सुरेन्द्र नाथ बनर्जी: Difference between revisions

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==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
सुरेन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 10 नवम्बर 1848 को [[बंगाल]] के [[कोलकाता]] शहर में, एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी के पिता का नाम डा. दुर्गा चरण बैनर्जी था और वह अपने पिता की गहरी उदार और प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित थे। सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी ने पैरेन्टल ऐकेडेमिक इंस्टीट्यूशन और हिन्दू कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी। [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] से स्नातक होने के बाद, उन्होंने रोमेश चन्द्र दत्त और बिहारी लाल गुप्ता के साथ भारतीय सिविल सर्विस परीक्षाओं को पूरा करने के लिए [[1868]] में इंग्लैंड की यात्रा की।  
सुरेन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 10 नवम्बर 1848 को [[बंगाल]] के [[कोलकाता]] शहर में, एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी के पिता का नाम डा. दुर्गा चरण बैनर्जी था और वह अपने पिता की गहरी उदार और प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित थे। सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी ने पैरेन्टल ऐकेडेमिक इंस्टीट्यूशन और हिन्दू कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी। [[कलकत्ता विश्वविद्यालय]] से स्नातक होने के बाद, उन्होंने रोमेश चन्द्र दत्त और बिहारी लाल गुप्ता के साथ भारतीय सिविल सर्विस परीक्षाओं को पूरा करने के लिए [[1868]] में इंग्लैंड की यात्रा की।  
==कार्यकाल==
1868 ई. में वे स्नातक बने, वे उदारवादी विचारधारा के महत्वपूर्ण नेता थे। 1868 में उन्होंने इण्डियन सिविल सर्विसेज परीक्षा उतीर्ण की। इसके पूर्व 1867 ई. में सत्येन्द्र नाथ टैगोर आई.सी.एस. बनने वाले पहले भारतीय बन चुके थे। 1877 में सिलहट के सहायक दण्डाधिकारी के पद पर उनकी नियुक्त हुई परन्तु शीघ्र ही सरकार ने उन्हे इस पद से बर्खास्त कर दिया। आई.सी.एस. परीक्षा की आयु को लिटन द्वारा 21 से घटाकर 19 वर्ष करने पर सुरेन्द्र नाथ ने देश में इसके विरुद्ध व्यापक आंदोलन चलाया। 1876 ई. में भारतीय जागरुकता फैलाने एवं उन्हें सार्वजनिक राजनैतिक एवं सामाजिक समस्याओं पर संगठित करने के लिए सुरेन्द्र नाथ ने ‘इण्डियन ऐसोसिएशन’ की स्थापना की। उन्होनं इस संस्था को 1883 और 1885 ई. में अखिल भारतीय राजनीतिक संस्था बनाने का प्रयत्न किया लेकिन 1885 ई. में [[कांग्रेस]] की स्थापना के पश्चात् इंडियन एसोसिएशन का अरितत्व दुर्बल और 1886 ई. में उसका कांग्रेस में विलय हो गया। उन्होने ‘बंगाली’ नामक दैनिक समाचार-पत्र का सम्पादन किया। कांग्रेस की स्थापना के समय प्रस्तुत घोषणा पत्र उनके निर्देशन में ही तैयार किया था। 1895 एवं 1902 ई. में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की।


उन्होने कर्जन द्वारा पास किये गये कानून कलकत्ता अधिवेशन ऐक्ट, विश्वविद्यालय ऐक्ट एवं बंगाल विभाजन के विरुद्ध बंगाल एवं पूरे भारत में तीव्र आंदोलन चलाए। किन्तु बंग-विभाजन विरोधी आंदोलन में वे तोड़-फोड़ तथा असंवैधानिक तरीकों के विरुद्ध थे। बंगाल विभाजन के बारे में उन्होंने कहा ‘बंगाल का विभाजन हमारे ऊपर बम की तरह गिरा है। हमने समझा कि हमारा घोर अपमान किया गया है।’ स्वदेशी के बारे में उनका विचार था कि ‘स्वदेशी हमें दुर्भिक्ष, अन्धकारा और बीमारी से बचा सकता है। स्वदेशी का व्रत लीजिए। अपने विचार, कर्म और आचरण में स्वदेशी का उपभोग करें।’
कांग्रेस के सूरत विभाजन के समय बनर्जी नरम दल के सदस्य थे। 1909 ई. के मार्ले-मिण्टों सुधार के लिए उन्होने अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति कृतज्ञता प्रकट की, किन्तु वे बंग-भंग की समाप्ति चाहते थे। 1913 ई. में उन्हें बंगाल लेजिस्लेटिव काउंसिल ओर इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल का सदस्य चुना गया। 1919-20 ई. कें गांधी प्रणीत आंदोलन का उन्होने समर्थन नहीं किया। 1921 ई. में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी। 1921-23 ई. में बंगाल सरकार में मंत्री रहे। 
==निधन==
==निधन==
सुरेन्द्र नाथ बनर्जी 6 अगस्त 1925 में उनका निधन हो गया।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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thumb|150px|सुरेन्द्र नाथ बनर्जी सुरेन्द्र नाथ बनर्जी (10 नवम्बर 1848 – 6 अगस्त 1925) प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी, जो कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष चुने गए। उन्हें 1905 का बंगाल का निर्माता भी जाता है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय समिति की स्थापना की, जो प्रारंभिक दौर के भारतीय राजनीतिक संगठनों में से एक था और बाद में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता बन गए।

