Difference between revisions of "उत्पन्ना एकादशी"

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उत्पन्ना एकादशी के दिन भगवान श्री [[कृष्ण]] की पूजा की जाती है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी उत्पन्ना है। इस व्रत को करने से मनुष्य को जीवन में सुख शांति मिलती है। मृत्यु के पश्चात [[विष्णु]] के परम धाम का वास प्राप्त होता है।  
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'''उत्पन्ना एकादशी''' के दिन भगवान [[श्रीकृष्ण]] की पूजा की जाती है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार [[मार्गशीर्ष]] [[कृष्ण पक्ष]] की [[एकादशी]] उत्पन्ना है। इस व्रत को करने से मनुष्य को जीवन में सुख शांति मिलती है। मृत्यु के पश्चात [[विष्णु]] के परम धाम का वास प्राप्त होता है।  
 
==विधि==
 
==विधि==
व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्मवेला में ही भगवान को पुष्प, [[जल]], [[धूप]], [[दीपक|दीप]], अक्षत से पूजन करके नीराजन करना चाहिए। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है। परनिंदक, चोर, दुराचारी, ब्राह्मणदोही, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी ग़लती हो जाए तो [[सूर्य देवता|सूर्य]] के सम्मुख स्थित होकर प्रार्थना करनी चाहिए।
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व्रत रहने वाले को दशमी के दिन रात में भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन ब्रह्मवेला में ही भगवान को [[पुष्प]], [[जल]], [[धूप]], [[दीपक|दीप]], अक्षत से पूजन करके [[नीराजन विधि|नीराजन]] करना चाहिए। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है। परनिंदक, चोर, दुराचारी, ब्राह्मणदोही, नास्तिक इन सबसे बात नहीं करनी चाहिए। यदि भूल से ऐसी ग़लती हो जाए तो [[सूर्य देवता|सूर्य]] के सम्मुख स्थित होकर प्रार्थना करनी चाहिए।
 
==व्रत कथा==
 
==व्रत कथा==
सतयुग में मुर नामक दैत्य चंद्रवती नामक राजधानी में रहता था। उसने सब देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्रासन को जीत लिया था। वह [[सूर्य देवता|सूर्य]], [[चंद्र देवता|चंद्र]] आदि देवताओं के स्थान पर स्वयं प्रकाश पुंज बनकर चमकने लगा। देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली। तब भगवान ने उसे मारने का उपाय सोचा और युद्ध प्रारम्भ कर दिया।
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[[सतयुग]] में मुर नामक दैत्य चंद्रवती नामक राजधानी में रहता था। उसने सब देवताओं पर विजय प्राप्त कर इंद्रासन को जीत लिया था। वह [[सूर्य देवता|सूर्य]], [[चंद्र देवता|चंद्र]] आदि देवताओं के स्थान पर स्वयं प्रकाश पुंज बनकर चमकने लगा। देवताओं ने भगवान [[विष्णु]] की शरण ली। तब भगवान ने उसे मारने का उपाय सोचा और युद्ध प्रारम्भ कर दिया। विष्णुजी ने बाणों से दानवों का संहार तो कर दिया पर मुर मर न सका क्योंकि वह किसी देवता के वरदान से अजेय था। युद्ध करते-करते जब काफ़ी समय बीत गया तो भगवान एक गुफ़ा में घुस गए। वह मुर से लड़ना छोड़ बद्रिकाश्रम की गुफ़ा में आराम करने लगे। मुर ने भी पीछा न छोड़ा। मुर उनका पीछा करता आया और ज्योंहि विष्णुजी पर प्रहार करना चाहा त्योंहि विष्णुजी के शरीर से एक कन्या पैदा हुई जिसने मुर का संहार कर दिया।<br />
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भगवान विष्णु उस कन्या पर प्रसन्न होकर बोले- 'हे देवी! तुम आज मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई हो इसलिए तुम्हारा नाम [[एकादशी]] होगा। तुझे लोग 'उत्पन्ना एकादशी' कहकर पुकारेंगे। आज से इस एकादशी के दिन तुम्हारा पूजन होगा। तुम इस संसार के मायाजाल में मोहवश उलझे प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम होगी।' जो व्यक्ति इस दिन व्रत रहकर तुम्हारी पूजा करेंगे वे पाप मुक्त होकर विष्णुलोक प्राप्त करेंगे। तेरी अराधना करने वाले प्राणी धन-धान्य से पूर्ण होकर सुख-लाभ भोगेगा। वही कन्या 'एकादशी' हुई। वर्ष भर की चौबीस एकादशियों में इस एकादशी का अपूर्व माहात्म्य है, विष्णुजी से उत्पन्न होने के कारण ही इसका नाम 'उत्पन्ना एकादशी' पड़ा।
  
