संकष्टी चतुर्थी

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संकष्टी चतुर्थी माघ मास में कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को कहा जाता है। इस चतुर्थी को 'माघी चतुर्थी' या 'तिल चौथ' भी कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। इस दिन भगवान श्रीगणेश की आराधना सुख-सौभाग्य आदि प्रदान करने वाली कही गई है। संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से घर-परिवार में आ रही विपदाएँ दूर होती है। कई दिनों से रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं तथा भगवान श्रीगणेश असीम सुखों को प्रदान करते हैं। इस दिन गणेश कथा सुनने अथवा पढ़ने का विशेष महत्व माना गया है। व्रत करने वालों को इस दिन यह कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। तभी व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।

व्रत विधि

भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने हेतु 'संकष्टी चतुर्थी' का व्रत निम्न प्रकार करना चाहिए-

सर्वप्रथम व्रत करने वाले को चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र धारण करे तो विशेष लाभ होता है। श्रीगणेश की पूजा करते समय व्रती को अपना मुँह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए। तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करे। इसके बाद फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से भगवान गणेश को स्नान करा कर विधिवत प्रकार से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। गणेश पूजन के दौरान धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना होनी चाहिए। भगवान गणेश को तिल से बनी वस्तुओं, तिल-गुड़ के लड्‍डू तथा मोदक का भोग लगाना चाहिए। 'ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है', इस वाक्य के साथ नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित करना चाहिए। सायं काल में व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुने और सुनाएँ। तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें। विधिवत तरीके से गणेश पूजा करने के बाद गणेश मंत्र 'ॐ गणेशाय नम:' अथवा 'ॐ गं गणपतये नम:' की एक माला, यानी 108 बार गणेश मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को दान आदि देना चाहिए। तिल-गुड़ के लड्डू, कंबल या कपडे़ आदि का दान करें।[1]

कथा

पौराणिक गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेश से पूछा कि- "तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है।" तब कार्तिकेय व गणेश दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा- "तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की मदद करने जाएगा।"

भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए तुरंत ही निकल गए। परंतु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह मन्द गति से दौड़ने वाले अपने वाहन चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा। तब गणेश ने कहा- "माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।" यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके तीनों ताप, यानी 'दैहिक ताप', 'दैविक ताप' तथा 'भौतिक ताप' दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी। चारों तरफ़ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संकष्टी चतुर्थी व्रत कैसे करें (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जून, 2013।
  2. गणेश तिल चतुर्थी व्रत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जून, 2013।

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