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'''गंगा सप्तमी''' [[वैशाख मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] को कहा जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास की इस तिथि को ही [[गंगा|माँ गंगा]] स्वर्ग लोक से भगवान [[शिव]] की जटाओं में पहुँची थीं। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है। कहीं-कहीं पर इस तिथि को 'गंगा जन्मोत्सव' के नाम से भी पुकारा जाता है। गंगा को हिन्दू मान्यताओं में बहुत ही सम्मानित स्थान दिया गया है। | '''गंगा सप्तमी''' [[वैशाख मास]] के [[शुक्ल पक्ष]] की [[सप्तमी]] को कहा जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास की इस तिथि को ही [[गंगा|माँ गंगा]] स्वर्ग लोक से भगवान [[शिव]] की जटाओं में पहुँची थीं। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है। कहीं-कहीं पर इस तिथि को 'गंगा जन्मोत्सव' के नाम से भी पुकारा जाता है। गंगा को हिन्दू मान्यताओं में बहुत ही सम्मानित स्थान दिया गया है। | ||
==पौराणिक उल्लेख== | ==पौराणिक उल्लेख== | ||
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जब [[कपिल मुनि]] के श्राप से [[सूर्यवंश|सूर्यवंशी]] [[राजा सगर]] के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज [[भगीरथ]] ने घोर तपस्या की। वे अपनी कठिन तपस्त्या से माँ गंगा को प्रसन्न करने में सफल रहे और उन्हें धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हज़ार पुत्रों का उद्धार हो सका। गंगा को 'मोक्षदायिनी' भी कहा जाता है। विभिन्न अवसरों पर [[गंगा नदी]] के तट पर मेले और गंगा स्नान आदि के आयोजन होते हैं। इनमें '[[कुंभ पर्व]]', '[[गंगा दशहरा]]', '[[पूर्णिमा]]', '[[व्यास पूर्णिमा]]', '[[कार्तिक पूर्णिमा]]', 'माघी पूर्णिमा', '[[मकर संक्रांति]]' व 'गंगा सप्तमी' आदि प्रमुख हैं। | पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जब [[कपिल मुनि]] के श्राप से [[सूर्यवंश|सूर्यवंशी]] [[राजा सगर]] के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज [[भगीरथ]] ने घोर तपस्या की। वे अपनी कठिन तपस्त्या से माँ गंगा को प्रसन्न करने में सफल रहे और उन्हें धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हज़ार पुत्रों का उद्धार हो सका। गंगा को 'मोक्षदायिनी' भी कहा जाता है। विभिन्न अवसरों पर [[गंगा नदी]] के तट पर मेले और गंगा स्नान आदि के आयोजन होते हैं। इनमें '[[कुंभ पर्व]]', '[[गंगा दशहरा]]', '[[पूर्णिमा]]', '[[व्यास पूर्णिमा]]', '[[कार्तिक पूर्णिमा]]', '[[माघ पूर्णिमा|माघी पूर्णिमा]]', '[[मकर संक्रांति]]' व 'गंगा सप्तमी' आदि प्रमुख हैं। | ||
==धार्मिक महत्त्व== | ==धार्मिक महत्त्व== | ||
*पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को माँ गंगा स्वर्ग लोक से [[शिवशंकर]] की जटाओं में पहुँची थी। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है। | *पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को माँ गंगा स्वर्ग लोक से [[शिवशंकर]] की जटाओं में पहुँची थी। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है। |
Revision as of 10:44, 30 January 2015
गंगा सप्तमी
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अन्य नाम | गंगा जन्मोत्सव |
अनुयायी | हिंदू |
तिथि | वैशाख शुक्ल पक्ष सप्तमी |
धार्मिक मान्यता | हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार इस तिथि को ही माँ गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुँची थीं। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है। |
अन्य जानकारी | इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी शिप्रा के स्मरण मात्र से मोक्ष मिल जाता है। |
गंगा सप्तमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को कहा जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास की इस तिथि को ही माँ गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुँची थीं। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है। कहीं-कहीं पर इस तिथि को 'गंगा जन्मोत्सव' के नाम से भी पुकारा जाता है। गंगा को हिन्दू मान्यताओं में बहुत ही सम्मानित स्थान दिया गया है।
पौराणिक उल्लेख
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार जब कपिल मुनि के श्राप से सूर्यवंशी राजा सगर के 60 हज़ार पुत्र जल कर भस्म हो गए, तब उनके उद्धार के लिए राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या की। वे अपनी कठिन तपस्त्या से माँ गंगा को प्रसन्न करने में सफल रहे और उन्हें धरती पर लेकर आए। गंगा के स्पर्श से ही सगर के 60 हज़ार पुत्रों का उद्धार हो सका। गंगा को 'मोक्षदायिनी' भी कहा जाता है। विभिन्न अवसरों पर गंगा नदी के तट पर मेले और गंगा स्नान आदि के आयोजन होते हैं। इनमें 'कुंभ पर्व', 'गंगा दशहरा', 'पूर्णिमा', 'व्यास पूर्णिमा', 'कार्तिक पूर्णिमा', 'माघी पूर्णिमा', 'मकर संक्रांति' व 'गंगा सप्तमी' आदि प्रमुख हैं।
धार्मिक महत्त्व
- पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को माँ गंगा स्वर्ग लोक से शिवशंकर की जटाओं में पहुँची थी। इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है।
- जिस दिन गंगा जी की उत्पत्ति हुई, वह दिन 'गंगा जयंती' (वैशाख शुक्ल सप्तमी) और जिस दिन गंगाजी पृथ्वी पर अवतरित हुईं, वह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) के नाम से जाना जाता है। इस दिन माँ गंगा का पूजन किया जाता है।
- गंगा सप्तमी के अवसर पर्व पर माँ गंगा में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- वैसे तो गंगा में स्नान का अपना अलग ही महत्व है, लेकिन इस दिन स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है।
- इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
- कहा जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से दस पापों का हरण होकर अंत में मुक्ति मिलती है।
- इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जीवनदायिनी गंगा में स्नान, पुण्यसलिला नर्मदा के दर्शन और मोक्षदायिनी शिप्रा के स्मरण मात्र से मोक्ष मिल जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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