कंधार: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "khoj.bharatdiscovery.org" to "bharatkhoj.org")
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Kandahar.jpg|thumb|250px|कंधार, [[अफ़ग़ानिस्तान]]]]
[[चित्र:Kandahar.jpg|thumb|250px|कंधार, [[अफ़ग़ानिस्तान]]]]
'''कंधार''' प्राचीन नगर 'गंधार' का ही रूपातंरण है। यह [[अफ़ग़ानिस्तान]] का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। सामरिक दृष्टि से कंधार काफ़ी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि [[भारत]] से अफ़ग़ानिस्तान जाने वाली रेलवे लाइन यहीं पर समाप्त होती है। यह नगर महत्त्वपूर्ण मंडी भी है। पूर्व से पश्चिम को स्थल मार्ग से होने वाला अधिकांश व्यापार यहीं से होता है। कंधार में सोतों के पानी से सिंचाई की अनोखी व्यवस्था है। जगह-जगह कुएँ खोदकर उनको सुरंग से मिला दिया गया है।
'''कंधार''' प्राचीन नगर 'गंधार' का ही रूपातंरण है। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=122|url=}}</ref> यह [[अफ़ग़ानिस्तान]] का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। सामरिक दृष्टि से कंधार काफ़ी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि [[भारत]] से अफ़ग़ानिस्तान जाने वाली रेलवे लाइन यहीं पर समाप्त होती है। यह नगर महत्त्वपूर्ण मंडी भी है। पूर्व से पश्चिम को स्थल मार्ग से होने वाला अधिकांश व्यापार यहीं से होता है। कंधार में सोतों के पानी से सिंचाई की अनोखी व्यवस्था है। जगह-जगह कुएँ खोदकर उनको सुरंग से मिला दिया गया है।
==स्थिति==
==स्थिति==
कंधार [[काबुल]] से लगभग 280 मील दक्षिण-पश्चिम और 3,462 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर टरनाक एवं अर्ग़्दाब नदियों के उपजाऊ [[मैदान]] के मध्य में स्थित है, जहाँ नहरों द्वारा सिंचाई होती है; परंतु इसके उत्तर का भाग उजाड़ है। समीप के नए ढंग से सिंचित मैदानों में [[फल]], [[गेहूँ]], [[जौ]], [[दाल|दालें]], मजीठ, हींग, [[तंबाकू]] आदि उगाई जाती हैं। कंधार से नए चमन तक रेलमार्ग है और वहाँ तक [[पाकिस्तान]] से रेल जाती है। प्राचीन कंधार नगर तीन मील में बसा हुआ है, जिसके चारों तरफ 24 फुट चौड़ी, 10 फुट गहरी खाई एवं 27 फुट ऊँची दीवार है। इस शहर के छह दरवाज़े हैं, जिनमें से दो पूरब, दो पश्चिम, एक उत्तर तथा एक दक्षिण में है। मुख्य सड़कें 40 फुट से अधिक चौड़ी हैं। कंधार चार स्पष्ट भागों में विभक्त है, जिनमें अलग-अलग जाति (कबीले) के लोग रहते हैं। इनमें चार- '[[दुर्रानी]]', 'घिलज़ाई', 'पार्सिवन' और 'काकार' प्रसिद्ध हैं।<ref>{{cite web |url= http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0|title= कंधार|accessmonthday=25 जून|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref>
कंधार [[काबुल]] से लगभग 280 मील दक्षिण-पश्चिम और 3,462 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर टरनाक एवं अर्ग़्दाब नदियों के उपजाऊ [[मैदान]] के मध्य में स्थित है, जहाँ नहरों द्वारा सिंचाई होती है; परंतु इसके उत्तर का भाग उजाड़ है। समीप के नए ढंग से सिंचित मैदानों में [[फल]], [[गेहूँ]], [[जौ]], [[दाल|दालें]], मजीठ, हींग, [[तंबाकू]] आदि उगाई जाती हैं। कंधार से नए चमन तक रेलमार्ग है और वहाँ तक [[पाकिस्तान]] से रेल जाती है। प्राचीन कंधार नगर तीन मील में बसा हुआ है, जिसके चारों तरफ 24 फुट चौड़ी, 10 फुट गहरी खाई एवं 27 फुट ऊँची दीवार है। इस शहर के छह दरवाज़े हैं, जिनमें से दो पूरब, दो पश्चिम, एक उत्तर तथा एक दक्षिण में है। मुख्य सड़कें 40 फुट से अधिक चौड़ी हैं। कंधार चार स्पष्ट भागों में विभक्त है, जिनमें अलग-अलग जाति (कबीले) के लोग रहते हैं। इनमें चार- '[[दुर्रानी]]', 'घिलज़ाई', 'पार्सिवन' और 'काकार' प्रसिद्ध हैं।<ref>{{cite web |url= http://bharatkhoj.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B0|title= कंधार|accessmonthday=25 जून|accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतखोज|language= हिन्दी}}</ref>
Line 17: Line 17:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{विदेशी स्थान}}
{{विदेशी स्थान}}
[[Category:विदेशी स्थान]][[Category:विदेशी नगर]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:विदेशी स्थान]][[Category:विदेशी नगर]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:इतिहास कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थानावली]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 12:04, 20 July 2018

