसी और युद्ध-प्रिय युवक सिद्ध हुआ। उसने कांगड़ा घाटी में एक विद्रोह को दबाया और बल्ख पर अधिकार कर लिया। हालाँकि बाद में उसे वहाँ से लौट आना पड़ा। 1657 ई. में जब शाहजहाँ अस्वस्थ हुआ, उस समय मुराद गुजरात का प्रान्तीय शासक था। वह दुस्साहसी और अधीर प्रवृत्ति का युवक था। अपने सबसे बड़े भाई दारा शिकोह को उत्तराधिकार से वंचित रखने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ होकर सूरत को लूटा और अपने को सम्राट घोषित कर दिया। उसने अपने नाम से सिक्के भी ढलवाये। किन्तु शीघ्र ही बड़े भाई औरंगज़ेब के समझाने पर उसने इस आधार पर औरंगज़ेब का साथ दिया कि साम्राज्य का विभाजन औरंगज़ेब व उसके मध्य में किया जायेगा।

शाहजहाँ की चाहत

शाहजहाँ के चार पुत्र थे और जब शाहजहाँ 1657 ई. में अस्वस्थ हुआ, उस समय चारों बालिग थे। दारा शिकोह की आयु 43 वर्ष की थी; शुजा की आयु 41 वर्ष, औरंगज़ेब की आयु 39 वर्ष तथा मुराद की आयु 33 वर्ष की थी। शाहजहाँ की दो पुत्रियाँ भी थी-जहाँआरा और रौशनारा। जहाँआरा, दारा शिकोह का पक्ष लेती थी तथा रौशनारा औरंगज़ेब के दल में मिल गई थी। सभी भाइयों को प्रान्तों के शासकों तथा सैनाओं के सेनापतियों के रूप में ग़ैर सैनिक तथा सैनिक मामलों का काफ़ी अनुभव प्राप्त हो चुका था। परन्तु उनमें वैयक्तिक गुणों एवं योग्यता को लेकर भेद था। सबसे बड़े पुत्र दारा शिकोह पर शाहजहाँ विश्वास करता था और उसे ही अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता था।

भाईयों की तुलना

दारा शिकोह सब दर्शनों के सार का संग्रह करने वाला विचार रखता था। वह उदार स्वभाव तथा पंण्डितोचित प्रवृत्तियों का था। वह अन्य धर्मावलम्बियों के साथ मिलता था। उसने वेद, तालमुद एवं बाइबिल के सिद्धान्तों तथा सूफ़ी लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन किया था। उसके इन सब कार्यों से सहधर्मी कट्टर सदस्यों का नाराज़ हो जाना स्वाभाविक ही था तथा वे सब इसके विरुद्ध हो गए। दूसरा भाई शुजा, जो उस समय बंगाल का सूबेदार था, एक बुद्धिमान तथा वीर सैनिक था। पर वह अत्यन्त आरामतलब होने के कारण दुर्बल, आलसी, असावधान और निरन्तर चेष्टा, चौकस, सावधानी तथा दूसरे से मिलकर काम करने के अयोग्य बन गया था। तीसरा भाई औरंगज़ेब अत्यन्त योग्य था। वह असाधारण उद्योग और गहन कूटनीति तथा सैनिक गुणों से सम्पन्न था। उसमें शासन करने की असंदिग्ध क्षमता थी। मुराद, जो इस समय गुजरात का सूबेदार था, निस्संदेह स्पष्ट वक्ता, उदार एवं वीर था, परन्तु वह भारी पियक्कड़ था। अत: वह नेतृत्व के लिए आवश्यक गुणों का विकास नहीं कर पाया।

भाइयों का संदेह

जब शाहजहाँ भंयकर रूप से बीमार पड़ा, तब चारों भाइयों में से केवल दारा शिकोह ही शाहजहाँ के पास आगरा में उपस्थित था। तीनों परस्थित भाइयों को संदेह हुआ कि उनका पिता वास्तव में मर चुका है तथा दारा ने इस समाचार को दबा दिया है। शुजा ने बंगाल की तत्कालीन राजधानी राजमहल में अपने को बादशाह घोषित कर लिया तथा साम्राज्य की राजधानी की ओर सेना लेकर बढ़ा। परन्तु बनारस के निकट पहुँचने पर वह दारा शिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह के अधीन अपने विरुद्ध भेजी गई एक सेना के द्वारा हरा दिया गया। वह बंगाल लौट जाने को विवश हुआ। मुराद ने भी अहमदाबाद में अपना राज्याभिषेक 5 दिसम्बर, 1657 ई. को किया। उसने मालवा में औरंगज़ेब से मिलकर एक सन्धि कर ली। उन्होंने साम्राज्य का विभाजन करने का इक़रारनामा किया, जो अल्लाह एवं पैगम्बर के नाम पर स्वीकृत किया गया। इस इक़रारनामें की शर्तें इस प्रकार से थीं-

