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Revision as of 09:49, 7 February 2012
शारदीय नवरात्र
[[चित्र:Durga-Devi.jpg|thumb|200|दुर्गा देवी
Durga Devi]]
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्र का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। नवरात्र में देवी माँ के व्रत रखे जाते हैं । स्थान–स्थान पर देवी माँ की मूर्तियाँ बनाकर उनकी विशेष पूजा की जाती हैं । घरों में भी अनेक स्थानों पर कलश स्थापना कर दुर्गा सप्तशती पाठ आदि होते हैं । नरीसेमरी में देवी माँ की जोत के लिए श्रृद्धालु आते हैं और पूरे नवरात्र के दिनों में भारी मेला रहता है । शारदीय नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक यह व्रत किए जाते हैं। भगवती के नौ प्रमुख रूप (अवतार) हैं तथा प्रत्येक बार 9-9 दिन ही ये विशिष्ट पूजाएं की जाती हैं। इस काल को नवरात्र कहा जाता है। वर्ष में दो बार भगवती भवानी की विशेष पूजा की जाती है। इनमें एक नवरात्र तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक होते हैं और दूसरे श्राद्धपक्ष के दूसरे दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल नवमी तक। आश्विन मास के इन नवरात्रों को 'शारदीय नवरात्र' कहा जाता है क्योंकि इस समय शरद ऋतु होती है। इस व्रत में नौ दिन तक भगवती दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ तथा एक समय भोजन का व्रत धारण किया जाता है। प्रतिपदा के दिन प्रात: स्नानादि करके संकल्प करें तथा स्वयं या पण्डित के द्वारा मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बोने चाहिए। उसी पर घट स्थापना करें। फिर घट के ऊपर कुलदेवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन करें तथा 'दुर्गा सप्तशती' का पाठ कराएं। पाठ-पूजन के समय अखण्ड दीप जलता रहना चाहिए। वैष्णव लोग राम की मूर्ति स्थापित कर रामायण का पाठ करते हैं। दुर्गा अष्टमी तथा नवमी को भगवती दुर्गा देवी की पूर्ण आहुति दी जाती है। नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्या तथा छोटे बच्चों को भोजन कराना चाहिए। नवरात्र ही शक्ति पूजा का समय है, इसलिए नवरात्र में इन शक्तियों की पूजा करनी चाहिए।
नवरात्र या नवरात्रि
संस्कृत व्याकरण के अनुसार नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण हैं। नौ रात्रियों का समाहार, समूह होने के कारण से द्वन्द समास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप 'नवरात्र' में ही शुध्द है।
नवरात्र क्या है
अन्य सम्बंधित लेख |
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा के काल में एक साल की चार संधियाँ हैं। उनमें मार्च व सितंबर माह में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की सर्वाधिक संभावना होती है। ऋतु संधियों में अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं, अत: उस समय स्वस्थ रहने के लिए, शरीर को शुध्द रखने के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम 'नवरात्र' है।
नौ दिन या रात
अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम चलने से नौ रात यानी 'नवरात्र' नाम सार्थक है। यहाँ रात गिनते हैं, इसलिए नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है।रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों वाला कहा गया है। इसके भीतर निवास करने वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है। इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए नौ द्वारों की शुध्दि का पर्व नौ दिन मनाया जाता है। इनको व्यक्तिगत रूप से महत्त्व देने के लिए नौ दिन नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन, सफाई या शुध्दि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई करने के लिए हर छ: माह के अंतर से सफाई अभियान चलाया जाता है। सात्विक आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि, साफ सुथरे शरीर में शुध्द बुद्धि, उत्तम विचारों से ही उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द होता है। स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर की शक्ति का स्थायी निवास होता है।
नौ देवियाँ / नव देवी
नौ दिन यानि हिन्दी माह चैत्र और आश्विन के शुक्ल पक्ष की पड़वा यानि पहली तिथि से नौवी तिथि तक प्रत्येक दिन की एक देवी मतलब नौ द्वार वाले दुर्ग के भीतर रहने वाली जीवनी शक्ति रूपी दुर्गा के नौ रूप हैं-
इनका नौ जड़ी बूटी या ख़ास व्रत की चीज़ों से भी सम्बंध है, जिन्हें नवरात्र के व्रत में प्रयोग किया जाता है- [[चित्र:Navaratri.jpg|thumb|250px|दुर्गा मेला, नवरात्र, वाराणसी]]
- कुट्टू (शैलान्न)
- दूध-दही
- चौलाई (चंद्रघंटा)
- पेठा (कूष्माण्डा)
- श्यामक चावल (स्कन्दमाता)
- हरी तरकारी (कात्यायनी)
- काली मिर्च व तुलसी (कालरात्रि)
- साबूदाना (महागौरी)
- आंवला(सिद्धीदात्री)
क्रमश: ये नौ प्राकृतिक व्रत खाद्य पदार्थ हैं।
अष्टमी या नवमी
यह कुल परम्परा के अनुसार तय किया जाता है। भविष्योत्तर पुराण में और देवी भावगत के अनुसार, बेटों वाले परिवार में या पुत्र की चाहना वाले परिवार वालों को नवमी में व्रत खोलना चाहिए। वैसे अष्टमी, नवमी और दशहरे के चार दिन बाद की चौदस, इन तीनों की महत्ता 'दुर्गासप्तशती' में कही गई है।
कन्या पूजन
अष्टमी और नवमी दोनों ही दिन कन्या पूजन और लोंगड़ा पूजन किया जा सकता है। अतः श्रद्धापूर्वक कन्या पूजन करना चाहिये।
- सर्वप्रथम माँ जगदम्बा के सभी नौ स्वरूपों का स्मरण करते हुए घर में प्रवेश करते ही कन्याओं के पाँव धोएं।
- इसके बाद उन्हें उचित आसन पर बैठाकर उनके हाथ में मौली बांधे और माथे पर बिंदी लगाएं।
- उनकी थाली में हलवा-पूरी और चने परोसे।
- अब अपनी पूजा की थाली जिसमें दो पूरी और हलवा-चने रखे हुए हैं, के चारों ओर हलवा और चना भी रखें। बीच में आटे से बने एक दीपक को शुद्ध घी से जलाएं।
- कन्या पूजन के बाद सभी कन्याओं को अपनी थाली में से यही प्रसाद खाने को दें।
- अब कन्याओं को उचित उपहार तथा कुछ राशि भी भेंट में दें।
- जय माता दी कहकर उनके चरण छुएं और उनके प्रस्थान के बाद स्वयं प्रसाद खाने से पहले पूरे घर में खेत्री के पास रखे कुंभ का जल सारे घर में बरसाएँ।
- REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें
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