जीवन परिचय

सुरेन्द्र नाथ बनर्जी का जन्म 10 नवम्बर 1848 को बंगाल के कोलकाता शहर में, एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी के पिता का नाम डा. दुर्गा चरण बैनर्जी था और वह अपने पिता की गहरी उदार और प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित थे। सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी ने पैरेन्टल ऐकेडेमिक इंस्टीट्यूशन और हिन्दू कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद, उन्होंने रोमेश चन्द्र दत्त और बिहारी लाल गुप्ता के साथ भारतीय सिविल सर्विस परीक्षाओं को पूरा करने के लिए 1868 में इंग्लैंड की यात्रा की।

कार्यकाल

1868 ई. में वे स्नातक बने, वे उदारवादी विचारधारा के महत्वपूर्ण नेता थे। 1868 में उन्होंने इण्डियन सिविल सर्विसेज परीक्षा उतीर्ण की। इसके पूर्व 1867 ई. में सत्येन्द्र नाथ टैगोर आई.सी.एस. बनने वाले पहले भारतीय बन चुके थे। 1877 में सिलहट के सहायक दण्डाधिकारी के पद पर उनकी नियुक्त हुई परन्तु शीघ्र ही सरकार ने उन्हे इस पद से बर्खास्त कर दिया। आई.सी.एस. परीक्षा की आयु को लिटन द्वारा 21 से घटाकर 19 वर्ष करने पर सुरेन्द्र नाथ ने देश में इसके विरुद्ध व्यापक आंदोलन चलाया। 1876 ई. में भारतीय जागरुकता फैलाने एवं उन्हें सार्वजनिक राजनैतिक एवं सामाजिक समस्याओं पर संगठित करने के लिए सुरेन्द्र नाथ ने ‘इण्डियन ऐसोसिएशन’ की स्थापना की। उन्होनं इस संस्था को 1883 और 1885 ई. में अखिल भारतीय राजनीतिक संस्था बनाने का प्रयत्न किया लेकिन 1885 ई. में कांग्रेस की स्थापना के पश्चात् इंडियन एसोसिएशन का अरितत्व दुर्बल और 1886 ई. में उसका कांग्रेस में विलय हो गया। उन्होने ‘बंगाली’ नामक दैनिक समाचार-पत्र का सम्पादन किया। कांग्रेस की स्थापना के समय प्रस्तुत घोषणा पत्र उनके निर्देशन में ही तैयार किया था। 1895 एवं 1902 ई. में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की।

उन्होने कर्जन द्वारा पास किये गये कानून कलकत्ता अधिवेशन ऐक्ट, विश्वविद्यालय ऐक्ट एवं बंगाल विभाजन के विरुद्ध बंगाल एवं पूरे भारत में तीव्र आंदोलन चलाए। किन्तु बंग-विभाजन विरोधी आंदोलन में वे तोड़-फोड़ तथा असंवैधानिक तरीकों के विरुद्ध थे। बंगाल विभाजन के बारे में उन्होंने कहा ‘बंगाल का विभाजन हमारे ऊपर बम की तरह गिरा है। हमने समझा कि हमारा घोर अपमान किया गया है।’ स्वदेशी के बारे में उनका विचार था कि ‘स्वदेशी हमें दुर्भिक्ष, अन्धकारा और बीमारी से बचा सकता है। स्वदेशी का व्रत लीजिए। अपने विचार, कर्म और आचरण में स्वदेशी का उपभोग करें।’

कांग्रेस के सूरत विभाजन के समय बनर्जी नरम दल के सदस्य थे। 1909 ई. के मार्ले-मिण्टों सुधार के लिए उन्होने अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति कृतज्ञता प्रकट की, किन्तु वे बंग-भंग की समाप्ति चाहते थे। 1913 ई. में उन्हें बंगाल लेजिस्लेटिव काउंसिल ओर इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल का सदस्य चुना गया। 1919-20 ई. कें गांधी प्रणीत आंदोलन का उन्होने समर्थन नहीं किया। 1921 ई. में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी। 1921-23 ई. में बंगाल सरकार में मंत्री रहे।

निधन

सुरेन्द्र नाथ बनर्जी 6 अगस्त 1925 में उनका निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी

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