बलवंत सिंह: Difference between revisions

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'''शहीद बलवंत सिंह''' (जन्म [[16 सितंबर]], [[1882]] ई. को [[जालंधर ज़िला|जालंधर ज़िले]] के खुर्दपुर गांव; मृत्यु [[मार्च]], [[1917]] में लाहौर जेल) का जीवन बड़ा घटना प्रधान रहा था। 10 वर्ष तक वे अंग्रेजों की सेना में थे।  
'''शहीद बलवंत सिंह''' (जन्म [[16 सितंबर]], [[1882]] ई. [[जालंधर ज़िला|जालंधर ज़िले]] खुर्दपुर गांव; मृत्यु [[मार्च]], [[1917]] लाहौर जेल) एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने 10 वर्ष तक [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] की सेना में थे।  


==यात्रा==
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शहीद बलवंत सिंह (जन्म 16 सितंबर, 1882 ई. जालंधर ज़िले खुर्दपुर गांव; मृत्यु मार्च, 1917 लाहौर जेल) एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उन्होंने 10 वर्ष तक अंग्रेजों की सेना में थे।

यात्रा

1905 में सेना से त्यागपत्र दे दिया और धार्मिक क्रियाकलापों में लग गए। कुछ समय बाद बलवंत सिंह अमेरिका होते हुए कनाडा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि भारत की दासता के कारण और जातीय भेदभाव से भारत से गए लोगों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। उन्होंने इसके विरोध में आवाज उठाई, किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब उनको विश्वास हो गया कि भारत से अंग्रेजों की सत्ता समाप्त होने पर ही इस भेदभाव का अंत संभव है। बलवंत सिंह ‘गदर पार्टी’ के संपर्क में आए। ‘कामागाटा मारु’ जहाज से भारत के लोगों को कनाडा के तट पर उतारने का प्रयत्न करने वालों में वे भी सम्मिलित थे। भारत आकर उन्होंने पंजाब में लोगों को विदेशी सरकार के विरूद्ध संगठित करने का प्रयत्न किया। वहां के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकेल आ डायर ने लिखा कि बलवंत सिंह पंजाब में राजद्रोह फैला रहे थे।

मृत्यु

बलवंत सिंह बैंकाक गए हुए थे कि उन पर कनाडा के सिखों के विरूद्ध काम करने वाले हॉपकिन्सन की हत्या में सम्मिलित होने का आरोप लगाया गया। 1915 में गिरफ्तार हुए और ब्रिटिश सरकार को सौंप दिए गए। दूसरे ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में उन पर भी मुकदमा चला और मार्च, 1917 में लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।  


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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