ए. के. गोपालन: Difference between revisions

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==गाँधी जी का प्रभाव==
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==कांग्रेस समाजवादी पार्टी==
गोपालन ने 1932-1933 के [[असहयोग आन्दोलन]] में भाग लिया और 1934 में कांग्रेस समाजवादी पार्टी बनने पर वे उसके सदस्य बन गए। बाद में इस पार्टी के केरल के सब सदस्यों ने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। गोपालन ने किसानों और मजदूरों को संगठित करने में अपनी शक्ति लगाई। इसमें इन्होंने केरल के कन्नौर से [[मद्रास]] तक 750 मील लम्बे मोर्चे का नेतृत्व किया था। कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित होने के बाद गोपालन भूमिगत हो गए थे। मार्च, 1941 में गिरफ्तार करके जब इन्हें जेल में बन्द कर दिया गया तो, सितम्बर में वे जेल तोड़कर बाहर निकल आए। फिर 5 वर्ष तक भूमिगत रहकर काम करते रहे। स्वतंत्रता के बाद भी उन्हें 1947 में नज़रबन्दी क़ानून में गिरफ्तार किया गया। किन्तु हाईकोर्ट के निर्णय पर वे रिहा हो गए।
==लोकसभा==
इसके बाद उनकी [[लोकसभा]] की सदस्यता का लम्बा दौर चला। 1952, 1957, 1962 और 1971 के चुनावों में वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1964 में जब कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन हुआ तो, गोपालन ने कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में रहना पसन्द किया। उन्होंने [[रूस]] सहित अनेक देशों की यात्रा की। अपनी आत्मकथा सहित उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं।
==संक्षिप्त परिचय==
*ए.के. गोपालन [[केरल]] के महान नेता थे।  
*ए.के. गोपालन [[केरल]] के महान नेता थे।  
*उन्होंने अपने जीवन का आरम्भ एक स्कूली शिक्षक के रूप में किया।  
*उन्होंने अपने जीवन का आरम्भ एक स्कूली शिक्षक के रूप में किया।  
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*उन्होंने ट्रावनकोर के दीवान सी.पी. रामास्वामी अय्यर की निरंकुशता के विरुद्ध जन आन्दोलनों का संचालन किया।  
*उन्होंने ट्रावनकोर के दीवान सी.पी. रामास्वामी अय्यर की निरंकुशता के विरुद्ध जन आन्दोलनों का संचालन किया।  
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Revision as of 08:01, 6 October 2011

केरल के प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता ए. के. गोपालन का जन्म 1902 ई. में हुआ था।

गाँधी जी का प्रभाव

शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने सात वर्ष तक अध्यापक का काम किया। देशभक्ति की भावना उनके अन्दर आरम्भ से ही थी। पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए वे अलग से कक्षाएँ लगाते और खादी का प्रचार करते थे। 1930 में जब गांधीजी ने ‘नमक सत्याग्रह’ आरम्भ किया, तो गोपालन ने अध्यापक का पद त्याग दिया और सत्याग्रह में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिए गए। 1932 में दक्षिण के प्रसिद्ध मन्दिर गुरुवयूर में सबके प्रवेश के लिए जो सत्याग्रह चला, उसमें भी गोपालन गिरफ्तार हुए। इसी समय उनके निजी जीवन में एक घटना घटी। पिता ने पहले ही उनका विवाह कर दिया था, जिससे वे स्थिर रहकर कोई काम कर सकें। परन्तु उनकी राजनीति और समाज सुधार की गतिविधियाँ देखकर पत्नी के चाचा 1932 में अपनी भतीजी को बलपूर्वक सदा के लिए गोपालन के घर से ले गए। गोपालन ने 1952 ने दूसरा विवाह कर लिया। उनकी पत्नी सुशीला गोपालन भी 1967 से 1971 तक लोकसभा की सदस्या रहीं।

कांग्रेस समाजवादी पार्टी

गोपालन ने 1932-1933 के असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और 1934 में कांग्रेस समाजवादी पार्टी बनने पर वे उसके सदस्य बन गए। बाद में इस पार्टी के केरल के सब सदस्यों ने कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली। गोपालन ने किसानों और मजदूरों को संगठित करने में अपनी शक्ति लगाई। इसमें इन्होंने केरल के कन्नौर से मद्रास तक 750 मील लम्बे मोर्चे का नेतृत्व किया था। कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित होने के बाद गोपालन भूमिगत हो गए थे। मार्च, 1941 में गिरफ्तार करके जब इन्हें जेल में बन्द कर दिया गया तो, सितम्बर में वे जेल तोड़कर बाहर निकल आए। फिर 5 वर्ष तक भूमिगत रहकर काम करते रहे। स्वतंत्रता के बाद भी उन्हें 1947 में नज़रबन्दी क़ानून में गिरफ्तार किया गया। किन्तु हाईकोर्ट के निर्णय पर वे रिहा हो गए।

लोकसभा

इसके बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता का लम्बा दौर चला। 1952, 1957, 1962 और 1971 के चुनावों में वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। 1964 में जब कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन हुआ तो, गोपालन ने कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में रहना पसन्द किया। उन्होंने रूस सहित अनेक देशों की यात्रा की। अपनी आत्मकथा सहित उन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं।

संक्षिप्त परिचय

  • ए.के. गोपालन केरल के महान नेता थे।
  • उन्होंने अपने जीवन का आरम्भ एक स्कूली शिक्षक के रूप में किया।
  • वे समाज सुधारक भी थे तथा निम्न वर्गों की स्थिति में सुधार करना चाहते थे।
  • 1932 ई. में गुरुवायूर सत्याग्रह में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही तथा मन्दिर प्रवेश के मुद्दे पर उनकी पिटाई भी हुई।
  • इसके पश्चात्त गोपालन ने पूरे केरल में जनजागरण यात्राएँ कीं।
  • बाद में उनका झुकाव कम्युनिज्म की तरफ होने लगा तथा वे केरल के सबसे लोकप्रिय कम्यूनिस्ट नेता बने।
  • केरल में काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
  • उन्होंने ट्रावनकोर के दीवान सी.पी. रामास्वामी अय्यर की निरंकुशता के विरुद्ध जन आन्दोलनों का संचालन किया।
  • स्वतंत्रता के बाद भी वे केरल की राजनीति में सक्रिय रहे।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नागोरी, डॉ. एस.एल. “खण्ड 3”, स्वतंत्रता सेनानी कोश (गाँधीयुगीन), 2011 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: गीतांजलि प्रकाशन, जयपुर, पृष्ठ सं 83।

शर्मा 'पर्वतीय', लीलाधर भारतीय चरित कोश, 2011 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, दिल्ली, पृष्ठ सं 112।

संबंधित लेख

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