वेश्या व्रत: Difference between revisions
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Revision as of 07:25, 7 December 2010
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- हेमाद्रि[1] ने वेश्याव्रत का उल्लेख किया है।
- उसमें कृष्ण द्वारा युधिष्ठर को सुनायी गयी विस्मयकारी घटना का वर्णन है।
- श्री कृष्ण ने जब अपने पुत्र साम्ब के रूप में अपनी 16000 पत्नियों को आकृष्ट देखा तो उन्होंने उन्हें शाप दिया कि मेरी मृत्यु के उपरान्त तुम्हें दस्यु लोग चुरा ले जायेंगे।
- यह भी कथा है कि नारद ने उन अप्सराओं को, जिन्होंने उनको प्रणाम नहीं किया था, शाप दिया था कि वे नारायण की पत्नियाँ बनेंगी और अन्त में डाकुओं द्वारा भगा ली जायेंगी और वेश्या हो जायेंगी।
- कथा का सारांश यह है कि उन्हें महलों एवं मन्दिरों में वेश्यावृत्ति करने की मति दी गयी और कहा गया कि वे धनहीन पुरुष को प्यार न करेंगी, उनका प्रमुख उद्देश्य होगा धनार्जन, चाहे उनके पास आने वाला व्यक्ति सुन्दर हो या असुन्दर।
- यह आगे कहा गया है कि वे गायों, भूमि एवं सोने का दान (ब्राह्मणों को) करेंगी, हस्त या पुण्य या पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त रविवार को सर्वौषधि जल से स्नान करेंगी, कामदेव की पाद से सिर तक पूजा करेंगी।
- काम की पूजा विष्णु के रूप में होती है।
- वेदज्ञ ब्राह्मण का सम्मान किया जाता है।
- उसे एक प्रस्थ (पसर) चावल दिया जाता है।
- वेश्या अपने शरीर का दान (उस ब्राह्मण को) रविवार को करती है और यह वर्ष भर चलता है, 13वें मास पलंग, स्वर्ण सिकड़ी (हार) एवं कामदेव की प्रतिमा का दान करना चाहिए।
- यह व्रत सभी वेश्याओं के लिए है।
- यह वारव्रत है।
- वेश्याव्रत देवता अनंग (कामदेव) कृत्यकल्पतरु[2] में यह व्रत वर्णित है और इसे वेश्यादित्यवारानंगदान-व्रत कहा गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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