राम प्रसाद बिस्मिल: Difference between revisions

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राम प्रसाद 'बिस्मिल' (जन्म- 11 जून, 1897 - मृत्यु- 19 दिसंबर, 1927) [[भारत]] के महान स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद् व साहित्यकार भी थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी।  
राम प्रसाद 'बिस्मिल' (जन्म- 11 जून, 1897 - मृत्यु- 19 दिसंबर, 1927) [[भारत]] के महान स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद् व साहित्यकार भी थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
====जन्म====
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पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[शाहजहाँपुर]] ज़िले में [[11 जून]], 1897 को हुआ। यह वह समय था जब देश में राष्ट्रीय आन्दोलन ज़ोरों पर था। देश में ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ एक ऐसी लहर उठने लगी थी जो पूरे अंग्रेज़ी शासन को लीलने के लिए बेताब हो चली थी। बिस्मिल में भी बचपन से ही ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ एक गहरी नफ़रत घर कर गई। [[अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान]], [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], [[भगतसिंह]], [[राजगुरु]], [[सुखदेव]] और ठाकुर रोशनसिंह जैसे क्रांतिकारियों से सम्पर्क में आने के बाद आपने अंग्रेज़ों की नाक में दम करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले [[काकोरी कांड]] को आपने ही अंजाम दिया था।
पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[शाहजहाँपुर]] ज़िले में [[11 जून]], 1897 को हुआ। यह वह समय था जब देश में राष्ट्रीय आन्दोलन ज़ोरों पर था। देश में ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ एक ऐसी लहर उठने लगी थी जो पूरे अंग्रेज़ी शासन को लीलने के लिए बेताब हो चली थी। बिस्मिल में भी बचपन से ही ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ एक गहरी नफ़रत घर कर गई। [[अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान]], [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], [[भगतसिंह]], [[राजगुरु]], [[सुखदेव]] और ठाकुर रोशनसिंह जैसे क्रांतिकारियों से सम्पर्क में आने के बाद आपने अंग्रेज़ों की नाक में दम करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले [[काकोरी कांड]] को आपने ही अंजाम दिया था।
[[चित्र:Bismil-Ashfaqua-stamp.jpg|thumb|बिस्मिल और [[अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान]] के सम्मान में जारी [[डाक टिकट]]]]
इतना ही नहीं अपनी क़लम के माध्यम से भी आप ब्रिटिश हुक़ूमत की [[आँख]] की किरकिरी बन गए। ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ जैसा अमर गीत लिखकर आपने क्रांति की वो चिंगारी छेड़ी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षागृह में परिवर्तित कर दिया। राम प्रसाद बिस्मिल ने 'बिस्मिल अज़ीमाबादी' के नाम से भी काफ़ी शाइरी की। जीवन के अंतिम सफ़र में जब आपको गोरखपुर जेल भेजा गया तो आपने आत्मकथा भी लिखी।
इतना ही नहीं अपनी क़लम के माध्यम से भी आप ब्रिटिश हुक़ूमत की [[आँख]] की किरकिरी बन गए। ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ जैसा अमर गीत लिखकर आपने क्रांति की वो चिंगारी छेड़ी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षागृह में परिवर्तित कर दिया। राम प्रसाद बिस्मिल ने 'बिस्मिल अज़ीमाबादी' के नाम से भी काफ़ी शाइरी की। जीवन के अंतिम सफ़र में जब आपको गोरखपुर जेल भेजा गया तो आपने आत्मकथा भी लिखी।
====मृत्यु====
====मृत्यु====

Revision as of 15:07, 10 June 2011

thumb|राम प्रसाद बिस्मिल राम प्रसाद 'बिस्मिल' (जन्म- 11 जून, 1897 - मृत्यु- 19 दिसंबर, 1927) भारत के महान स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं, बल्कि उच्च कोटि के कवि, शायर, अनुवादक, बहुभाषाविद् व साहित्यकार भी थे जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी।

जीवन परिचय

जन्म

पंडित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर ज़िले में 11 जून, 1897 को हुआ। यह वह समय था जब देश में राष्ट्रीय आन्दोलन ज़ोरों पर था। देश में ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ एक ऐसी लहर उठने लगी थी जो पूरे अंग्रेज़ी शासन को लीलने के लिए बेताब हो चली थी। बिस्मिल में भी बचपन से ही ब्रिटिश हुक़ूमत के ख़िलाफ़ एक गहरी नफ़रत घर कर गई। अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान, चन्द्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव और ठाकुर रोशनसिंह जैसे क्रांतिकारियों से सम्पर्क में आने के बाद आपने अंग्रेज़ों की नाक में दम करना शुरू कर दिया। ब्रिटिश साम्राज्य को दहला देने वाले काकोरी कांड को आपने ही अंजाम दिया था। [[चित्र:Bismil-Ashfaqua-stamp.jpg|thumb|बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह ख़ान के सम्मान में जारी डाक टिकट]] इतना ही नहीं अपनी क़लम के माध्यम से भी आप ब्रिटिश हुक़ूमत की आँख की किरकिरी बन गए। ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ जैसा अमर गीत लिखकर आपने क्रांति की वो चिंगारी छेड़ी जिसने ज्वाला का रूप लेकर ब्रिटिश शासन के भवन को लाक्षागृह में परिवर्तित कर दिया। राम प्रसाद बिस्मिल ने 'बिस्मिल अज़ीमाबादी' के नाम से भी काफ़ी शाइरी की। जीवन के अंतिम सफ़र में जब आपको गोरखपुर जेल भेजा गया तो आपने आत्मकथा भी लिखी।

मृत्यु

19 दिसम्बर, 1927 को आपको देशभक्ति के अपराध में फाँसी दी गई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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