राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी: Difference between revisions

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राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। [[6 अप्रैल]], [[1927]] केा फाँसी के फैसले के बाद सभी को अलग कर दिया गया, परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। जेलर ने पूछा कि- "प्रार्थना तो ठीक है, परन्तु अन्तिम समय इतनी भारी कसरत क्यो?" राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने उत्तर दिया- '''व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु के भय से मैं नियम क्यों छोड़ दूँ? दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिलें, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध में काम आ सके।'''
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। [[6 अप्रैल]], [[1927]] केा फाँसी के फैसले के बाद सभी को अलग कर दिया गया, परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। जेलर ने पूछा कि- "प्रार्थना तो ठीक है, परन्तु अन्तिम समय इतनी भारी कसरत क्यो?" राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने उत्तर दिया- '''व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु के भय से मैं नियम क्यों छोड़ दूँ? दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिलें, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध में काम आ सके।'''
==शहादत==
==शहादत==
अंग्रेज़ी सरकार ने डर से राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेजकर [[17 दिसम्बर]], [[1927]] को ही फांसी दे दी। शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमने के पहले 'वन्देमातरम' की हुंकार भरकर जयघोष करते हुए कहा- '''मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ।''' क्रांतिकारी की इस जुनून भरी हुंकार को सुनकर [[अंग्रेज़]] ठिठक गये थे। उन्हें लग गया था कि इस धरती के सपूत उन्हें अब चैन से नहीं जीने देंगे।
अंग्रेज़ी सरकार ने डर से राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेजकर अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पूर्व ही [[17 दिसम्बर]], [[1927]] को फांसी दे दी। शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमने के पहले '[[वन्देमातरम]]' की जोरदार हुंकार भरकर जयघोष करते हुए कहा- '''मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ।''' क्रांतिकारी की इस जुनून भरी हुंकार को सुनकर [[अंग्रेज़]] ठिठक गये थे। उन्हें लग गया था कि इस धरती के सपूत उन्हें अब चैन से नहीं जीने देंगे।


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Revision as of 14:39, 7 November 2013

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
जन्म 23 जून, 1901
जन्म भूमि भड़गा ग्राम, पाबना ज़िला, बंगाल
मृत्यु 17 दिसंबर, 1927
मृत्यु स्थान गोंडा जेल, उत्तर प्रदेश
मृत्यु कारण फ़ाँसी
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
विद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
शिक्षा काकोरी काण्ड के दौरान लाहिड़ी इतिहास विषय में एम. ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे।
संबंधित लेख रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, चंद्रशेखर आज़ाद
विशेष 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने ही रोका था।
अमर वाक्य "मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ।"
अन्य जानकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। 6 अप्रैल, 1927 को फाँसी के फैसले के बाद सभी क्रांतिकारियों को अलग कर दिया गया था, परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया।

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी (अंग्रेज़ी: Rajendranath Lahiri; जन्म- 23 जून, 1901, पाबना ज़िला, बंगाल; शहादत- 17 दिसंबर, 1927, गोंडा जेल, उत्तर प्रदेश) भारत के अमर शहीद प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेज़ी खजाना लूटने की योजना बनायी थी। योजनानुसार दल के प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेज़ सरकार ने मुकदमा चलाकर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला ख़ाँ आदि को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई।

जन्म तथा शिक्षा

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म बंगाल के पाबना ज़िले के भड़गा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम क्षिति मोहन शर्मा और माता बसंत कुमारी था। बाद के समय में इनका परिवार 1909 ई. में बंगाल से वाराणसी चला आया था, अत: राजेन्द्रनाथ की शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से ही हुई। राजेन्द्रनाथ के जन्म के समय पिता क्षिति मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे। काकोरी काण्ड के दौरान लाहिड़ी 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' में इतिहास विषय में एम. ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे।

