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Latest revision as of 05:25, 11 May 2018
अपरा एकादशी
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अन्य नाम | अचला एकादशी |
अनुयायी | हिंदू |
प्रारम्भ | पौराणिक काल |
तिथि | ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी |
उत्सव | अपरा एकादशी के दिन तुलसी, चंदन, कपूर, गंगाजल सहित भगवान विष्णु की पूजा की जानी चाहिए। कहीं-कहीं बलराम-कृष्ण का भी पूजन करते हैं। |
अन्य जानकारी | इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या, परनिन्दा, भूतयोनि जैसे निकृष्ट कर्मों से छुटकारा मिल जाता है। इसके करने से कीर्ति, पुण्य तथा धन की अभिवृद्धि होती है। यह व्रत गवाही, मिथ्यावादियों, जालसाजों, कपटियों तथा ठगों के घोर पापों को मिटाने वाला है। |
अपरा एकादशी को ‘अचला एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा है। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। इस व्रत के करने से ब्रह्महत्या, परनिन्दा, भूतयोनि जैसे निकृष्ट कर्मों से छुटकारा मिल जाता है। इसके करने से कीर्ति, पुण्य तथा धन की अभिवृद्धि होती है। यह व्रत गवाही, मिथ्यावादियों, जालसाजों, कपटियों तथा ठगों के घोर पापों को मिटाने वाला है।
विधि
अपरा एकादशी के दिन तुलसी, चंदन, कपूर, गंगाजल सहित भगवान विष्णु की पूजा की जानी चाहिए। कहीं-कहीं बलराम-कृष्ण का भी पूजन करते हैं।
कथा
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस अवसरवादी पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा। अकस्मात एक दिन धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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