  • लूट के माल की एक तिहाई मुदार बख़्श को तथा दो तिहाई औरंगज़ेब को मिलेगी।
  • साम्राज्य की विजय के बाद पंजाब, अफ़ग़ानिस्तान, काश्मीर एवं सिंध मुराद को मिलेंगे, जो वहाँ बादशाहत का झण्डा गाड़ेगा, सिक्के चलाएगा तथा बादशाह के रूप में अपना नाम घोषित करेगा।

शाही सेना की पराजय

औरुगज़ेब तथा मुराद की मिलीजुली फ़ौज उत्तर की ओर बढ़ी तथा धरमट पहुँची, जो उज्जैन से चौदह मील दक्षिण-पश्चिम में है। बादशाह ने उनका बढ़ना रोकने के लिए जोधपुर के राजा जसवन्त सिंह तथा कासिम ख़ाँ को भेजा। 15 अप्रैल, 1657 ई. को धरमट में विरोधी सेनाओं की मुठभेड़ हुई, जहाँ शाही दल असाधारण रूप से पराजित हुआ। विजयी शाहज़ादों ने एक अपेक्षित छिछले भाग से होकर चम्बल को पार किया तथा सामूगढ़ के मैदान में पहुँचे, जो आगरे के दुर्ग से आठ मील दूर है।

दारा शिकोह की हार

29 मई को युद्ध आरम्भ हुआ। इसमें प्रचण्डता के साथ संघर्ष हुआ। दोनों ही दल वीरता के साथ लड़े। मुराद के चेहरे पर तीन घाव लगे। दारा शिकोह की ओर से युद्ध करने वाले राजपूत अपनी जाति की परम्परा के सच्चे थे। उन्होंने अपने वीर युवक नेता, रामवीर सिंह के नेतृत्व में वीरतापूर्वक मुराद की टुकड़ी पर निराशाजनित वीरता के साथ आक्रमण किया। उनका एक-एक आदमी मर मिटा। दारा शिकोह दुर्भाग्य से अपने हाथी के एक तीर से बुरी तरह से घायल हो जाने के कारण उस पर से उतरकर एक घोड़े पर चढ़ गया। स्मिथ कहता है कि ,"इसी कार्य ने युद्ध का निर्ण कर दिया।" अपने स्वामी के हाथी का हौदा खाली देखकर बची हुई फ़ौज उसे मरा समझकर अत्यन्त घबराहट के साथ मैदान से तितर-बितर हो गई। निराशा से भरा हुआ दारा, अपने पड़ाव और बन्दूक़ों को अपने शत्रुओं द्वारा अधिकृत होने के लिए छोड़कर, आगरा की ओर भाग गया। वहाँ वह अकथनीय रूप से दीन अवस्था में पहुँचा। दारा शिकोह की हार वास्तव में उसके सेनापतियों की युद्ध कौशल सम्बन्धी कुछ भूलों तथा उसकी तोपों की दुर्बल अवस्था के कारण हुई, न कि सम्पूर्णत: उसकी सेना के दाहिने अंग के अधिकारी ख़लीलुल्लाह के कपटपूर्ण परामर्श के कारण, जैसा की कुछ वृत्तान्त हमें विश्वास दिलाते हैं।

मुराद की हत्या

आगरा से औरंगज़ेब 13 जून, 1658 ई. को दिल्ली की ओर रवाना हुआ। परन्तु रास्ते में वह मथुरा के निकट रूपनगर में अपने भाई मुराद के, जो अब तक अपनी भाई की योजना को अच्छी तरह से समझ चुका था और उससे नफ़रत करने लगा था, विरोध को कुचलने के लिए ठहर गया। खुले मैदान में उसका सामना करने के बदले औरंगज़ेब ने उसे एक जाल में फँसा लिया। पहले उस हतभाग्य शाहज़ादे को सलीमगढ़ के दुर्ग में बन्दी बनाकर रखा गया। जनवरी, 1659 ई. में उसे वहाँ से ग्वालियर के क़िले में ले जाया गया। 4 दिसम्बर, 1661 ई. को दीवानअली नकी की हत्या करने के अभियोग में उसे फाँसी पर लटका दिया गया।

औरंगज़ेब का राज्याभिषेक

मुराद को गिरफ़्तार कर लेने के बाद ही औरंगज़ेब दिल्ली जा चुका था, जहाँ 21 जुलाई, 1658 ई. को वह बादशाह के रूप में राजसिंहासन पर बैठा।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • (पुस्तक 'भारत का बृहत् इतिहास) पृष्ठ संख्या-198
  • (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-37

संबंधित लेख