क्रांतिकारियों से सम्पर्क

जिस समय राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी एम. ए. में पढ़ रहे थे, तभी उनका संपर्क क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुआ। सान्याल बंगाल के क्रांतिकारी 'युगांतर' दल से संबद्ध थे। वहाँ एक दूसरे दल 'अनुशीलन' में वे काम करने लगे। राजेन्द्रनाथ इस संघ की प्रतीय समिति के सदस्य थे। अन्य सदस्यों में रामप्रसाद बिस्मिल भी सम्मिलित थे। 'काकोरी ट्रेन कांड' में जिन क्रांतिकारियों ने प्रत्यक्ष भाग लिया, उनमें राजेन्द्रनाथ भी थे। बाद में वे बम बनाने की शिक्षा प्राप्त करने और बंगाल के क्रांतिकारी दलों से संपर्क बढाने के उद्देश्य से कोलकाता गए। वहाँ दक्षिणेश्वर बम फैक्ट्री कांड में पकड़े गए और इस मामले में दस वर्ष की सज़ा हुई।[1]

काकोरी काण्ड

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी बलिदानी जत्थों की गुप्त बैठकों में बुलाये जाने लगे थे। क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में एक गुप्त बैठक हुई। बैठक के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेज़ी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी। इस योजनानुसार दल के ही प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया गया।[2]

सज़ा

बाद में अंग्रेज़ी हुकूमत ने उनकी पार्टी 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन' के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया, जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु दण्ड (फाँसी की सज़ा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम चार वर्ष की सज़ा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था। 'काकोरी काण्ड में लखनऊ की विशेष अदालत ने 6 अप्रैल, 1927 को जलियांवाला बाग़ दिवस पर रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह तथा अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ को एक साथ फांसी देने का निर्णय लेते हुए सज़ा सुनाई।

सूबेदार से झड़प

काकोरी काण्ड की विशेष अदालत आज के मुख्य डाकघर में लगायी गयी थी। काकोरी काण्ड में संलिप्तता साबित होने पर लाहिड़ी को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से लखनऊ लाया गया। बेड़ियों में ही सारे अभियोगी आते-जाते थे। आते-जाते सभी मिलकर गीत गाते। एक दिन अदालत से निकलते समय सभी क्रांतिकारी 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है', गाने लगे। सूबेदार बरबण्डसिंह ने इन्हे चुप रहने को कहा, लेकिन क्रांतिकारी सामूहिक गीत गाते रहे।[3] बरबण्डसिंह ने सबसे आगे चल रहे राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का गला पकड़ लिया, लाहिड़ी के एक भरपूर तमाचे और साथी क्रांतिकारियों की तन चुकी भुजाओं ने बरबण्डसिंह के होश उड़ा दिए। जज को बाहर आना पड़ा। इसका अभियोग भी पुलिस ने चलाया, परन्तु वापस लेना पड़ा।

लाहिड़ी-जेलर संवाद

राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी अध्ययन और व्यायाम में अपना सारा समय व्यतीत करते थे। 6 अप्रैल, 1927 केा फाँसी के फैसले के बाद सभी को अलग कर दिया गया, परन्तु लाहिड़ी ने अपनी दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं किया। जेलर ने पूछा कि- "प्रार्थना तो ठीक है, परन्तु अन्तिम समय इतनी भारी कसरत क्यो?" राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने उत्तर दिया- व्यायाम मेरा नित्य का नियम है। मृत्यु के भय से मैं नियम क्यों छोड़ दूँ? दूसरा और महत्वपूर्ण कारण है कि हम पुर्नजन्म में विश्वास रखते हैं। व्यायाम इसलिए किया कि दूसरे जन्म में भी बलिष्ठ शरीर मिलें, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ युद्ध में काम आ सके।

शहादत

अंग्रेज़ी सरकार ने डर से राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेजकर अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पूर्व ही 17 दिसम्बर, 1927 को फांसी दे दी। शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमने के पहले 'वन्देमातरम' की जोरदार हुंकार भरकर जयघोष करते हुए कहा- मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ। क्रांतिकारी की इस जुनून भरी हुंकार को सुनकर अंग्रेज़ ठिठक गये थे। उन्हें लग गया था कि इस धरती के सपूत उन्हें अब चैन से नहीं जीने देंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 711 |
  2. प्रीतीश देशप्रेमी विद्रोही (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 07 नवम्बर, 2013।
  3. अमर शहीद क्रांतिकारी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 07 नवम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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