विष्णुजी ने बाणों से दानवों का संहार तो कर दिया पर मुर मर न सका क्योंकि वह किसी देवता के वरदान से अजेय था। युद्ध करते-करते जब काफ़ी समय बीत गया तो भगवान एक गुफ़ा में घुस गए। वह मुर से लड़ना छोड़ बद्रिकाश्रम की गुफ़ा में आराम करने लगे। मुर ने भी पीछा न छोड़ा। मुर उनका पीछा करता आया और ज्योंहि विष्णुजी पर प्रहार करना चाहा त्योंहि विष्णुजी के शरीर से एक कन्या पैदा हुई जिसने मुर का संहार कर दिया।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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भगवान विष्णु उस कन्या पर प्रसन्न होकर बोले- 'हे देवी! तुम आज मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई हो इसलिए तुम्हारा नाम एकादशी होगा। तुझे लोग 'उत्पन्ना एकादशी' कहकर पुकारेंगे। आज से इस एकादशी के दिन तुम्हारा पूजन होगा। तुम इस संसार के मायाजाल में मोहवश उलझे प्राणियों को मुझ तक लाने में सक्षम होगी।' जो व्यक्ति इस दिन व्रत रहकर तुम्हारी पूजा करेंगे वे पाप मुक्त होकर विष्णुलोक प्राप्त करेंगे। तेरी अराधना करने वाले प्राणी धन-धान्य से पूर्ण होकर सुख-लाभ भोगेगा। वही कन्या 'एकादशी' हुई। वर्ष भर की चौबीस एकादशियों में इस एकादशी का अपूर्व माहात्म्य है, विष्णुजी से उत्पन्न होने के कारण ही इसका नाम 'उत्पन्ना एकादशी' पड़ा।
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
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Revision as of 12:45, 12 November 2013

utpanna ekadashi
anuyayi hiandoo
uddeshy is vrat ko karane se manushy ko jivan mean sukh shaanti milati hai. mrityu ke pashchat vishnu ke param dham ka vas prapt hota hai.
tithi margashirsh krishna paksh ekadashi
utsav ekadashi ke din brahmavela mean hi bhagavan ko pushp, jal, dhoop, dip, akshat se poojan karake nirajan karana chahie.
any janakari vrat rahane vale ko is din paraniandak, chor, durachari, brahmanadohi, nastik in sabase bat nahian karani chahie.

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utpanna ekadashi ke din bhagavan shrikrishna ki pooja ki jati hai. puranoan ke anusar margashirsh krishna paksh ki ekadashi utpanna hai. is vrat ko karane se manushy ko jivan mean sukh shaanti milati hai. mrityu ke pashchat vishnu ke param dham ka vas prapt hota hai.

vidhi

vrat rahane vale ko dashami ke din rat mean bhojan nahian karana chahie. ekadashi ke din brahmavela mean hi bhagavan ko pushp, jal, dhoop, dip, akshat se poojan karake nirajan karana chahie. is vrat mean keval phaloan ka hi bhog lagaya jata hai. paraniandak, chor, durachari, brahmanadohi, nastik in sabase bat nahian karani chahie. yadi bhool se aisi galati ho jae to soory ke sammukh sthit hokar prarthana karani chahie.

vrat katha

satayug mean mur namak daity chandravati namak rajadhani mean rahata tha. usane sab devataoan par vijay prapt kar iandrasan ko jit liya tha. vah soory, chandr adi devataoan ke sthan par svayan prakash puanj banakar chamakane laga. devataoan ne bhagavan vishnu ki sharan li. tab bhagavan ne use marane ka upay socha aur yuddh prarambh kar diya. vishnuji ne banoan se danavoan ka sanhar to kar diya par mur mar n saka kyoanki vah kisi devata ke varadan se ajey tha. yuddh karate-karate jab kafi samay bit gaya to bhagavan ek gufa mean ghus ge. vah mur se l dana chho d badrikashram ki gufa mean aram karane lage. mur ne bhi pichha n chho da. mur unaka pichha karata aya aur jyoanhi vishnuji par prahar karana chaha tyoanhi vishnuji ke sharir se ek kanya paida huee jisane mur ka sanhar kar diya.
bhagavan vishnu us kanya par prasann hokar bole- 'he devi! tum aj margashirsh krishna ekadashi ko prakat huee ho isalie tumhara nam ekadashi hoga. tujhe log 'utpanna ekadashi' kahakar pukareange. aj se is ekadashi ke din tumhara poojan hoga. tum is sansar ke mayajal mean mohavash ulajhe praniyoan ko mujh tak lane mean saksham hogi.' jo vyakti is din vrat rahakar tumhari pooja kareange ve pap mukt hokar vishnulok prapt kareange. teri aradhana karane vale prani dhan-dhany se poorn hokar sukh-labh bhogega. vahi kanya 'ekadashi' huee. varsh bhar ki chaubis ekadashiyoan mean is ekadashi ka apoorv mahatmy hai, vishnuji se utpann hone ke karan hi isaka nam 'utpanna ekadashi' p da.

tika tippani aur sandarbh

sanbandhit lekh

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