Difference between revisions of "अपरा एकादशी"
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− | अपरा एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा है। इस दिन भगवान [[त्रिविक्रम]] की पूजा की जाती है। इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या, परनिन्दा, भूतयोनि जैसे निकृष्ट कर्मों से छुटकारा मिल जाता है। इसके करने से कीर्ति, [[पुण्य]] तथा धन की अभिवृद्धि होती है। यह व्रत गवाही, मिथ्यावादियों, जालसाजों, कपटियों तथा ठगों के घोर पापों को मिटाने वाला है। | + | {{सूचना बक्सा त्योहार |
+ | |चित्र=God-Vishnu.jpg | ||
+ | |चित्र का नाम= भगवान विष्णु | ||
+ | |अन्य नाम = अचला एकादशी | ||
+ | |अनुयायी = [[हिंदू]] | ||
+ | |उद्देश्य = | ||
+ | |प्रारम्भ = पौराणिक काल | ||
+ | |तिथि=[[ज्येष्ठ]] [[कृष्ण पक्ष]] की [[एकादशी]] | ||
+ | |उत्सव =अपरा एकादशी के दिन [[तुलसी]], [[चंदन]], कपूर, [[गंगाजल]] सहित भगवान [[विष्णु]] की पूजा की जानी चाहिए। कहीं-कहीं [[बलराम]]-[[कृष्ण]] का भी पूजन करते हैं। | ||
+ | |अनुष्ठान = | ||
+ | |धार्मिक मान्यता = | ||
+ | |प्रसिद्धि = | ||
+ | |संबंधित लेख= | ||
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+ | |अन्य जानकारी=इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या, परनिन्दा, भूतयोनि जैसे निकृष्ट कर्मों से छुटकारा मिल जाता है। इसके करने से कीर्ति, [[पुण्य]] तथा धन की अभिवृद्धि होती है। यह व्रत गवाही, मिथ्यावादियों, जालसाजों, कपटियों तथा ठगों के घोर पापों को मिटाने वाला है। | ||
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+ | अपरा एकादशी ‘अचला’ तथा’ अपरा दो नामों से जानी जाती है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[ज्येष्ठ]] [[कृष्ण पक्ष]] की [[एकादशी]] अपरा है। इस दिन भगवान [[त्रिविक्रम]] की पूजा की जाती है। इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या, परनिन्दा, भूतयोनि जैसे निकृष्ट कर्मों से छुटकारा मिल जाता है। इसके करने से कीर्ति, [[पुण्य]] तथा धन की अभिवृद्धि होती है। यह व्रत गवाही, मिथ्यावादियों, जालसाजों, कपटियों तथा ठगों के घोर पापों को मिटाने वाला है। | ||
==विधि== | ==विधि== | ||
अपरा एकादशी के दिन [[तुलसी]], [[चंदन]], कपूर, [[गंगाजल]] सहित भगवान [[विष्णु]] की पूजा की जानी चाहिए। कहीं-कहीं [[बलराम]]-[[कृष्ण]] का भी पूजन करते हैं। | अपरा एकादशी के दिन [[तुलसी]], [[चंदन]], कपूर, [[गंगाजल]] सहित भगवान [[विष्णु]] की पूजा की जानी चाहिए। कहीं-कहीं [[बलराम]]-[[कृष्ण]] का भी पूजन करते हैं। | ||
==कथा== | ==कथा== | ||
− | प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस अवसरवादी पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली [[पीपल]] के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी [[पीपल]] पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। अकस्मात एक दिन धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को [[पीपल]] के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया। | + | प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस अवसरवादी पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली [[पीपल]] के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी [[पीपल]] पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। अकस्मात एक दिन धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को [[पीपल]] के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया। |
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{पर्व और त्योहार}} | {{पर्व और त्योहार}} |
Revision as of 09:09, 31 May 2013
apara ekadashi
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any nam | achala ekadashi |
anuyayi | hiandoo |
prarambh | pauranik kal |
tithi | jyeshth krishna paksh ki ekadashi |
utsav | apara ekadashi ke din tulasi, chandan, kapoor, gangajal sahit bhagavan vishnu ki pooja ki jani chahie. kahian-kahian balaram-krishna ka bhi poojan karate haian. |
any janakari | is vrat ke karane se brahmahatya, paraninda, bhootayoni jaise nikrisht karmoan se chhutakara mil jata hai. isake karane se kirti, puny tatha dhan ki abhivriddhi hoti hai. yah vrat gavahi, mithyavadiyoan, jalasajoan, kapatiyoan tatha thagoan ke ghor papoan ko mitane vala hai. |
apara ekadashi ‘achala’ tatha’ apara do namoan se jani jati hai. puranoan ke anusar jyeshth krishna paksh ki ekadashi apara hai. is din bhagavan trivikram ki pooja ki jati hai. is vrat ke karane se brahmahatya, paraninda, bhootayoni jaise nikrisht karmoan se chhutakara mil jata hai. isake karane se kirti, puny tatha dhan ki abhivriddhi hoti hai. yah vrat gavahi, mithyavadiyoan, jalasajoan, kapatiyoan tatha thagoan ke ghor papoan ko mitane vala hai.
vidhi
apara ekadashi ke din tulasi, chandan, kapoor, gangajal sahit bhagavan vishnu ki pooja ki jani chahie. kahian-kahian balaram-krishna ka bhi poojan karate haian.
katha
prachin kal mean mahidhvaj namak ek dharmatma raja tha. usaka chhota bhaee vajradhvaj b da hi kroor, adharmi tatha anyayi tha. vah apane b de bhaee se dvesh rakhata tha. us avasaravadi papi ne ek din ratri mean apane b de bhaee ki hatya karake usaki deh ko ek jangali pipal ke niche ga d diya. is akal mrityu se raja pretatma ke roop mean usi pipal par rahane laga aur anek utpat karane laga. akasmat ek din dhaumy namak rrishi udhar se gujare. unhoanne pret ko dekha aur tapobal se usake atit ko jan liya. apane tapobal se pret utpat ka karan samajha. rrishi ne prasann hokar us pret ko pipal ke pe d se utara tatha paralok vidya ka upadesh diya. dayalu rrishi ne raja ki pret yoni se mukti ke lie svayan hi apara (achala) ekadashi ka vrat kiya aur use agati se chhu dane ko usaka puny pret ko arpit kar diya. is puny ke prabhav se raja ki pret yoni se mukti ho gee. vah rrishi ko dhanyavad deta hua divy deh dharan kar pushpak viman mean baithakar svarg ko chala gaya.
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tika tippani aur sandarbh
sanbandhit lekh
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