मोक्षदा एकादशी: Difference between revisions

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==नामकरण==
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Latest revision as of 11:12, 29 November 2017

मोक्षदा एकादशी
अन्य नाम गीता जयन्ती
अनुयायी हिंदू
तिथि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी
धार्मिक मान्यता इसी दिन भगवान कृष्ण ने मोहित हुए अर्जुन को 'गीता' का उपदेश दिया था।
संबंधित लेख गीता, कृष्ण, अर्जुन, महाभारत, मार्गशीर्ष कृत्य
नामकरण यह एकादशी मोह का क्षय करने वाली है। इस कारण इसका नाम 'मोक्षदा' रखा गया है।
अन्य जानकारी भगवान दामोदर (विष्णु) की धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराकर दानादि देने से विशेष फल प्राप्त होता है।

मोक्षदा एकादशी पुराणों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि 'गीता जयंती' के नाम से भी प्रसिद्ध है।

नामकरण

यह एकादशी मोह का क्षय करने वाली है। इस कारण इसका नाम 'मोक्षदा' रखा गया है। इसीलिए भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष में आने वाली इस मोक्षदा एकादशी के कारण ही कहते हैं- "मैं महीनों में मार्गशीर्ष का महीना हूँ।" इसके पीछे मूल भाव यह है कि "मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली 'गीता' का उपदेश हुआ था।

व्रत

इस दिन गीता, श्रीकृष्ण, व्यास जी आदि का विधिपूर्वक पूजन करके गीता जयन्ती का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी के बारे में कहा गया है कि शुद्धा, विद्धा और नियम आदि का निर्णय यथापूर्व करने के अनन्तर मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी को मध्याह्न में जौ और मूँग की रोटी, दाल का एक बार भोजन करके द्वादशी को प्रातः स्नानादि करके उपवास रखना चाहिए। भगवान का पूजन करें और रात्रि में जागरण करके द्वादशी को एक बार भोजन करके पारण करें।[1]

'गीता' का पठन-पाठन

'भगवद्गीता' के पठन-पाठन श्रवण एवं मनन-चिंतन से जीवन में श्रेष्ठता के भाव आते हैं। 'गीता' केवल लाल कपड़े में बाँधकर घर में रखने के लिए नहीं बल्कि उसे पढ़कर संदेशों को आत्मसात करने के लिए है। 'गीता' का चिंतन अज्ञानता के आचरण को हटाकर आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है। 'गीता' भगवान की श्वास और भक्तों का विश्वास है। इस दिन गीता, श्रीकृष्ण, व्यास जी आदि का विधिपूर्वक पूजन करके गीता जयन्ती का उत्सव मनाया जाता है। भगवान दामोदर (विष्णु) की धूप, दीप, नैवेद्य से पूजा करनी चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराकर दानादि देने से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन व्रत करने से दुर्लभ मोक्ष पद की प्राप्ति होती है।

कथा

एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था। एक दिन राजा ने स्वप्न में एक आश्चर्य की बात देखी। उसका पिता नरक में पड़ा है और वह अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहा है। राजा अपने पिता की यह दशा देख व्याकुल हो उठा। उसी समय उसकी निद्रा भंग हो गई। प्रातः राजा ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न का भेद पूछा। तब ब्राह्मणों ने कहा- "हे राजन! इसके लिए पर्वत नामक मुनि के आश्रम में जाकर इसका उद्धार पूछो।" तब राजा ने वैसा ही किया। जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी, वे चिंतित हो गए। उन्होंने अपनी योग दृष्टि से राजा के पिता को देखा और बोले- "राजन! पूर्वजन्म के पापों से आपके पिताजी को नर्कवास प्राप्त हुआ है। उन्होंने सौतेली स्त्री के वश में होकर दूसरी स्त्री को रतिदान का निषेध कर दिया था। इसी दोष से उन्हें नरक की प्राप्ति हुई है। अब तुम मोक्षदा एकादशी को व्रत कर उसका फल अपने पिता को अर्पण करो तो उनकी मुक्ति हो सकती है।" राजा ने मुनि के कथानुसार ही मोक्षदा एकादशी का यथा नियम व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा, वस्त्रादि अर्पण कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इस उत्तम कर्म से उसने प्रत्यक्ष देखा कि आकाश में मंगल ध्वनि हो रही है और उसका पिता विमान में बैठ स्वर्ग को जा रहा है। उसके पिता ने कहा- "हे पुत्र! मैं थोड़े समय यह स्वर्ग का सुख भोग मोक्ष को प्राप्त कर जाऊँगा। तेरे व्रत के प्रभाव से मेरा नर्कवास छूट गया, तेरा कल्याण हो।"

ज्ञान का भंडार 'गीता'

'गीता' ज्ञान का अद्भुत भंडार है। हर व्यक्ति काम में तुरंत नतीजा चाहता है, लेकिन भगवान ने कहा है कि "धैर्य के बिना अज्ञान, दु:ख, मोह, क्रोध, काम और लोभ से निवृत्ति नहीं मिलेगी।" मंगलमय जीवन का ग्रंथ है- 'गीता'। गीता केवल ग्रंथ नहीं, कलियुग के पापों का क्षय करने का अद्भुत और अनुपम माध्यम है, जिसके जीवन में गीता का ज्ञान नहीं, वह पशु से भी बदतर होता है। भक्ति बाल्यकाल से शुरू होना चाहिए। अंतिम समय में तो भगवान का नाम लेना भी कठिन हो जाता है।

दुर्लभ मनुष्य जीवन केवल भोग विलास के लिए नहीं मिला है, इसका कुछ अंश भक्ति और सेवा में भी लगाना चाहिए। गीता भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। अध्यात्म और धर्म की शुरुआत सत्य, दया और प्रेम के साथ ही संभव है। ये तीनों गुण होने पर ही धर्म फलेगा और फूलेगा। 'गीता' मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता मरना सिखाती है, जीवन को तो धन्य बनाती ही है। गीता केवल धर्म ग्रंथ ही नहीं, यह एक अनुपम जीवन ग्रंथ है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह हमें पलायन से पुरुषार्थ की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 मोक्षदा एकादशी एवं गीता जयंती का महत्त्व (हिन्दी) वेबदुनिया। अभिगमन तिथि: 02 दिसम्बर, 2014।

संबंधित लेख

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