राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी: Difference between revisions
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राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी (जन्म- 1901 | '''राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Rajendranath Lahiri''; जन्म- [[23 जून]], [[1901]], पाबना ज़िला, [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]]; शहादत- [[17 दिसंबर]], [[1927]], गोंडा जेल, [[उत्तर प्रदेश]]) [[भारत]] के अमर शहीद प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर [[शाहजहाँपुर]] में हुई बैठक के दौरान [[रामप्रसाद बिस्मिल]] ने अंग्रेज़ी खजाना लूटने की योजना बनायी थी। योजनानुसार दल के प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने [[9 अगस्त]], [[1925]] को [[लखनऊ]] के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी बिस्मिल के नेतृत्व में [[अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ]], [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से सरकारी खजाना लूट लिया गया। [[अंग्रेज़]] सरकार ने मुकदमा चलाकर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला ख़ाँ आदि को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई। | ||
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राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म बंगाल के पाबना ज़िले के भड़गा नामक ग्राम में हुआ था। | राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के पाबना ज़िले के भड़गा नामक ग्राम में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम क्षिति मोहन शर्मा और [[माता]] बसंत कुमारी था। बाद के समय में इनका परिवार [[1909]] ई. में बंगाल से [[वाराणसी]] चला आया था, अत: राजेन्द्रनाथ की शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से ही हुई। राजेन्द्रनाथ के जन्म के समय पिता क्षिति मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे। [[काकोरी काण्ड]] के दौरान लाहिड़ी '[[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]]' में [[इतिहास]] विषय में एम. ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे। | ||
====क्रांतिकारियों से सम्पर्क==== | |||
जिस समय राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी एम. ए. में पढ़ रहे थे, तभी उनका संपर्क क्रांतिकारी [[शचीन्द्रनाथ सान्याल]] से हुआ। सान्याल बंगाल के क्रांतिकारी 'युगांतर' दल से संबद्ध थे। वहाँ एक दूसरे दल 'अनुशीलन' में वे काम करने लगे। राजेन्द्रनाथ इस संघ की प्रतीय समिति के सदस्य थे। अन्य सदस्यों में [[रामप्रसाद बिस्मिल]] भी सम्मिलित थे। '[[काकोरी कांड|काकोरी ट्रेन कांड]]' में जिन क्रांतिकारियों ने प्रत्यक्ष भाग लिया, उनमें राजेन्द्रनाथ भी थे। बाद में वे बम बनाने की शिक्षा प्राप्त करने और बंगाल के क्रांतिकारी दलों से संपर्क बढाने के उद्देश्य से [[कोलकाता]] गए। वहाँ दक्षिणेश्वर बम फैक्ट्री कांड में पकड़े गए और इस मामले में दस वर्ष की सज़ा हुई।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=711|url=}}</ref> | |||
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बाद में अंग्रेज़ी हुकूमत ने उनकी पार्टी 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन' के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया, जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु दण्ड (फाँसी की सज़ा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम चार [[वर्ष]] की सज़ा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था। | |||
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राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी की मृत्यु 17 दिसंबर, 1927 को [[उत्तर प्रदेश]] की गोंडा जेल में फांसी देने के कारण हुई। | राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी की मृत्यु 17 दिसंबर, 1927 को [[उत्तर प्रदेश]] की गोंडा जेल में फांसी देने के कारण हुई। | ||