[[चित्र:Kandahar.jpg|thumb|250px|कंधार, अफ़ग़ानिस्तान]] कंधार प्राचीन नगर 'गंधार' का ही रूपातंरण है। [1] यह अफ़ग़ानिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा नगर है। सामरिक दृष्टि से कंधार काफ़ी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भारत से अफ़ग़ानिस्तान जाने वाली रेलवे लाइन यहीं पर समाप्त होती है। यह नगर महत्त्वपूर्ण मंडी भी है। पूर्व से पश्चिम को स्थल मार्ग से होने वाला अधिकांश व्यापार यहीं से होता है। कंधार में सोतों के पानी से सिंचाई की अनोखी व्यवस्था है। जगह-जगह कुएँ खोदकर उनको सुरंग से मिला दिया गया है।

स्थिति

कंधार काबुल से लगभग 280 मील दक्षिण-पश्चिम और 3,462 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह नगर टरनाक एवं अर्ग़्दाब नदियों के उपजाऊ मैदान के मध्य में स्थित है, जहाँ नहरों द्वारा सिंचाई होती है; परंतु इसके उत्तर का भाग उजाड़ है। समीप के नए ढंग से सिंचित मैदानों में फल, गेहूँ, जौ, दालें, मजीठ, हींग, तंबाकू आदि उगाई जाती हैं। कंधार से नए चमन तक रेलमार्ग है और वहाँ तक पाकिस्तान से रेल जाती है। प्राचीन कंधार नगर तीन मील में बसा हुआ है, जिसके चारों तरफ 24 फुट चौड़ी, 10 फुट गहरी खाई एवं 27 फुट ऊँची दीवार है। इस शहर के छह दरवाज़े हैं, जिनमें से दो पूरब, दो पश्चिम, एक उत्तर तथा एक दक्षिण में है। मुख्य सड़कें 40 फुट से अधिक चौड़ी हैं। कंधार चार स्पष्ट भागों में विभक्त है, जिनमें अलग-अलग जाति (कबीले) के लोग रहते हैं। इनमें चार- 'दुर्रानी', 'घिलज़ाई', 'पार्सिवन' और 'काकार' प्रसिद्ध हैं।[2]

इतिहास

कंधार का इतिहास उथल-पुथल से भरा हुआ है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. में यह फ़ारस के साम्राज्य का भाग था। लगभग 326 ई. पू. में मकदूनिया के राजा सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण करते समय इसे जीता और उसके मरने पर यह उसके सेनापति सेल्यूकस के अधिकार में आया। कुछ वर्ष के बाद सेल्यूकस ने इसे चन्द्रगुप्त मौर्य को सौंप दिया। यह अशोक के साम्राज्य का एक भाग था। सम्राट अशोक का एक शिलालेख हाल ही में इस नगर के निकट से मिला है। मौर्य वंश के पतन पर यह बैक्ट्रिया, पार्थिया, कुषाण तथा शक राजाओं के अंतर्गत रहा। दशवी शताब्दी में यह अफ़ग़ानों के क़ब्ज़े में आ गया और मुस्लिम राज्य बन गया। ग्यारहवीं शताब्दी में सुल्तान महमूद, तेरहवीं शताब्दी में चंगेज़ ख़ाँ तथा चौदहवीं शताब्दी में तैमूर ने इस पर अपना अधिकार जमाया।

मुग़लों का अधिकार

1507 ई. में कंधार को मुग़ल वंश के संस्थापक बाबर ने जीत लिया और 1625 ई. तक यह दिल्ली के मुग़ल बादशाहों के क़ब्ज़े में रहा। 1625 ई. में ही फ़ारस के शाह अब्बास ने इस पर दख़ल कर लिया। शाहजहाँ और औरंगज़ेब द्वारा इस पर दुबारा अधिकार करने के कई प्रयास किये गए, किंतु सारे प्रयास विफल हुए। कंधार थोड़े समय (1708-37 ई.) को छोड़कर नादिरशाह की मृत्यु के समय तक फ़ारस के क़ब्ज़े में रहा। 1747 ई. में अहमदशाह अब्दाली ने अफ़ग़ानिस्तान के साथ इस पर भी अधिकार कर लिया था, किन्तु उसके पौत्र जमानशाह की मृत्यु के बाद कुछ समय के लिए कंधार काबुल से अलग हो गया।

ब्रिटिश नियंत्रण

1839 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार ने अफ़ग़ानिस्तान के अमीर शाहशुजा की ओर से युद्ध करते हुए इस पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और 1842 ई. तक अपने क़ब्ज़े में रखा। ब्रिटिश सेना ने 1879 ई. में इस पर फिर से दख़ल कर लिया, किन्तु 1881 ई. में ख़ाली कर देना पड़ा। तब से कंधार अफ़ग़ानिस्तान का ही एक भाग है।

वर्षा की स्थिति

कंधार में वर्षा केवल जाड़े में बहुत कम मात्रा में होती है। गर्मी अधिक पड़ती है। यह स्थान फलों के लिए प्रसिद्ध है। अफ़ग़ानिस्तान का यह एक प्रधान व्यापारिक केंद्र है। यहाँ से भारत को फल निर्यात होते हैं। यहाँ के धनी व्यापारी हिन्दू हैं। नगर में लगभग 200 मस्जिदें हैं। दर्शनीय स्थलों में 'अहमदशाह का मक़बरा' और एक मस्जिद, जिसमें मुहम्मद साहब का कुर्ता रखा है, प्रमुख हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 122 |
  2. कंधार (हिन्दी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 25 जून, 2014।

संबंधित लेख