सुजन्मावाप्ति व्रत: Difference between revisions

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*यह वर्ष की सभी 12 संक्रान्तियों पर किया जाता है।
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*प्रति संक्रान्ति पर उपवास करना चाहिए।
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*क्रम से सूर्य, भार्गव [[राम]] (परशुराम) [[कुष्ण]], [[विष्णु]], [[वराह अवतार|वराह]], [[नृसिंह अवतार|नरसिंह]], दाशरथि राम, [[बलराम]], [[मत्स्य]] की प्रतिमाओं की पूजा करनी चाहिए।
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*इनके चित्र भी किसी वस्त्र पर बनाकर पूजे जा सकते हैं।
*इनके चित्र भी किसी वस्त्र पर बनाकर पूजे जा सकते हैं।
*प्रत्येक संक्रान्ति पर उपयुक्त नाम से होम करना चाहिए।
*प्रत्येक संक्रान्ति पर उपयुक्त नाम से होम करना चाहिए।

Revision as of 07:48, 15 July 2011

  • भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
  • यह संक्रान्ति व्रत है।
  • जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तो उस दिन इसका आरम्भ होता है।
  • यह वर्ष की सभी 12 संक्रान्तियों पर किया जाता है।
  • प्रति संक्रान्ति पर उपवास करना चाहिए।
  • क्रम से सूर्य, भार्गव राम (परशुराम) कृष्ण, विष्णु, वराह, नरसिंह, दाशरथि राम, बलराम, मत्स्य की प्रतिमाओं की पूजा करनी चाहिए।
  • इनके चित्र भी किसी वस्त्र पर बनाकर पूजे जा सकते हैं।
  • प्रत्येक संक्रान्ति पर उपयुक्त नाम से होम करना चाहिए।
  • एक वर्ष तक करना चाहिए।
  • अन्त में जलधेनु का छत्र एवं चप्पलों के साथ में दान करना चाहिए।
  • प्रत्येक मास में सोने एवं दो वस्त्रों का दान करना चाहिए।
  • दीपमाला से रात्रि में पूजा करनी चाहिए।
  • कर्ता निम्न पशुओं तथा म्लेच्छों में जन्म नहीं पाता है।[1]
  • हेमाद्रि ने तुला एवं अन्य दो आगे वाली राशियों में पूजा का उल्लेख नहीं किया है।
  • किन्तु विष्णुधर्मोत्तरपुराण[2] में ऐसा आया है कि जब सूर्य क्रम से तुला, वृश्चिक एवं धनु राशि में प्रवेश करता है तो क्रम से वामन, त्रिविक्रम एवं अश्वशीर्ष (हयग्रीव) की पूजा होती है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 727-7828, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); पुरुषार्थचिन्तामणि (12)
  2. (विष्णुधर्मोत्तरपुराण 3|199)

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