अचला सप्तमी: Difference between revisions
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Latest revision as of 08:24, 12 February 2016
अचला सप्तमी हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है। यह व्रत माघ मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को करना चाहिए। यह व्रत 'सौर सप्तमी' नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भास्कर का ध्यान करना चाहिए।
- इस दिन दान-पुण्य आदि का बड़ा ही फल बताया गया है।
- षष्ठी को एक बार भोजन और सप्तमी को उपवास कर सूर्य देव की पूजा का विधान है।
- सप्तमी की रात्रि के अन्त में एक हाथ में दीप लेकर स्थिर जल को हिला दिया जाता है।[1]
- इस दिन प्रयाग त्रिवेणी में स्नान का भी माहात्म्य है। इसे सर्वप्रथम वशिष्ठ ने चलाया था।
- सूर्य ने मन्वन्तर के आदि में इसी दिन अपना प्रकाश दिया था।
- सूर्य पूजा प्रधान होने के कारण इसे अर्क, अचला, रथ, सूर्य या भानु सप्तमी भी कहते हैं।
- अचला सप्तमी के दिन नमक और तेल का सेवन वर्जित है।
- कृष्ण ने युधिष्ठर को उस वेश्या इन्दुमती की कथा सुनाई थी, जिसने पश्चाताप में आकर अचला सप्तमी का सम्पादन किया था।[2]
- व्रतार्क, व्रतराज[3] निर्णयामृत (51) में इसे जयन्ती भी कहा गया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
अन्य संबंधित लिंक
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