लोहाभिसारिककृत्य: Difference between revisions
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*जब कोई राजा आक्रमण के लिए प्रस्थान करता था, तो उस पर पवित्र जल छिड़कने या दीपों की आरती करने को लोहाभिसारिक कर्म कहा जाता था। | *जब कोई राजा आक्रमण के लिए प्रस्थान करता था, तो उस पर पवित्र जल छिड़कने या दीपों की आरती करने को लोहाभिसारिक कर्म कहा जाता था। | ||
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Revision as of 12:16, 27 July 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- लोहाभिसारिककृत्य के अन्य रूपान्तर हैं 'लोहाभिहारिक' एवं 'लौहाभिसारिक'।
- आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अष्टमी तक लोहाभिसारिक कृत्य किया जाता है।
- विजयेच्छुक राजा को यह कृत्य करना चाहिए। [1]
- दुर्गा की स्वर्णिम या रजत या मिट्टी की प्रतिमा का पूजन, इसी प्रकार राजकीय आयुधों एवं प्रतीकों की मंत्रों से पूजा करनी चाहिए।
- एक कथा है कि लोह नामक एक राक्षस था, जो कि देवों के द्वारा टुकड़ों में रूपान्तरित कर दिया गया, संसार में जो भी लोह (लोहा) इस्पात है, वह सब उसी के अंगों के अंश हैं।
- 'लोहाभिसार' का अर्थ है लोहे के आयुधों (हथियारों अथवा अस्त्रों) पर चिह्न लगाना या उन्हें चमकाना ('लोहाभिहारोस्त्रभृतं राज्ञां नीराजनो विधि:'–अमरकोश)।
- जब कोई राजा आक्रमण के लिए प्रस्थान करता था, तो उस पर पवित्र जल छिड़कने या दीपों की आरती करने को लोहाभिसारिक कर्म कहा जाता था।
- उद्योगपर्व [2] में हम पाते हैं: 'लोहाभिसारी निर्वृत्त:.....'। नीलकण्ठ ने व्यवस्था दी है कि इसमें हथियारों के समक्ष दीपों की आरती उतारना एवं देवताओं का आहवान करना होता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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