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राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी (अंग्रेज़ी: Rajendranath Lahiri; जन्म- 23 जून, 1901, पाबना ज़िला, बंगाल; शहादत- 17 दिसंबर, 1927, गोंडा जेल, उत्तर प्रदेश) भारत के अमर शहीद प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक थे। आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में हुई बैठक के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेज़ी खजाना लूटने की योजना बनायी थी। योजनानुसार दल के प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से सरकारी खजाना लूट लिया गया। अंग्रेज़ सरकार ने मुकदमा चलाकर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला ख़ाँ आदि को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई।
जन्म तथा शिक्षा
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म बंगाल के पाबना ज़िले के भड़गा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम क्षिति मोहन शर्मा और माता बसंत कुमारी था। बाद के समय में इनका परिवार 1909 ई. में बंगाल से वाराणसी चला आया था, अत: राजेन्द्रनाथ की शिक्षा-दीक्षा वाराणसी से ही हुई। राजेन्द्रनाथ के जन्म के समय पिता क्षिति मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई बंगाल में चल रही अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में कारावास की सलाखों के पीछे कैद थे। काकोरी काण्ड के दौरान लाहिड़ी 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' में इतिहास विषय में एम. ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे।
क्रांतिकारियों से सम्पर्क
जिस समय राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी एम. ए. में पढ़ रहे थे, तभी उनका संपर्क क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुआ। सान्याल बंगाल के क्रांतिकारी 'युगांतर' दल से संबद्ध थे। वहाँ एक दूसरे दल 'अनुशीलन' में वे काम करने लगे। राजेन्द्रनाथ इस संघ की प्रतीय समिति के सदस्य थे। अन्य सदस्यों में रामप्रसाद बिस्मिल भी सम्मिलित थे। 'काकोरी ट्रेन कांड' में जिन क्रांतिकारियों ने प्रत्यक्ष भाग लिया, उनमें राजेन्द्रनाथ भी थे। बाद में वे बम बनाने की शिक्षा प्राप्त करने और बंगाल के क्रांतिकारी दलों से संपर्क बढाने के उद्देश्य से कोलकाता गए। वहाँ दक्षिणेश्वर बम फैक्ट्री कांड में पकड़े गए और इस मामले में दस वर्ष की सज़ा हुई।[1]
काकोरी काण्ड
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी बलिदानी जत्थों की गुप्त बैठकों में बुलाये जाने लगे थे। क्रान्तिकारियों द्वारा चलाए जा रहे आज़ादी के आन्दोलन को गति देने के लिये धन की तत्काल व्यवस्था की जरूरत के मद्देनजर शाहजहाँपुर में एक गुप्त बैठक हुई। बैठक के दौरान रामप्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेज़ी सरकार का खजाना लूटने की योजना बनायी। इस योजनानुसार दल के ही प्रमुख सदस्य राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी 'आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर ट्रेन' को चेन खींच कर रोका और क्रान्तिकारी पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद व छ: अन्य सहयोगियों की मदद से समूची ट्रेन पर धावा बोलते हुए सरकारी खजाना लूट लिया गया।[2]
सज़ा
बाद में अंग्रेज़ी हुकूमत ने उनकी पार्टी 'हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन' के कुल 40 क्रान्तिकारियों पर सम्राट के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व मुसाफिरों की हत्या करने का मुकदमा चलाया, जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को मृत्यु दण्ड (फाँसी की सज़ा) सुनायी गयी। इस मुकदमें में 16 अन्य क्रान्तिकारियों को कम से कम चार वर्ष की सज़ा से लेकर अधिकतम काला पानी (आजीवन कारावास) तक का दण्ड दिया गया था।
मृत्यु
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी की मृत्यु 17 दिसंबर, 1927 को उत्तर प्रदेश की गोंडा जेल में फांसी देने के कारण हुई।
विचार
फांसी के फंदे तक जाने से पूर्व लाहिड़ी ने स्नान और गीता पाठ किया और कुछ व्यायाम भी किया। अंग्रेज़ मजिस्ट्रेट को उनके व्यायाम करने पर आश्चर्य हुआ। उसके पूछने पर लाहिड़ी ने उत्तर दिया-
मैं हिन्दू हूँ और मेरा विश्वास है कि मैं देश की आज़ादी के लिए पुन: दूसरा शरीर धारण करने जा रहा हूँ, वह शरीर स्वस्थ और बलिष्ठ हो, इसीलिए मैंने व्यायाम किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 711 |
- ↑ प्रीतीश देशप्रेमी विद्रोही (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 07 नवम्बर, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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