विद्या व्रत: Difference between revisions
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*शिष्य, गुरु से विद्यादान करने के लिए प्रार्थना करता हैं और गुरु प्रतिमाओं के समक्ष वैसा करता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 386-389, [[गरुड़पुराण]] से उद्धरण)।</ref> | *शिष्य, गुरु से विद्यादान करने के लिए प्रार्थना करता हैं और गुरु प्रतिमाओं के समक्ष वैसा करता है।<ref>हेमाद्रि (व्रतखण्ड 1, 386-389, [[गरुड़पुराण]] से उद्धरण)।</ref> | ||
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Revision as of 10:42, 21 March 2011
- भारत में धार्मिक व्रतों का सर्वव्यापी प्रचार रहा है। यह हिन्दू धर्म ग्रंथों में उल्लिखित हिन्दू धर्म का एक व्रत संस्कार है।
- यह व्रत किसी मास की द्वितीया पर करना चाहिए।
- श्वेत चावल से वर्गाकार आकृति खींच कर, उसके मध्य में अष्ट दल कमल बनाकर उसके बीजकोष पर कमलयुक्त लक्ष्मी की आकृति खींची जानी चाहिए, आठ शक्तियाँ[1] की आकृति बनाकर कमल दलों पर रखनी चाहिए, और 'ओं सरस्वत्यै नम:' आदि के साथ में शक्तियों को क्रमश: प्रणाम; चारों दिग्पालों एवं दिशा कोणों के रक्षकों की आकृतियाँ बनायी जाती हैं।
- मण्डल में गुरु रूप में चारों[2] वसिष्ठ आदि को स्थापित किया जाता है।
- विभिन्न पुष्पों से इनकी पूजा की जाती है।
- श्रीसूक्त[3] एवं विष्णु के स्तोत्र पढ़े जाते हैं।
- पुरोहितों को एक गाय, बैल एवं जलपूर्ण पात्र दिये जाते हैं।
- भुने हुए चावलों से युक्त पाँच पात्र (लाई से भरे हुए पाँच कंण्डे) तिल, हल्दी चूर्ण (स्त्री सम्पादिका द्वारा), सोना किसी गृहस्थ को दिया जाता है तथा भूखे लोगों को भोजन दिया जाता है।
- शिष्य, गुरु से विद्यादान करने के लिए प्रार्थना करता हैं और गुरु प्रतिमाओं के समक्ष वैसा करता है।[4]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
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